Book Title: Aryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Author(s): Ravindra Jain
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 782
________________ ७१४] वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला इस पत्रिका की यह विशेषता रही है कि इसमें स्वाध्यायोपयोगी चारों अनुयोगों के लेख दिये जाते हैं। जिसका लेखन पूज्य ज्ञानमती माताजी के द्वारा स्वयं किया जाता रहा है। अब पिछले दो वर्षों से पूज्य ज्ञानमती माताजी की आज्ञा से पूज्य आर्यिका चंदनामती माताजी, पू० क्षुल्लक श्री मोतीसागर जी महाराज एवं बाल ब्र० श्री रवीन्द्र कुमार जैन के द्वारा इसके स्थाई स्तम्भों का लेखन किया जाता है। समय-समय पर विशेष विशेषांक भी प्रकाशित किये गये हैं। आज हम गौरव के साथ कह सकते हैं कि सम्यग्ज्ञान हिन्दी मासिक पत्रिका जैन समाज में स्वाध्याय केलिये अपना विशिष्ट स्थान रखे हये है। आचार्य श्री वीरसागर संस्कृत विद्यापीठ की स्थापना:सन् १९७९ में पूज्य ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से समाज में विद्वान तैयार करने के दृष्टिकोण से एक संस्कृत विद्यापीठ की स्थापना की गई। जिसका नामकरण आ० श्री वीरसागर संस्कृत विद्यापीठ रखा गया । इस विद्यापीठ द्वारा विधिविधान एवं प्रवचन हेतु विद्वान तैयार किये गये हैं। विद्वानों में पं. नरेश कुमार जैन, पं. प्रवीणचंद जैन, पं. कमलेश कुमार जैन आदि के नाम प्रमुख हैं। जम्बूद्वीप पारमार्थिक औषधालयः जम्बूद्वीप स्थल पर यात्रियों, कर्मचारियों एवं गांव वालों की सुविधा के लिये एक आयुर्वेदिक औषधालय की स्थापना सन् १९८५ में की गई, जिसमें मरीजों को निशुल्के औषधियां दी जाती हैं। आयुर्वेदिक औषधियों राजवैद्य शीतल प्रसाद एण्ड संस दिल्ली से प्राप्त होती है तथा पिछले वर्ष से कुछ औषधियाँ तीनमूर्ति फार्मेसी बीकानेर (राज.) से भी उपलब्ध होती रहती हैं। जम्बूद्वीप भोजनालयः जिस दिन से संस्थान की नीवं हस्तिनापुर में डाली गई है उसी दिन से यात्रियों की सुविधा के लिए भोजनशाला का निर्माण किया गया है पहले कच्चे कमरे से इसका शुभारम्भ १९७५ में किया गया था। पश्चात् डायनिंग हाल एवं अच्छी फर्नीचर बना कर यह व्यवस्था संस्थान द्वारा चल रही है। इस भोजनालय में प्रतिदिन कन्दमूल एवं अभक्ष्य पदार्थों से रहित शुद्ध भोजन यात्रियों को बिना किसी चार्ज लिये उपलब्ध होता है। इस योजना में स्थायी सदस्य सहयोग के लिए बनाये जाते हैं। जम्बूद्वीप पुस्तकालयः ___ संस्थान के अंतर्गत शोध कार्य हेतु एक वृहद् लायब्रेरी का निर्माण किया जा रहा है, जिसका नाम जम्बूद्वीप पुस्तकालय रखा गया है। इस लायब्रेरी में जैन धर्म के चारों अनुयोगों के ग्रंथों का संग्रह तो किया जा ही रहा है साथ ही अन्य भूगोल-खगोल संबंधी ग्रंथ तथा अन्य साप्ताहिक मासिक जैन पत्र-पत्रिकाओं का भी संग्रह किया जाता है। इस समय लाइब्रेरी में लगभग ६००० ग्रंथ का संग्रह किया जा चुका है। संस्थान के हिसाब एवं धन की व्यवस्था:संस्थान का आय व्यय प्रतिवर्ष संस्थान की कार्यकारिणी में पास करके आडिटर से आडिट कराया जाता है। तथा धन के संबंध में संस्थान की सम्पर्ण आय रसीद एवं कूपन से होती है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया हस्तिनापुर एवं न्यू बैंक ऑफ इंडिया हस्तिनापुर तथा बैंक ऑफ बड़ौदा दिल्ली में संस्थान के नाम से खाते हैं जिनका संचालन संस्थान के संविधान के नियमानुसार अध्यक्ष, मंत्री, कोषाध्यक्ष इन तीन में से किन्हीं दो हस्ताक्षरों से किया जाता है। संस्थान के अंतर्गत जमीन: हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप परिसर में सन् १९७४ से लेकर अब तक अनेक कृषकों से जमीनें खरीदी गई जो कि इस समय लगभग १७ एकड़ भूमि जम्बूद्वीप परिसर में है। इसके अलावा नसिया मार्ग पर नहर के किनारे १० एकड़ भूमि संस्थान से सन् १९८६ में क्रय की थी। इन समस्त जमीनों की रजिस्ट्री बैनामा "दिगंबर जैन त्रिलोक शोध संस्थान" के नाम से कराया गया है। संस्थान द्वारा पंचकल्याणक प्रतिष्ठायें:प्रथम पंचकल्याणक प्रतिष्ठा सन् १९७५: संस्थान के अंतर्गत प्रथम पंचकल्याणक प्रतिष्ठा भगवान् महावीर स्वामी की प्रतिमाजी का फरवरी १९७५ में सम्पन्न हुआ था। इस प्रतिष्ठा महोत्सव में पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी का तो सानिध्य था ही, सौभाग्य से आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज के विशाल संघ एवं उपाध्याय श्री विद्यानंद जी महाराज का भी सानिध्य प्राप्त हुआ था। इसका विस्तृत उल्लेख हम ऊपर कर आये हैं। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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