Book Title: Aryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Author(s): Ravindra Jain
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 631
________________ वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला [५६५ प्रतिफल यहीं देखने को मिला कि ज्योति प्रवर्तन का कार्य दिन-प्रतिदिन सरल होता जा रहा है। प्रत्येक गाँव और शहर निवासी चाहे, वे तेरहपंथी रहे या बीसपंथी, कानजीपंथी अथवा अन्य कोई भी, सभी ने जिस सहृदयता एवं स्नेहपूर्वक सहयोग दिया, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। यही कारण था कि संचालक महोदय के साथ-साथ ज्योति प्रवर्तन का सारा स्टाफ असीम प्रसन्नता के साथ नगर-नगर की यात्रा का आनंद लेता रहा। अपने निश्चित कार्यक्रम के अनुसार यह मंगल-यात्रा हिण्डौन, महुआ, सिकन्दरा, बाँदीकुई, दौसा, लालसोट, गंगापुर, सवाई-माधोपुर, उनियारा, पीपलू, मालपुरा, चाकसू, पद्मपुरी, सांगानेर में प्रोग्राम करती हुई ३ जुलाई, १९८२ को सायंकाल जयपुर शहर में पहुँच गई। रात में ही सभा का आयोजन हुआ। इस माह के इस प्रवास में एक ज्योति ने लगभग ६० स्थानों पर ज्योति प्रस्फुरित कर ज्ञान का संदेश दिया। शहर में प्रवेश से पूर्व ही रथ के अन्दर बैठे संचालक पं. जमादारजी ज्ञानज्योति के बारे में बताना प्रारंभ कर देते थे; अतः सभास्थल तक पहुँचते-पहुँचते हजारों की संख्या में जनसमूह उमड़ पड़ता था। इसी उत्साह के साथ प्रायः ८ बजे जुलूस के पश्चात् जयपुर के रामलीला मैदान में आचार्यरत्न श्री देशभूषणजी महाराज के संघ सानिध्य तथा आर्यिका श्री अभयमती माताजी एवं क्षुल्लक श्री सन्मतिसागरजी के सानिध्य में विशाल सभा का आयोजन हुआ। राजस्थान के राज्यपाल महोदय ने ज्ञानज्योति का भव्य स्वागत किया। अपार जनसमूह जुलूस के साथ था एवं हजारों स्त्री-पुरुष मकान की छतों पर चढ़कर ज्योति दर्शन का आनंद प्राप्त कर रहे थे। वह स्थल भी धन्य हो गया, जहाँ बनी थीं ज्ञानमतीमाधोराजपुरा (राज.) जिसने आर्यिका श्री ज्ञानमतीजी का निर्माण स्वयं किया था, वह अपनी ज्ञानज्योति के प्रकाश से अछूती कैसे रह सकती थी? ७ जुलाई को उस पवित्र नगरी में अभूतपूर्व स्वागत हुआ। ज्ञानज्योति का तथा ज्ञानमती माताजी का संदेश विद्वान् पंडित बाबूलाल जमादार के माध्यम से जनमानस ने श्रवण किया कि इस संसार में निवास कर रहे प्रत्येक प्राणी जम्बूद्वीप के ही निवासी हैं, जम्बूद्वीप के ही छोटे से हिस्से में भारत जैसे अनेक देश एवं राजस्थान सरीखे हजारों प्रदेश हैं, जो कि विज्ञान की खोज के विषय हैं। ज्ञानमती निर्माण की संक्षिप्त कहानीसन् १९५६ में बैशाख कृष्ण दूज को चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागरजी महाराज के प्रथम पट्टाधीश, विशाल चतुर्विध संघ के अधिनायक आचार्य श्री वीरसागरजी महाराज ने क्षुल्लिका वीरमतीजी को इसी माधोराजपुरा नगरी में आर्यिका की दीक्षा प्रदान कर "ज्ञानमती" नाम प्रदान किया था एवं उनकी तीक्ष्ण ज्ञानप्रतिभा को देखकर संक्षिप्त संबोधन भी प्रदान किया था कि "ज्ञानमती ! मैंने जो तुम्हारा नाम रखा है उसका सदैव ध्यान रखना।" गुरुदेव की दूरदर्शिता ने जाने उनमें क्या-क्या विशेषताएं देखी थीं। यह तो सौभाग्य का ही विषय मानना पड़ेगा कि उसी निर्माण भूमि पर ज्ञानमती की विस्तृत ज्ञानप्रभा से प्रकटित ज्ञानज्योति का पदार्पण हुआ है। आकाशवाणी जयपुर केन्द्र से ज्ञानज्योति प्रायोजित कार्यक्रम रिले हुआजुलाई, १९८२ से अगस्त, १९८२ तक जयपुर आकाशवाणी (विविध भारती) से बुधवार की रात्रि ९.४५ बजे से १०.०० बजे तक १५ मिनट का प्रायोजित कार्यक्रम प्रसारित हुआ। पहले से ही सम्यग्ज्ञान तथा अन्य अखबारों में इस कार्यक्रम की सूचना प्रचारित हो जाने से हिन्दुस्तान के अधिकाधिक जैन बंधुओं ने उसे सुना तथा प्रशंसात्मक पत्र भी भेजे। अजमेर महानगरी में भी ज्योतिरथ का आगमन हुआ१ अगस्त, १९८२ को राजस्थान की गली-गली में सर्वोदय तीर्थ का प्रचार करती हुई ज्ञानज्योति ने अजमेर में मंगल प्रवेश किया। इस शुभ अवसर पर पूर्व संध्या में केशरगंज दिगम्बर जैन मंदिर के प्रांगण में एक सार्वजनिक सभा का आयोजन हुआ, जिसमें सरसेठ भागचंदजी सोनी आदि विशिष्ट सम्माननीय महानुभावों ने जम्बूद्वीप एवं ज्ञानज्योति के विषय में प्रकाश डाला। आस-पास काभवच मन के गांवों से भी जनता ने पधारकर धर्मलाभ प्राप्त किया। अजमेर समाज के विशेष आग्रह पर ब्र. मोतीचंदजी व रवीन्द्रजी दिल्ली के गणमान्य श्रेष्ठियों के अजमेर (राज.) में ज्ञानज्योति स्वागत सभा में प्रवचन करते हए क्षुल्लकरत्न श्री सिद्धसागर जी। साथ वहाँ पहुँचे। इसी प्रकार से जयपुर, कोटा, ब्यावर, रामगंजमंडी आदि अजमेर (राज. स्थानों से भी ज्ञानज्योति समिति के पदाधिकारियों ने अजमेर पहुँचकर ज्योति - HTND Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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