Book Title: Aryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Author(s): Ravindra Jain
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 775
________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रंथ यहां मेरा कहना यह है कि 'आइमन्झतवणणसरलोवो, सूत्र इस चतारिमंगल पाठ में भी लगा लेना चाहिये। इससे विभक्ति लोप होने पर विभक्ति का अस्तित्तव मान कर बिना विभक्ति का पाठ भी शुद्ध ही मानना चाहिये । इसलिए जो चत्तारि मंगल पाठ विभक्ति रहित है प्राचीनकाल से चल आ रहा है वह शुद्ध है। शास्त्रों और यन्त्रों में भी विभक्ति रहित ही जो पाठ देखे जाते हैं वे शुद्ध हैं और लाघवयुक्त है। चन्दना — इससे निष्कर्ष क्या निकालें ? - श्रीज्ञानमती माताजी - निष्कर्ष तो यही निकलता है कि प्राचीन पाठ ही पढ़ना चाहिए क्योंकि खोज करने से यही प्रतीत होता है कि समस्त पूर्वाचार्य प्राचीन पद्धति के अनुसार बिना विभक्ति वाला पाठ ही पढ़ते और लिखते आए हैं। अतः हम लोगों को इस विषय में अपनी बुद्धि न लगाकर प्राचीन पाठको ही प्रामाणिक मानना चाहिए। पूज्य माताजी! एक विषय और है कि कई जगह मन्दिरों में सरस्वती देवी की प्रतिमा वेदी में विराजमान देखी जाती हैं। तो क्या सरस्वती की मूर्ति बनाने का आगम में विधान है? श्री ज्ञानमती माताजी- हाँ, प्रतिष्ठा ग्रंथों में तो श्रुतदेवी की प्रतिमा बनाने का कथन आया है। मैंने दक्षिण प्रान्त में भी कई मंदिरों में सरस्वती माता की प्रतिमा देखी है। चन्दना - लेकिन सरस्वती तो जिनवाणी माता का ही दूसरा नाम है और जिनवाणी शास्त्र रूप ही देखी जाती है उसे अंगोपांग से सहित देवी का रूप देना कहाँ तक उचित है? ७०७ श्री ज्ञानमती माताजी - जिनवाणी को द्वादशांग रूप भी तो माना है। जिन्हें सरस्वती पूजा की जयमाला में सभी लोग पढ़ते हैं। उन बारहों अंगादि से समन्वित श्रुतदेवी की स्थापना करने का विधान बताया है। धवला में एक श्लोक आया है बारह अंगग्गिज्झा वियलिय- मल-मूढ - दंसणुत्तिलया । विविह- वर-चरण-भूसा पसियउ सुय देवया सुइरं ॥ अर्थः- जो श्रुतज्ञान के प्रसिद्ध बारह अंगों से ग्रहण करने योग्य है, अर्थात् बारह अंगों का समूह ही जिसका शरीर है, जो सर्व प्रकार के मल (अतीचार) और तीन मूढ़ताओं से रहित सम्यदर्शन रूप उन्नत तिलक से विराजमान और और नाना प्रकार के निर्मल चारित्र ही जिसके आभूषण हैं ऐसे भगवती श्रुत देवता चिरकाल तक प्रसन्न रहो। इसी प्रकार जयधवला में भी कहा है अंगगणिमी अणाइमज्झतणिम्मलंगाए । सुयदेवयअंबाए णमो सया चक्तुमइवाए (४) अर्थः- जिसका आदि मध्य और अन्त से रहित निर्मल शरीर, अंग और अंगबाह्य से निर्मित है और जो सदा चक्षुष्मती अर्थात् जागृत चक्षु हैं ऐसी श्रुतदेवी माता को नमस्कार हो । चन्दनाः- क्या उस श्रुतदेवी की वस्त्र भी पहना सकते हैं? श्रीज्ञानमती माताजी - हाँ, एक जगह सरस्वती स्त्रोत में भी श्वेत वस्त्र का कथन आया है। Jain Educationa International “चन्द्रार्ककोटिघटितोज्वलदिव्यमूर्ते, श्री चन्द्रिका कलितनिर्मलशुभ्रवासे । कामार्थ दे च कलहंस समाधिरुढ, वागीश्वरि प्रतिदिन मम रक्षदेवि (१) इस श्लोक में "शुभ्रवासे" शब्द से यह स्पष्ट होता है कि सरस्वती की प्रतिमा श्वेतवस्त्र से युक्त होती है। चन्दना — क्या वस्त्र सहित सरस्वती की मूर्ति को नमस्कार किया जा सकता है? श्री ज्ञानमती माताजी शास्त्र- जिनवाणी ग्रंथों के ऊपर भी कपड़े का वेस्टन 1 लपेटा होता है जैसा उस वस्त्र सहित ग्रन्थ को नमस्कार करने में कोई दोष नहीं है वैसे ही वस्त्र युक्त श्रुतदेवी की प्रतिमा भी नमस्कार के योग्य है। अरे भाई! वह श्रुतदेवी कोई भवनवासी या व्यंतरी देवी तो हैं नहीं। उनका श्वेत वस्त्र तो ज्ञान की उज्ज्वलता-निर्मलता का प्रतीक है। ज्ञान के विभिन्न विशेषणों को श्रुतदेवी के विभिन्न अंगों की उपमा दी गई है इसीलिए उनकी प्रतिमा बनाने की प्राचीन परम्परा चली आ रही है। प्रतिष्ठा तिलक ग्रंथ में सरस्वती माता की एक बड़ी सुन्दर स्तुति है जो यहाँ दी जा रही है। यह स्तुति मुझे प्रारम्भ से ही अत्यन्त प्रिय है। इसे सभी शनेच्छु भव्य जीवों को कंठस्थ कर लेना चाहिए तथा सरस्वती प्रतिमा अथवा जिनवाणी के समक्ष प्रतिदिन पढ़ना चाहिए। जिससे अतिशय ज्ञान की वृद्धि होगी। सरस्वती स्तोत्र बारह अंगगिजा देसणतिलया चरितवत्थहरा। चोदसपुव्याहरणा ठावे दव्बाव सुयदेवी (१) आचारशिरसं सूत्रकृतवक्त्रां सुकंठिकाम् । स्थानेन समवायांगव्याख्याप्रज्ञप्तिदोताम् (२) For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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