Book Title: Aryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Author(s): Ravindra Jain
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 777
________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रंथ दिगंबर जैन त्रिलोक शोध संस्थान हस्तिनापुर का परिचय ७०९ - बाल ० रवीन्द्र जैन, अध्यक्ष, दि० जैन त्रिलोक शोध संस्थान जिस प्रकार से किसी देश का, राष्ट्र का अथवा समाज का इतिहास अपने आप में महत्व रखता है उसी प्रकार से किसी संस्था का इतिहास भी अपना विशिष्ट महत्व रखता है। इसीलिए संस्थान की संक्षिप्त झलकी यहां पर लोगों की जानकारी एवं इतिहास की दृष्टि से दी जा रही है। Jain Educationa International संस्थान का जन्म: चारित्र चक्रवर्ती १०८ आ० श्री शांतिसागर जी महाराज की परंपरा के प्रथम पट्टाधीश आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज की शिष्या अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी पू० गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी का अजमेर चातुर्मास के बाद राजस्थान से विहार होकर सन् १९७२ में देश की राजधानी दिल्ली में मंगल पदार्पण होता है और पूज्य माताजी के प्रथम चातुर्मास कराने का गौरव पहाड़ीधीरज दिल्ली को प्राप्त होता है। इसी दिल्ली के प्रथम चातुर्मास के मध्य पूज्य माताजी ने एक भौगोलिक निर्माण जम्बूद्वीप रचना के लिये दिल्ली के महानुभावों से विचार-विमर्श करके इस कार्य को प्रारंभ करने हेतु एक पंजीकृत कमेटी बनाने का निर्णय लिया और सर्वप्रथम इस कमेटी के नामकरण तथा कमेटी के स्वरूप पर विचार-विमर्श करने के लिये पूज्य माताजी के सानिध्य में एक बैठक रखी संस्थान निर्माण के लिये यह प्रथम ऐतिहासिक बैठक पहाड़ीधीरज दिल्ली की जैनधर्मशाला में १७ अक्टूबर १९७२ मध्यान्ह ४.०० बजे संपन्न हुई जिसमें प्रमुख रूप से दिल्ली के मुनिभक्त एवं प्रसिद्ध उद्योगपति डॉ० कैलाशचंद जैन, राजा टॉयज दिल्ली, लाला श्यामलालजी ठेकेदार, वैद्य शांतिसागर जैन, फर्म- राजवैद्य शीत प्रसाद एंड संस, श्री महावीर प्रसाद जैन पनामा वाले, पहाड़ीधीरज दिल्ली, ब्र० मोतीचंद जैन संघस्थ, श्री कैलाशचंद जैन, करोल बाग, नई दिल्ली तथा श्री कर्मचंद जैन पहाड़ी धीरज दिल्ली आदि महानुभाव सम्मिलित हुए। इस प्रथम बैठक में ही संस्थान का नामकरण जैन त्रिलोक शोध संस्थान" रखना तय हो गया। तथा आगे की व्यवस्थाओं को संचालित करने के लिये एक कार्यवाहक कमेटी का भी गठन कर लिया गया। इस प्रथम बैठक में ही यह निर्णय किया गया कि जैन त्रिलोक शोध संस्थान का एक संविधान बनाकर सोसायटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट दिल्ली के आधीन रजिस्ट्रार सोसायटीज एक्ट दिल्ली कार्यालय से पंजीकृत करा लिया जाये और इस कार्य का उत्तरदायित्व श्री कैलाशचंद जैन करोल बाग दिल्ली पर डाला गया। श्री कैलाशचंद जैन की सूझबूझ, लगन एवं परिश्रम से शीघ्र ही "जैन त्रिलोक शोध संस्थान" के