Book Title: Aryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Author(s): Ravindra Jain
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 785
________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रंथ जी महाराज से क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की थी, और क्षुल्लक श्री मोतीसागर नाम प्राप्त किया था। इसके पश्चात् १३ अगस्त १९८९ को पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी की शिष्या एवं गृहस्थावस्था की छोटी बहिन कु० माधुरी शास्त्री ने पूज्य ज्ञानमती माताजी के करकमलों से आर्यिका दीक्षा ग्रहण कर आर्यिका चंदनामती नाम प्राप्त किया। इसके बाद पूज्य माताजी की वयोवृद्ध शिष्या ब्र० श्यामाबाई की सुल्लिका दीक्षा पूज्य ज्ञानमती माताजी के करकमलों से कार्तिक वदी एकम १५ अक्टूबर १९८२ में ही सम्पन्न हुई। जिनकी नाम श्रद्धामती रखा गया। उपरोक्त तीनों दीक्षा सम्पन्न साधु पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के संघ में ही विराजमान है। संस्थान के विद्वानों द्वारा विधिविधानों के आयोजन संस्थान के अंतर्गत संचालित आचार्यश्री वीरसागर संस्कृत विद्यापीठ हस्तिनापुर से जो विद्वान तैयार हुये हैं तथा अन्य जो विद्वान जम्बूद्वीप से जुड़े हुये है उन्हें समाज के आमंत्रण पर सिद्धचक मंडल विधान, इंद्रध्वज मंडल विधान, कल्पदुम मंडल विधान आदि मंडल विधानों एवं वेदी प्रतिष्ठा, गृहप्रवेश, शिलान्यास आदि धार्मिक आयोजनों के लिये भेजा जाता है। पूजन के उपकरण यथा इन्द्रध्वज विधान के ४५८ मंदिर, कल्पद्रुम विधान के लिये धातु के उपकरण संस्थान के पास उपलब्ध हैं, जिन्हें समाज में आयोजनों की संपन्नता के लिये दिया जाता है। उपसंहार ७१७ यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के हस्तिनापुर प्रथम प्रवेश से लेकर जम्बूद्वीप निर्माण से अब तक हस्तिनापुर का काफी कायापलट होगया है सन् १९७५ में जब हम लोग यहाँ पर जम्बूद्वीप का निर्माण करने के लिये आये उस समय से दर्शनार्थियों की संख्या वर्तमान समय में कम से कम १० गुनी हो चुकी है। उसका कारण है कि जम्बूद्रीय निर्माण के प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ा है। ज्ञानज्योति प्रवर्तन से सारे देश की समाज में हस्तिनापुर का प्रचार-प्रसार हुआ है। ग्रंथमाला द्वारा प्रकाशित ग्रंथों व पुस्तकों से हस्तिनापुर का नाम लोगों के मस्तिष्क में पहुंचा है, तथा प्रतिमाह प्रकाशित होने वाली सम्यग्ज्ञान पत्रिका के माध्यम से लोगों में हस्तिनापुर आने की रुचि बड़ी है। यह सब पूज्य गणिनी आर्थिकारण श्री ज्ञानमती माताजी की तपस्या एवं उनके आशीर्वाद का ही सुफल कहना चाहिये, जो आज हस्तिनापुर के जंगल में मंगल सा वातावरण हो गया है। आज जम्बूद्वीप स्थल पर प्रतिदिन कम से कम ५०० से १००० तक दर्शनार्थियों का आवागमन होता है जिसमें जैन जैनेतर सभी वर्ग के लोग जम्बूद्वीप दर्शन के लिये आते हैं। दिल्ली से हस्तिनापुर आने के लिये सीधी बस सेवा नहीं थी। संस्थान के प्रयास से सन् १९७९ में दिल्ली से हस्तिनापुर उत्तरप्रदेश रोडवेज की दो बसें प्रारंभ हुई और अब इन बसों की संख्या १० हो गई है। अब सीधे दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय बस अड्डे से जम्बूद्वीप हस्तिनापुर के लिये बसें आती और जाती हैं, तथा मेरठ के रोडवेज बस अड्डे से एवं प्राइवेट बसें मेरठ में मवाना बस अड्डे से प्रातः से सायं तक लगभग २० बसें आती हैं। रेलवे लाइन के लिए भी संस्थान का केन्द्रीय सरकार से प्रयास जारी है। इसी प्रकार सरकार से प्रयास करके नसियां मार्ग जो लगभग तीन कि०मी० पड़ता है उसे डामर पक्का रोड सन् १९८५ में मुख्यमंत्री श्री नारायण दत्त तिवारी से संस्थान के प्रयास से कराया गया है। पूज्य माताजी के प्रयास से पिछले वर्षों में अनेक आचार्य संघों का एवं अनेक साधुओं का आगमन जम्बूद्वीप स्थल पर हो चुका है, जिससे दिल्ली एवं उत्तरप्रदेश को साधुओं के आगमन एवं चातुर्मास कराने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस प्रकार संस्थान के जन्म से लेकर वर्तमान युवा अवस्था तक की संक्षिप्त झलकी पाठकों की जानकारी के लिये मैंने यहाँ प्रस्तुत की है जिसे संस्थान का एक संक्षिप्त इतिहास समझना चाहिये। आभार Jain Educationa International जिन-जिन महानुभावों ने जम्बूद्वीप के निर्माण में तन-मन-धन से किसी भी प्रकार का सहयोग प्रदान किया है उन सभी के प्रति संस्थान की ओर से मैं इस शुभअवसर पर हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं जिनके सहयोग से यह जम्बूद्वीप का निर्माण जैन संस्कृति एवं भारतीय संस्कृति की एक विशाल सांस्कृतिक धरोहर के रूप में आने वाले वर्षों में विश्व में ख्याति का स्थान प्राप्त करेगी, ऐसा मुझे विश्वास है । उपरोक्त समस्त कार्यों में पूज्य गणिनी आर्यिकारत श्री ज्ञानमती माताजी के आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन के लिये हम कृतज्ञ है। संस्थान की वर्तमान कार्यकारिणी (अप्रैल, १९९१ से मार्च १९९४ तक) निम्न है-. For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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