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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
नारी आलोक-भाग-१,२
समीक्षिका-श्रीमती कल्पना जैन, भोपाल (म.प्र.)
कथापूर्ण शिक्षाकुंजसंस्कार और संस्कृति का संरक्षण और संवर्द्धन करने में नारी की सदैव प्रमुख भूमिका रही है। धर्म और विश्वासों की सुरक्षा नारी ने कठोर तपस्या का पालन कर और व्रत-उपवासों की प्रतिमूर्ति बनकर किया है। चिन्तन और सृजन की ऊँचाइयों को छूने वाले महापुरुषों को जन्म देने वाली के रूप में ही नारी प्रसिद्ध नहीं है, अपितु महापुरुषों के पूर्ण विकास की यात्रा में भी नारी आर्यिका जैसे श्रेष्ठ पद को धारण कर उनके साथ गतिशील हुई है। अतः ज्ञान और चरित्र, धर्म और दर्शन, आचरण और व्यवहार, व्यवस्था और संचालन आदि अनेक क्षेत्रों में विभिन्न युगों में नारी ने कई कीर्तिमान स्थापित किये हैं। वर्तमान में जो कतिपय नारी आदर्श व्यक्तित्व उभर कर सामने आये हैं, उनमें पूज्या गणिनी आर्यिका ज्ञानमतीजी माताजी प्रमुख हैं। ___आर्यिका-रत्न परमपूज्या ज्ञानमती माताजी केवल विदुषी जैन साध्वी ही नहीं, अपितु उनका सृजनशील लेखकीय व्यक्तित्व ही मुखर हुआ है। उन्होंने केवल धर्म और दर्शन के कठिन ग्रंथों का लेखन ही नहीं किया, अपितु बालकों और नारी जगत् के नैतिक उत्थान हेतु उन्होंने ज्ञानवर्द्धक और आकर्षक ललित साहित्य भी लिखा है। उनके द्वारा लिखित जैन बाल-भारती (भाग-१,२,३) बाल विकास (भाग-१,२,३,४) एवं नारी
आलोक भाग-१ एवं २ प्रसिद्ध रचनाएं हैं। यहाँ नारी आलोक के प्रतिपाद्य विषय और प्रस्तुतिकरण पर ही किंचित् विचार अभिव्यक्ति प्रस्तुत की जा रही है। 'नारी आलोक' नामक ये पुस्तिकाएं वास्तव में वे बोधकथाएं हैं, जो जीवन के कंटकाकीर्ण मार्ग में पाथेय और प्रकाश का कार्य करती हैं। इन लघु, किन्तु सारगर्भित पुस्तकों से नारी जगत् का गौरव बढ़ा है। ___ नारी आलोक भाग एक में महासती चंदना, सती सुलोचना, रानी चेलना, नागश्री, अहिल्या, द्रौपदी, आदि जैन संस्कृति में प्रतिष्ठित नारियों के जीवन, चरित्र का सहज और सुबोध शैली में सुंदर चित्रण किया गया है। यह पुस्तक महामंत्र णमोकार के महत्त्व और स्वरूप को उद्घाटित करती है तो दूसरी ओर जैन दर्शन की कई मूलभूत बातों की जानकारी भी इससे होती है। गुरुओं की भक्ति आत्मा के स्वरूप को दर्शाने वाली है। गुरु के महत्त्व को प्रकट करते हुए पुस्तक की लेखिका पूज्या माताजी ने यह ठीक ही कहा है
"सदैव गुरुओं की भक्ति करना चाहिए। गुरु अज्ञानान्धकार को नष्ट करते हैं, इसलिए दीपक हैं, सबका हित करते हैं, इसलिए बंधु हैं और संसार-समुद्र से पार करने वाले होने से सच्चे कर्णधार हैं। अतः तन, मन, धन से ऐसे सच्चे गुरुओं की सेवा, शुश्रूषा, आराधना, भक्ति आदि करते रहना चाहिए।" (पृ. १५)
___यह पुस्तक बालिकाओं के जीवन को संवारने वाली है। गृहस्थी के उपवन में केवल पुत्र ही नहीं, अपितु पुत्रियां भी मूल्यवान् रत्न की तरह कीमती हैं। आदिपुराण का उद्धरण देते हुए यहाँ कहा गया है कि समुद्र ही केवल रत्नाकर नहीं है, अपितु जिनके घर में कन्या रूपी रत्न उपस्थित है, वे माता-पिता भी रत्नाकर की तरह सुशोभित होते हैं।
पूज्या माताजी ने आधुनिक नारी जगत् को हृदयग्राही शब्दों में जो जीवनयापन करने का उद्बोधन दिया है, वह आज अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष क अवसर पर नारी समाज के लिए दीक्षान्त भाषण की तरह है। यथा-"प्रिय बालिकाओ, फिर भी तुम सभी को अपना इस लोक और परलोक सर्वोत्कृष्ट बताने का ही पुरुषार्थ करना चाहिए। सुनो, तुम सब मिलकर महिला समाज को संगठित करो। दहेज प्रथा का विरोध पुत्रों की माताओं से कराओ, साहस-पूर्वक धर्म मार्ग में दृढ़ रहो, अपने सम्यक्त्व की और शीलरत्न की रक्षा करके परलोक में स्त्री पर्याय को जलांजलि दे दो। देवपूजा और गुरुभक्ति को अपना दैनिक कर्त्तव्य समझो, नित्य ही स्वाध्याय करो, घर में स्वस्थ और प्रसन्न वातावरण निर्मित करने के लिए अच्छी कथाएं सुनाओ, स्वयं प्रसन्नचित्त रहकर सबको प्रसन्न रखो। ब्याह के बाद जिस घर में पहुँचो, उसे स्वर्ग सदृश बनाने की चेष्टा करो, कलह-अशांति को छोड़कर धर्म की रक्षा में रानी चेलना का उदाहरण सामने रखो। अपने पति को यदि श्रेणिक समक्ष धर्मनिष्ठ न बना सको तो कम से कम आप उनके साथ अधार्मिक मत बनो।" (पृ.६५)
नारी आलोक के दूसरे भाग में जैन परम्परा की प्रतिष्ठित नारी रत्नों के जीवन प्रसंगों को आकर्षक शैली में प्रस्तुत किया गया है। इस उपयोगी पुस्तिका से ज्ञात होता है कि नारियां प्रत्येक युग में प्रेरणादायक और पुरुष की सहचरी रही हैं। जैन धर्म के इतिहास में जिन प्रमुख नारियों की भूमिका रही है, उनमें से अधिकांश जीवन प्रसंग इस पुस्तिका में प्रस्तुत किये गए हैं। नारी आलोक का यह द्वितीय भाग प्रकारान्तर से जैन धर्म दर्शन की सभी महत्त्वपूर्ण बातों को भी हृदयंगम करा देता है। उपवास के गुण के विवेचन में सती सीता का उदाहरण प्रेरणादायक है। मानव जीवन का सार स्पष्ट करते हुए पूज्या
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