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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
पूज्य ज्ञानमती माताजी शतायु हों
-सतीशचन्द जैन, सरधना [मेरठ]
पूज्य आचार्य वीरसागर की सुयोग्य शिष्या हैं आप । जन्म से ही हृदय में पूर्ण वैराग्य धारी हैं आप ।। यह विश्व कृतज्ञ है जिसके प्रति वे ज्ञान ज्योति हैं आप । ज्ञान वैराग्य करुणा-सरलता की मूर्ति हैं आप । नश्वर शरीर अमर आत्मा का भेद विज्ञान बताती हैं आप । मनन, तप, जनकल्याण की साधक हैं आप । तीन लोक के नाथ की पूजा विधान की रचयिता हैं आप । माता की ममता गुरु की करुणा से परिपूर्ण हैं आप । ताप मन का शीतल करने ज्ञान गंगा हैं आप । जीने के सूत्र सिखाने वाले शास्त्रों की लेखिका हैं आप । शक्ति पाई ज्ञान की गहन चिन्तन-मननधारी हैं आप । ताकत है जिसमें बालयती की ऐसी पुण्यधारी हैं आप । युग को जम्बूद्वीप की अमरकृति देने वाली हैं आप । हो जाती है पावन धरा जहाँ पग धरती हैं आप।
ज्ञानांजलि
- महेन्द्र कुमार जैन "नीलम" - पहाड़ी धीरज-दिल्ली
सूरज के सम तेज धरें,
और चन्द्र समान सु कांति सुखाई । मुख सौम्य लखें ज्यो सुधा बरसे,
त्यो भव्य सदा जिनके गुण गाई ॥ जो ज्ञान की खान और ज्ञान की आन,
है ज्ञान की ध्यान सदा जिन ताई । शुभ ज्ञानमती जिन नाम धरो,
सो करो "नीलम" तिनकी सेवकाई॥
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