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अध्याय दूसरा।
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भट्टारकोंके और नाम हैं-सकलकीर्ति, लक्ष्मीसेन, रामसेन और रत्नकीर्ति । ऊपर जो पट्टावली दी है वह आगरा मोतीकटराके दि० जैन मंदिरके सरस्वती भंडारके गुटके नं० १३९ से भी मिलती है।
. इसी गोपीपुराके मंदिरमें दूसरे मेरुपर लेख है। उसमें काष्ठासंघ लाड़ वागड़ गच्छका वर्णन है और बघेरवाल जाति प्रतिष्ठाकारक है। इससे मालूम होता है कि वघेरवाल लोग काष्ठासंघ लाड़ वागड़ गच्छको मानते हैं । जब कि नरसिंहपुरा नंदीतट गच्छको मानते हैं।
गौपापुरा मंदिरकी एक चौवीसीपरका लेख । _ "सं० १५१३ वर्षे वैशाख सुदी १० बु० आचार्य श्री देवेन्द्रकीर्ति शिष्य श्रीविद्यानंदी देवादेशात् काष्टासंघे हुमड वंशे श्रेष्टी काना भार्या बारु सुत साजण भायो सुहवदे भ्राता सोमसा भार्या रही भानर सींघराज भार्या वरमादे साजण भार्या अधन सुत सदा } सींधराज सुत वदा श्रे साजणे स्वश्रेयाय श्री जिन विंब कारपितम् । श्री घोघा वेलातट वास्तव्य श्री मूलसंधे आर्जका संयम श्री श्रेयार्थम् ।'
नवापुरा-मेवाडा मंदिरकी प्रतिमाएं।
मेवाड़ाका, गुजरातीका, चोपड़ाका, ऐसे नवापुरामें ३ दिगम्बर जैन मंदिर हैं। जिसमें चिंतामणि पार्श्वनाथका मेवाड़ा जातिका मंदिर प्रसिद्ध है-इसमें भी काष्ठासंघी नंदीतट गच्छकी आम्नाय है यहां जो मुख्य श्रीशीतलनाथस्वामीकी प्रतिमा अभी भौरे में है उसपर यह लेख है। “ स्वस्तिश्री नृप विक्रमात १८१२ माघ सुदी ५ गुरौ श्रीमद काष्टा संघ नंदीतट गच्छे विद्या गुरौ श्रीरामसेनान्वये भट्टारक श्रीलक्ष्मीसेनदेवास्तपट्टे भट्टारक श्री विजयकीर्ति विजयराज्ये सुरतबंदरे वास्तव्य मेवाड़ा ज्ञाती लघु शाखायांम् सा सनाथा विशनदास सुत
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