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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
शब्दकोष से उन शब्दों को चुनना और पढ़ना, जिनसे सुवासित गंध आती है। नारी तुम श्रद्धा हो, तुम शक्ति हो, प्रेरणा हो, गति हो, मति हो।
सत्य तो यह है कि सबला नारी के पूर्ण अंगों, उपांगों, भेद-प्रभेदों का विश्लेषण कर तपःपूत पुण्यश्लोका, आत्मसाधिका पूज्या मातुश्री ने तटस्थ हो उन कारणों पर विवेकसम्मत दृष्टिपात किया जो चारों ओर शंखनाद' किए हुए थे "नारी नरकगामिनी" नारी विषवेल, नारी अधोगामिनी, तब सिद्धान्तवेत्ता जगज्जननी माँ ने उन ग्रन्थ पर ग्रन्थों को ही पलट डाला जो नारी की अस्मिता के कृष्ण-कालिख पक्ष पर ही पूर्ण स्पाट लाइट डालते थे, तब मातु श्री ने कहीं भी तो ऐसा नहीं पाया जो नारी चरित्र की उज्ज्वलता को अवगुष्ठित करता हो। प्रमाणतः "जैन भारती", "मेरी स्मृतियां" एवं सम्यग्ज्ञान मासिक के अनेक अंकों में तर्क एवं प्रमाणयुक्त लेख प्रसंग देकर जहाँ नारी के मनोबल को वृद्धिंगत किया वहीं सम्पूर्ण भारत ही नहीं, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जम्बूद्वीप जैसी संरचना कर जैन भूगोल से शिक्षाविदों, तत्त्ववेत्ताओं को परिचित कर अपूर्व धर्मप्रभावना एवं नारी निष्ठा, दृढ़ता एवं संकल्प को सुमेरुवत् स्थिर किया।
वस्तुतः तथ्यपरक सत्य यह है कि ऐसी प्रतिमापुंज, चारित्र-मणि आर्यिका-श्री नारी को उसके अन्तर्शक्तियों के स्फुरण हेतु, नारी प्रगति एवं जागरण के लिए अवतार रूप में, आदि सरस्वती ब्राह्मी के क्रम में हम महिलाओं के लिए किसी तीर्थ से कम नहीं, मैं तो क्षमा चाहते हुए कहूँगी अच्छा हुआ मातुश्री आप नारी हुईं, हम नारियों को तो संप्रेरणा की चरम सीमा हैं आप। आपने पुनः बाध्य किया है इस पुरुष समाज के सबलतम एवं समर्थतम अवयवों को भी अत॑मन से प्रणमित होने को एवं नारी की प्रभुता एवं विभुता को जानने-पहचानने को! सामान्य से सामान्य नारी भी आज आपके ज्ञान चरित्र से स्वयं का आंकलन करने लगी है, कसौटी हैं आप श्राविकाओं की भी एवं आर्यिकाओं की भी, सम्पूर्ण नारी समाज को संचेतन कर पुरुष वर्ग के सम्मुख गर्व से उठाने में आपकी महती भूमिका है।
आपने स्पष्टतः कहा है नारी गुणों को प्रकटित करें, चारित्रिक रूप से सबल रहें तो कोई कारण नहीं कि उसका शोषण अथवा दोहन हो सके।
ऐसी शक्तिस्वरूपा, नारी-तिलक आर्यिका श्रीजी की मैं भक्तिपूर्वक बारम्बार वन्दना करती हूँ, हम आपके मार्ग की अनुगामिनी बनकर आप द्वारा प्रदीप्त दीपक निरन्तर जाज्वल्यमान रखें, यही आशीर्वाद हमें प्रदान करें।
प्रणामांजलि
- सुनीता एवं शोभा शास्त्री, बी०ए०
शिवपुरी [म०प्र०]
आत्म-शुद्धि में तत्पर धर्म के पिपासु-जिज्ञासुओं को जो समीचीन आगम ग्रन्थों के स्वाध्यायपूर्ण उपासना की प्रेरणा देती हैं, सम्यग्दृष्टि जीवों को मोक्षमार्ग की दिशा निर्देशित करती हैं वह हैं ज्ञानमती माताजी। - दीर्घ जीवन की उज्ज्वल एवं मंगलकामना के साथ सम्यग्दर्शन सम्पन्न अभीक्ष्णज्ञानोपयोगी, जिनशासन प्रभाविका, न्यायप्रभाकर, सिद्धान्त वाचस्पति, विद्यावारिधि, परम पूज्यमाता श्री ज्ञानमतीजी के पावन चरणों में हमारी अनन्त वन्दना नमोस्तु है।
विनम्र विनयांजलि
- डॉ० अविनाश सिंघई, बी०ए० पत्रकार, दैनिक नवप्रभात, शिवपुरी [म०प्र०]
जिन्होंने अपने अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग से आगम के सिद्धान्त ग्रन्थों की आराधना में जीवन समर्पण किया, पर हितार्थ चारों वेदों (चार-अनुयोगों) का निरन्तर गहन अध्ययन, अध्यापन का अपना चरम लक्ष्य बनाया है। जिनकी प्रतिभा-सम्पन्न अभीक्षण प्रज्ञा ने जम्बूद्वीप की स्थापना तथा निर्माण कार्य सम्पन्न किया। उन माता श्री ज्ञानमतीजी के पुनीत चरणों में शतायु होने की उज्ज्वल कामना के साथ विनम्र विनयांजलि सादर समर्पित है।
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