Book Title: Aryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Author(s): Ravindra Jain
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

Previous | Next

Page 779
________________ 'गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रंथ ७११ संस्थान के संरक्षक, अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महामंत्री, मंत्री, उपमंत्री एवं कोषाध्यक्ष आदि पदाधिकारियों के अतिरिक्त अनेक गणमान्य महानुभाव इस संस्थान के सदस्य बनकर संस्थान की सेवा करते आये हैं और आज भी कर रहे हैं। संस्थान की वर्तमान कार्यकारिणी में पदाधिकारी एवं सदस्यों की संख्या frefer यहाँ पर एक बात बताना मैं आवश्यक समझता हूँ कि संस्थान की कार्यकारिणी का प्रत्येक तीन वर्ष में जो गठन किया जाता है उसमें अनेक प्रांतों के प्रतिनिधित्व को ध्यान में रखा जाता है। उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, गुजरात, कलकत्ता, आसाम आदि प्रदेशों के महानुभावों को भी कमेटी में मनोनीत किया जाता है। इस मनोनयन में संस्थान के प्रति सहयोग, निष्ठा एवं पूज्य माताजी के प्रति श्रद्धा को अवश्य ध्यान में रखा जाता है। उपसमितियों का निर्माण: संस्थान के अंतर्गत समय-समय पर बड़े-बड़े आयोजन होते रहते हैं। उन आयोजनों के लिये संस्थान के अंतर्गत उपसमितियों का गठन किया जाता रहा है। जैसे पंचकल्याणक प्रतिष्ठायें आदि । पंचकल्याणकों के अलावा संस्थान के अंतर्गत सन् १९८२ से १९८५ तक एक वृहद् आयोजन किया गया। जिसका नाम था "जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति प्रवर्तन" यह देश व्यापी आयोजन सम्पूर्ण भारतवर्ष में अहिंसा, सदाचार, धार्मिक सहिष्णुता एवं जम्बूद्वीप के प्रचार-प्रसार का था। इस ज्ञानज्योति के अध्यक्ष पद पर श्री निर्मल कुमार सेठी को मनोनीत किया गया था तथा ब्र० श्री मोतीचंद जैन व ब्र० श्री रवीन्द्र कुमार जैन प्रवर्तन के महामंत्री रहे हैं। केन्द्रीय समिति के अलावा समस्त प्रांतों में अलग-अलग प्रांतीय समितियों का गठन किया गया था जिनके द्वारा लगभग ३ वर्ष तक ज्ञानज्योति का सफल संचालन हुआ है। संस्थान का प्रमुख कार्य जम्बूद्वीप रचना का निर्माण: इस संस्थान का उद्भव जिन प्रमुख उद्देश्यों के लिये हुआ था उसमें सर्वप्रमुख उद्देश्य तो जम्बूद्वीप रचना का निर्माण ही था। इस संबंध में हम ऊपर बता आये हैं कि संस्थान के निर्माण कार्य हेतु हस्तिनापुर तीर्थ स्थल का चयन किया और सम्पूर्ण गतिविधियां यहीं से संचालित की जाने लगीं। जम्बूद्वीप निर्माण के लिये सुदर्शन मेरु के निर्माण का शिलान्यास २२ जून १९७४ को कर दिया गया था लेकिन निर्माण कार्य सन् १९७५ में प्रारंभ किया जा सका। निर्वाण महोत्सव के बाद पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी का ससंघ मंगल विहार दिल्ली से हस्तिनापुर की ओर हो जाता है और पूज्य माताजी की प्रेरणा से आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज का भी ससंघ विहार हस्तिनापुर तीर्थ के दर्शन हेतु दिल्ली से हस्तिनापुर के लिये हो जाता है। आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज का संघ एवं पूज्य ज्ञानमती माताजी का संघ दोनों संघ हस्तिनापुर दिगंबर जैन तीर्थ क्षेत्र के प्राचीन बड़ा मंदिर में ही ठहरते हैं, क्योंकि तबतक कोई भी कमरे आदि का निर्माण जम्बूद्वीप स्थल पर नहीं हुआ था। भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा को विराजमान करने का उपक्रम: जनवरी १९७५ में पूज्य माताजी का हस्तिनापुर तीर्थ पर आगमन होता है। इधर दिगंबर जैन मंदिर के अंतर्गत नवनिर्मित जल मंदिर एवं भगवान बाहुबली का पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव फरवरी १९७५ में होने का निर्णय हो गया। दिगंबर जैन तीर्थ हस्तिनापुर के प्रधानमंत्री श्री सुकुमारचंद जैन एवं अन्य पदाधिकारियों ने प्रतिष्ठाचार्य के संबंध में पूज्य माताजी से निवेदन किया पूज्य माताजी ने सोलापुर निवासी पं० वर्धमानपार्श्वनाथ शास्त्री का नाम बताया। पूज्य माताजी के परामर्श के अनुसार क्षेत्र कमेटी ने पं० वर्धमानपार्श्वनाथ शास्त्री को आमंत्रित किया और प्रतिष्ठा का शुभ मुहूर्त फाइनल हो गया। इधर जम्बूद्वीप स्थल पर विराजमान कराने के लिये भगवान् महावीर स्वामी की सवा नौ फुट ऊंची अत्यंत मनोज्ञ प्रतिमा जी दिल्ली के एक श्रेष्ठी श्री संतोष कुमार जैन, ज्योति इम्पेक्स की ओर से प्राप्त हुई थी। अतः पूज्य माताजी की यह भावना हुई कि भगवान् महावीर स्वामी की प्रतिष्ठा भी इसी अवसर पर करा दी जाये। चाहे एक छोटा सा ही कमरा बन सके। - पूज्य माताजी ने ब्र० मोतीचंद जी व मुझे आज्ञा दी कि एक छोटा सा कमरा बनाकर भगवान् महावीर स्वामी की प्रतिमा विराजमान करना है और प्रतिमाजी की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा कराना है। हम लोग असमंजस में पड़ गये कि संस्थान के पास अभी कुछ भी धनराशि बैंक में नहीं है। इधर प्रतिष्ठा में मात्र २०-२५ दिन शेष हैं। लेकिन पूज्य माताजी की आज्ञा शिरोधार्य कर लगभग २५०००/- रु. की लागत से मंदिर कमरा निर्माण का कार्य प्रारंभ कर दिया गया। मंदिर निर्माण की बात करते ही एक प्रतिष्ठित महानुभाव ने कहा कि इतनी जल्दी मंदिर का बनना अ...अ...अ... असंभव है। असंभव शब्द वैसे तो कान में बार-बार गूंजता रहा लेकिन मन में इस बात का विश्वास था कि पूज्य माताजी की भावना अवश्य फलवती होगी और भगवान् महावीर स्वामी निश्चित रूप से विराजमान होंगे। इन्हीं भावनाओं को संजोये हुये हम लोग निर्माण कराने में जुट गये। जनवरी के महीने में हस्तिनापुर में सर्दी अधिक पड़ती है। किसी किसी दिन तो इतना कोहरा पड़ता है कि कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता, फिर भी रात में रजाई ओढ़कर और खुले मैदान में बैठकर गैस के उजाले में निर्माण चलाया गया। क्योंकि स्थल पर कोई कमरा नहीं, बिजली नहीं, कोई साधन नहीं। केवल खेत का एक भूखण्ड जंगल Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822