नाम से संस्थान का रजिस्ट्रेशन हो गया। अब इस रजिस्टर्ड संस्थान के प्रथम अध्यक्ष डा० श्री कैलाशचंद जैन राजा टायज, दिल्ली, उपाध्यक्ष लाला श्री श्यामलाल जैन ठेकेदार-दिल्ली महामंत्री वैद्य श्री शांतिप्रसाद जैन, दिल्ली, कोषाध्यक्ष श्री मोतीचंद जैन सर्राफ संघस्थ, मंत्री श्री कैलाशचंद जैन, करोलबाग नई दिल्ली, उपमंत्री श्री ० रवीन्द्र कुमार जैन आदि पदाधिकारी तथा सदस्यगण मनोनीत किये गये। इसके साथ ही संस्थान की गतिविधियाँ धीरे-धीरे आगे बढ़ती हैं और जम्बूद्वीप निर्माण के लिये जमीन की खोज प्रारंभ हो जाती है। पूज्य माताजी के आशीर्वाद से दिल्ली, नजफगढ़ जैन समाज की ओर से जमीन भी उपलब्ध करा दी गई। फलस्वरूप वहां पर जम्बूद्वीप शिलान्यास १५ फरवरी १९७३ को एक समारोह पूर्वक सम्पन्न हुआ और निर्माण कार्य भी प्रारंभ हो गया। पूज्य माताजी का सघ सन् १९७३ का चातुर्मास भी नजफगढ़ दिल्ली में ही सम्पन्न हुआ। 44 " श्रेयांसि बहु विघ्नानि" अच्छे कार्यों में विघ्नों का आना भी स्वाभाविक है। इस नीति के अनुसार यहां पर कुछ प्रतिकूल वातावरण उत्पन्न होने लगे जिससे संस्थान के पदाधिकारियों ने यह अनुभव किया कि यहां निर्माण कार्य में लाखों रुपया लगाना उचित नहीं दिखता है ऐसी परिस्थितियों में पूज्य माताजी से संस्थान के पदाधिकारियों ने अनुरोध किया कि यह स्थान इस निर्माण कार्य के लिये अनुकूल नहीं पड़ रहा है। तथा अकूलता के प्रयास बावजूद सफलता नहीं मिली रही है। फलस्वरूप संस्थान द्वारा नजफगढ़ का निर्माण कार्य रोक दिया गया। योगायोग से कुछ महानुभावों ने पूज्य माताजी से हस्तिनापुर तीर्थ के दर्शन के लिए निवेदन किया और बताया कि हस्तिनापुर की जलवायु बहुत ही अच्छी है। पूज्य माताजी ने हस्तिनापुर के लिए बिहार कर दिया। यह बात मार्च / अप्रैल १९७४ की है। पूज्य माताजी का ससंघ हस्तिनापुर पदार्पण होता है। कौन जानता था कि पूज्य माताजी का यह प्रथम आगमन हस्तिनापुर के लिए वरदान बन जायेगा? एक कहावत है- "संतन के पांव जहां पड़ते, माटी चंदन बन जाती है" वास्तव में यह उक्ति सत्य ही चरितार्थ हुई और हस्तिनापुर तीर्थ क्षेत्र का सौभाग्य उदय में आ ही गया। पूज्य माताजी को वहाँ का शांत वातावरण, शीतल जलवायु बहुत पसन्द आई और जमीन की खोज प्रारंभ कर दी गई। तथा जमीन खरीदने का निर्णय भी कर लिया गया। पूज्य माताजी को हस्तिनापुर इसलिये भी अधिक पसन्द आया क्योंकि दिल्ली के कोलाहल पूर्ण एवं अत्यंत व्यस्त वातावरण में पूज्य माताजी का लेखन पठन-पाठन आदि सन्तोषपूर्वक हो नहीं पाता था। इसलिये हस्तिनापुर जैसे पावन तीर्थ स्थल पर यह सब कार्य अत्यंत सुलभ रहेंगे, मैं अपना लेखन आदि कार्य शांतिपूर्वक करती रहूंगी और कमेटी के लोग निर्माण करते रहेंगे। ऐसा सोचकर माताजी की आज्ञा हस्तिनापुर के लिये प्राप्त हो गई। कुछ दिन प्रवास For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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