Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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अश्विन
प्राचीन चरित्रकोश
अश्विनीसुत
अश्विन् – वैवस्वत मन्वन्तर का एक देव ( अश्विनी से उत्पन्न हुई, यह दीक्षितजी का कथन सब को मान्य होने कुमार देखिये )। लायक है ( भारतीय ज्यो . पा. ६५ ) ।
अश्विन - सोम की सत्ताइस पत्नीयों में से एक । २. अक्रूर की पत्नीयों में से एक ।
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अश्विनीकुमार एक ही नाम से पहचानी जाने बाली, थानीय दो देवता ऋग्वेद में इनके वर्णन पर लगभग पचास सूक्त हैं। ये जुड़वाँ भाई हैं तथा कभी एक दूसरे से विलग नहीं होते (ऋ. १.३९.१ ) | ये सरव्यू से प्रभातसमय में उत्पन्न हुए (ऋ. १०.१७.२ ) । परंतु इन दोनोंका जन्म अल्ला' हुआ ऐसा भी उल्लेख है। एक निशा का, तथा दूसरा उषा का पुत्र था ( नि. १२.२ ) । इनके उदय का समय, उषा तथा सूर्योदय के बीच में है (८.५.२ ) । द्विवचन में आनेवाला नासत्य शब्द एकवचन में आया है (ऋ. ४.२.६) । ये तरुण हैं तथा देवों से छोटे हैं (ऋ. ७.६७७१० ते सं. ७.२.७ ) । इनका रथ सुनहला है, तथा उसे पहिये, बैठक तथा धुरियाँ प्रत्येक तीन तीन हैं (ऋ. १.११८.११ २.१८०.१ )। सूर्या के विवाह समारोह में जब ये आये थे, तब इनके रथ का एक चक्र टूट गया (ऋ. १०.८५.१५)। इनके रथ को श्वेन (ऋ. १.११८.१), गरुड़ ( ४ ), हंस (ऋ. ४.४५.४), तथा कुछ स्थानों पर केवल पक्षी जोडे जाने का निर्देश है ( ६.६३.६ ) सोम तथा सूर्या के विवाह प्रसंग में, इनके रथ को रासभ जोडे थे ( ऐ. ब्रा. ४.४ - ९ ) इनका रथ एक दिन में पृथ्वी तथा स्वर्ग आक्रमता है (ऋ. ३.५८.८ ) । इनका वासस्थान द्यु तथा पृथ्वी (ऋ. १. ४४.५), यी तथा अंतरिक्ष (ऋ. ८.८०४), वृक्ष तथा गिरिगव्हर, दिया है (ऋ. ७.७०.३ ) । इनका स्थान अशात ६.६२.१३ ८.६२.४ ) । सूर्यकन्या सूर्या के ये पति है (ऋ. १.११७.१६ ४.४३.६ ) । ये लोगों को संकटमुक्त करते हैं ( अत्रि, घोषा, भुज्यु तथा वंदन देखिये) । परंतु स्त्रियों को पुत्र देना (ऋ. १.११२.२ १०. १८४.२ ) वृद्धों को तरुण बनाना (ऋ. १.११९.७) आदि कथाएं भी प्रचलित है । अथर्ववेद में, प्रेमी युगुलों को मिलाना इ. विषय में भी इनकी प्रख्याति है (अ. वे. २.३०.२)। इसके अतिरिक्त, ये अंध, पंगु तथा रोगग्रस्तों को ठीक करनेवाले (ऋ. १०.३९.३), देवताओं के धन्वन्तरि तथा मृत्यु को टालनेवाले है (ऋ.८.१८.८३ . बा. २.१.२.११) । इन्होंने विश्पता को लोहे का पैर लगाया है. आख्यायिकाये हैं दधीच, भृत्य, कवि तथा विमद देखिये) । अश्वीदेवों की कल्पना गुरुशुक्र के सानिध्य
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हमारे वैदिक पूर्वज उत्तर ध्रुव प्रदेश में जब रहते थे, तब उनके द्वारा अवलोकन किये गये दो दृश्य- जिन्हें अंग्रेजी में Astronomical and meterological light या Aurora Borealis कहते है, उन्हीका रूप कात्मक दर्शन अश्विनीकुमारों के प्रतीकों में किया गया है, ऐसा श्री. वडेर का कहना है।
संज्ञा जब अधरूप में संचार कर रही थी, तब उसे विवस्वान से अश्विनीकुमार हुए अपनी पत्नी अश्विनी है, यह देख विवस्वान ने अश्वरूप में उससे सहवास किया । परंतु संज्ञा ने उसे परपुरुष समझ कर, उस वीयं को नासापुटों द्वारा त्याग दिया।
अश्विनीकुमारों को नासत्य ऐसा भी नामांतर हैं ( म. आ. ६०.२४ भा. ६.६.४० ) इनमें से बड़े को नाम नासत्य, तथा छोटे का नाम दस है (म. अनु. १५०) । देवों के वैद्य, तथा वैवस्वत मन्वन्तर के देव हैं (भा. ८.१३.४; मनु देखिये) । देवों में यह शूद्र हैं ( म. शां. २०७.२६ कुं) ।
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उपमन्यु ने अपना गुरु आपोद धौम्य की आज्ञा से, दृष्टिप्रात्यर्थ इनकी स्तुति की। इस स्तुति से तथा गुरु के प्रति उसकी निष्ठा से संतुष्ट हो कर इन्होंने उसे दृष्टि दी ( म. आ. ३.७५ ) । एक बार, जब ये च्यवनाश्रम में आये थे, तब इन्हें यज्ञ में हविर्भाग प्राप्त कर देने का मान्य कर, च्यवन ने इससे तारुण्य प्राप्त करा लिया (म. व. १२३. भा. ९. ३. २३ - २६ ) । माद्री ने पांडू की आज्ञा से, इनसे आवाहन कर दो पुत्र प्राप्त कर लिये । वे ही नकुल तथा सहदेव हैं (म. आ. ९०.७२ ११५.१६१७) । ये शिशुमारचक्र के स्तन पर है (मा. ५.२३.७१ अश्विनीसुत देखिये) ।
२. भास्करसंहिता के चिकित्सासारतंत्र नामक प्रकरण का कर्ता (ब्रह्मवे. २.१६ ) ।
अश्विनीसुत - सुतपस् भारद्वाज का पुत्र । सुतपस् की पत्नी जब तीर्थयात्रा कर रही थी, तब बलात्कार द्वारा सूर्य से उसे अश्विनीसुत नामक सुन्दर पुत्र हुआ। घर आ कर, यह बात उसने पति को बताई । तब उसने इन दोनों का त्याग किया। वह स्त्री गोदावरी नदी बनी। सूर्य ने इसे मंत्रतंत्र तथा ज्योतिष पढाया, अतः यह ज्योतिषी बना। परंतु आगे सुतप ने इन दोनों को शाप दिया की, तुम रोगी तथा यज्ञभागरहित बनोगे। आगे चलकर,
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