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पूज्य माताजी द्वारा अनुवादित अष्टसहस्री का हस्तलेख
सन् १९७० - टोडारायसिंह
ॐ नम: सिरन्यः कापी अ. 236 नं. अघ अष्ठ-परिच्छेदः
कारिका पुष्यदकलंकवृत्ति समंतमद्रप्रणीत वाम । निर्जितदुर्णघनादा-मष्टसाप्तीमवैति सदृायः ॥ अप- अकलंक-
निषअको पुष्ट कले लाली अघवा अनलंब देनले द्वारा रचित अष्ट शती कामक्रीटीया को पुष्ट कानेवाली एवं समंत भद केल्याणस्वरूप तल्लोअर्धमागधन कानेवाली अपना श्रीसमंतभद्रस्वामी द्वारा रचित देवाशन लोन सेतो जय का प्रतिपादन
नेवाली इस अष्टमहसी नामकी टीका सो सम्माष्टिजा दुर्णधबाद को जीतने वाती समान है। कारिक वी. सिक देवत: सर्वन प्रत्यवादितो गतिः । तिबेदागमात्सर्व विरूदाधमतान्यपि ॥er
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