Book Title: Aryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Author(s): Ravindra Jain
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

Previous | Next

Page 638
________________ ५७२] सानिध्य साधु का नाम १. आचार्यरत्न श्री देशभूषण महाराज ससंघ २. आचार्यश्री धर्मसागर महाराज ससंघ ३. आचार्यकल्प श्री श्रुतसागर महाराज ससंघ ४. उपाध्याय श्री अजितसागर महाराज ससंघ ५. मुनि श्री आनन्दसागर महाराज ६. मुनि श्री पार्श्वकीर्ति महाराज ७. मुनि श्री मल्लिसागर महाराज ८. आर्यिका श्री विशुद्धमती माताजी ९. आर्यिका श्री अभयमती माताजी क्षु.. सन्मतिसागर महाराज १०. ११. क्षुल्लक श्री सिद्धसागर महाराज गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ गुरु प्रशस्त वाणी कल्याणी आचार्य श्री समन्तभद्र स्वामी ने तपस्वी निर्ग्रन्थ गुरुओं का लक्षण बताते हुए कहा है विषयाशावशातीतो, निरारंभो ज्ञानध्यानतपोरक्तस्तपस्वी स परिग्रहः । प्रशस्यते ॥ केशरिया जी में ज्योतिरथ के संचालक पंडित श्री बाबूलाल जमादार का स्वागत करते हुए मंत्री श्री हीरालाल Jain Educationa International नगर नाम जयपुर लोहारिया लोहारिया सलूम्बर अलवर मदनगंज किशनगढ़ कोटा अर्थात् पंचेन्द्रिय विषयों की अभिलाषा से रहित, आरंभ और परिग्रह के त्यागी नग्न दिगम्बर मुनिराज निरन्तर ज्ञान, ध्यान, तप में लीन रहने वाले तपस्वी साधु कहलाते हैं। इन्हीं तपस्वियों की श्रृंखला में वर्तमान युग भी गौरवशाली है, जिसे कतिपय विशिष्ट ज्ञानी साधुओं का समागम है । प्राप्त हुआ उदयपुर जयपुर जयपुर अजमेर 1. भारतगौरव आचार्यरत्न श्री देशभूषणजी महाराज ने जयपुर के रामलीला मैदान में आयोजित विशाल सभा के मध्य ज्ञानज्योति प्रवर्तन समारोह के आयोजकों को तथा समस्त जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा "यह ज्ञानज्योति भगवान महावीर की ज्योति है। जिस प्रकार भगवान महावीर ने अपनी आत्मा में ज्ञानज्योति को प्रकट करके उस ज्ञानज्योति के द्वारा सारे संसार को शांति के मार्ग पर लगाया था, उसी प्रकार इस ज्ञानज्योति के भ्रमण से अनेक भव्य प्राणियों का अज्ञान दूर होकर उनके अन्दर ज्ञानज्योति होवे' आचार्यश्री ने ऐसा आशीर्वाद दिया तथा ज्ञानज्योति प्रवर्तन की पावन प्रेरिका परमपूज्य आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के लिए बारम्बार आशीर्वाद प्रदान करते हुए उन्होंने अपनी ओजस्वी एवं सरस वाणी में बताया कि "ज्ञानमती माताजी दिगम्बर जैन समाज की वह महिलारत्न हैं, जिन्होंने बीसवीं शताब्दी के इतिहास को भी बदलकर नारी जाति के लिए एक आदर्श उपस्थित किया है। मै तो उन्हें सन् १९५२ से जानता हूँ, जब उनने असीम संघर्षो पर विजय प्राप्त कर अपनी वीरता का परिचय दिया था। For Personal and Private Use Only जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति के राजस्थान प्रवर्तन के मध्य राजस्थान प्रांत में विराजमान साधुओं का जहाँ सानिध्य प्राप्त हुआ, वहीं उनके दिव्य उपदेशों का सुअवसर भी मिला था। पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी की संप्रेरणा से प्रवर्तित ज्योतिरथ के प्रति समस्त साधुसमूह की वात्सल्यपूर्ण सद्भावना रही है। अतः सभी ने खुले दिल से मंगल ज्योति के विषय में उद्गार व्यक्त किए थे। जिनमें से कतिपय प्रवचनांश यहाँ प्रस्तुत है- ज्ञानसाधना के प्रति उनकी तीक्ष्ण अभिरुचि देखकर मैं प्रारम्भ से ही सोचा करता था कि यदि यह स्त्री की बजाय पुरुष होतीं तो पता नहीं क्या करतीं? उसके राजयोग के विविध चिह्नों से यह स्पष्ट झलकता था कि राष्ट्रीय ख्याति के अनेकानेक कार्य इन कोमल हाथों से सम्पन्न होंगे। आचार्य श्री आज बहुत ही प्रसन्न नजर आ रहे थे तथा उन्हें न जाने कितनी पुरानी स्मृतियाँ याद आने लगीं। उन्होंने अन्त में कहा कि शनमती की ज्ञानज्योति सारे विश्व को आलोकित करे, यही मेरा मंगल आशीर्वाद है। www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822