Book Title: Aryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Author(s): Ravindra Jain
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 784
________________ ७१६] वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला इस पंचकल्याणक एवं महामहोत्सव को सानिध्य प्रदान किया पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी ने तथा इसके प्रतिष्ठाचार्य पं० श्री फतेहसागर जी शास्त्री उदयपुर निवासी थे। जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति प्रवर्तन एवं अखंड स्थापना:___संस्थान द्वारा धर्म प्रचार हेतु जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति का प्रवर्तन सारे भारतवर्ष में ४ जून १९८२ से २८ अप्रैल १९८५ तक किया गया। इस प्रवर्तन का उद्घाटन पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के सानिध्य में भारतरत्न प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के करकमलों से लाल किला मैदान दिल्ली में ४ जून १९८२ के दिन किया गया था, उसके बाद देश के सभी प्रांतों के नगर-नगर में इस ज्ञानज्योति द्वारा धर्म की प्रभावना हुई। जिसका विष्तृत विवरण इसी अभिवंदन ग्रंथ में ज्ञानज्योति प्रवर्तन के खण्ड में किया गया है। ___ संक्षेप में यहां इतना बताना पर्याप्त है कि इसका प्रवर्तन माननीया प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के करकमलों से हुआ था। इसके समापन पर हस्तिनापुर में इसकी अखंड स्थापना श्री पी.वी. नरसिंह राव के करकमलों से २८ अप्रैल १९८५ को हुई थी। इस ज्ञानज्योति में श्री जे०के० जैन संसद सदस्य का काफी सहयोग संस्थान को प्राप्त हुआ। संस्थान उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करती है। ज्ञानज्योति के संचालक स्व. पं० बाबूलालजी जमादार एवं उनके बाद द्वितीय संचालक पं० सुधर्मचंद श्री शास्त्री तिवरी की सेवाओं को कभी नहीं भुलाया जा सकता! ज्ञानज्योति का आय व्ययः जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति के प्रवर्तन में ४ जून १९८२ से २८ अप्रैल १९८५ तक ५६३४३७.५२ (छप्पन लाख चोंतीस हजार आठ सौ सैतीस रूपये बावन नये पैसे) का आर्थिक सहयोग दिगंबर जैन समाज से बोलियों द्वारा प्राप्त हआ तथा प्रवर्तन की विभिन्न व्यवस्थाओं में १३०५०४४.३१) तेरह लाख, पांच हजार, चवालीस रूपये, इक्तीस नये पैसे (खर्च हुये अतः ४३२८७९३.२१) तेंतालीस लाख अट्ठाईस हजार सात सौ तिरानवे रुपये इक्कीस नये पैसे) की शुद्ध बचत हुई, जिसका उपयोग जम्बूद्वीप के निर्माण कार्य में किया गया। ज्ञानज्योति प्रवर्तन में आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज, आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज, आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज, आचार्य श्री विद्यानंद जी महाराज आदि लगभग सभी आचार्यों, मुनिराजों, आर्यिकाओं एवं भट्टारकों का सानिध्य एवं आशीर्वाद प्राप्त हुआ। तथा राजनेताओं का भी सानिध्य व सहयोग प्राप्त हुआ। इसकी विस्तृत जानकारी ज्ञानज्योति प्रवर्तन खंड में दी गई है। शैक्षणिक गतिविधियाँ: संस्थान द्वारा समय-समय पर सम्यग्ज्ञान, शिक्षण-प्रशिक्षण शिविर, ज्ञानज्योति शिक्षण-प्रशिक्षण शिविर, जम्बूद्वीप सेमिनार, जैन गणित एवं त्रिलोक विज्ञान पर अंतराष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किये जा चुके हैं। हस्तिनापुर के अतिरिक्त अनेक नगरों व शहरों में भी संस्थान के विद्वानों द्वारा स्थानीय एवं प्रांतीय स्तर पर शिविर लगाये जा चुके है। ३१ अक्टूबर १९८२ को इसी प्रकार के एक सेमिनार का उद्घाटन पूज्य माताजी के सानिध्य में माननीय श्री राजीव गांधी ने फिक्की आडिटोरियम दिल्ली में किया था। तथा सन् १९८५ में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन उत्तर प्रदेश के खाद्य मंत्री प्रो० वासुदेवसिंह ने तथा समापन श्री पी.वी. नरसिंह राव के करकमलों से हुआ था। हस्तिनापुर में विद्वानों का प्रशिक्षण शिविर पूज्यमाताजी के सानिध्य एवं दि० जैन त्रिलोक शोध संस्थान तथा सिद्धांत संरक्षिणी सभा के तत्वावधान में हस्तिनापुर में आयोजित विद्वानों का प्रशिक्षण शिविर इस शताब्दी का एक अनूठा शिविर था- जिसमें पं० मोतीलालजी कोठारी, लालबहादुरजी शास्त्री, पं० मक्खन लाल जी, पं० बाबूलाल जमादार आदि सभी मूर्धन्य विद्वानों सहित लगभग ८० विद्वानों ने सम्मिलित हुए थे- सभी विद्वानों ने पूर्ण अनुशासन बद्ध एवं पूज्य माताजी के निर्देशन में शिक्षण प्राप्त किया था। उस समय शिविर के लिए जम्बूद्वार स्थल पर कमरे नही थे अतः श्वेतांबर जैन बाल आश्रम के भवन में यह शिविर सम्पन्न किया गया था। इस शिविर का उद्घाटन श्री जिनेन्द्र प्रसाद ठेकेदार दिल्ली ने किया था। गुजरात का शिविर- संस्थान के माध्यम से जून सन् १९८७ में सप्तदिवसीय ज्ञानज्योति शिक्षण प्रशिक्षण शिविर का आयोजन प्रांतीय स्तर पर अहमदाबाद (गुज०) में किया गया था। जिसमें संस्थान की ओर से १२ विद्वान भेजे गये। इस शिविर में लगभग १४०० की संख्या में विद्यार्थियों ने शिक्षण प्राप्त किया तथा १०७८ विद्यार्थियों ने परीक्षा देकर प्रमाण पत्र हासिल किये थे। इस शिविर में गुजरात के ३२ गांवों के स्त्री-पुरुष एवं बालक-बालिकायें सम्मिलित हुये। जम्बूद्वीप पर दीक्षा समारोह: जम्बूद्वीप स्थल पर अनेक गतिविधियों के साथ ही दीक्षायें संपन्न करने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ है। इस श्रृंखला में सर्वप्रथम जम्बूद्वीप निर्माण के एक कर्णधार, पूज्य गणिनी आर्यिका रत्न श्री ज्ञानमती माताजी के शिष्य, बाल ब्र० श्री मोतीचंद जैन सर्राफ ने ८ मार्च १९८७ को आचार्य श्री विमलसागर Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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