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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रंथ
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जम्बूद्वीप
-ब्र० रवीन्द्र कुमार जैन, हस्तिनापुर
"जम्बूद्वीप" शब्द को सुनकर सभी के मस्तिष्क में एक जिज्ञासा भरा प्रश्न उभरकर आता है कि यह जम्बूद्वीप क्या है, कहां है, किस देश में स्थित है? अथवा पृथ्वी पर है या आकाश में है। इत्यादि प्रकार से अनेक प्रकार के प्रश्न मन को आन्दोलित करते हैं। इन सभी जिज्ञासाओं की पूर्ति के लिए जम्बूद्वीप के संबंध में हम आपको विस्तृत जानकारी प्रदान कर रहे हैं।
जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे आर्यखंडे...देशे...नगरे... मासोत्तम मासे...पक्षे...दिवसे... । इस मंत्र का उच्चारण प्राचीन काल से विद्वान् पंडित लोग धार्मिक क्रियाओं में करते आ रहे हैं। आज भी इस मंत्र के उच्चारण की परंपरा भारतीय संस्कृति की प्रमुख धारा श्रमण (जैन) एवं वैदिक दोनों में चली आ रही है। भगवान का अभिषेक करते समय, हवन करते समय, गृहप्रवेश एवं विवाह आदि की मांगलिक क्रियाओं में इस मंत्र के उच्चारण को आप देख व सुन सकते हैं। इस मंत्र में सर्वप्रथम जम्बूद्वीपे शब्द का प्रयोग किया गया है, यह सप्तमी विभक्ति के प्रथमा का रूप है इसका अभिप्राय है जम्बूद्वीप में। इसी प्रकार आगे भी भरतक्षेत्रे आर्यखंडे आदि शब्दों में भी सप्तमी का प्रयोग किया गया है। अर्थात् जम्बूद्वीप में भरत क्षेत्र में आर्य खंड में । इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि जम्बूद्वीप के अंतर्गत भरत क्षेत्र है व भरतक्षेत्र में आर्यखंड है। यह जम्बूद्वीप संपूर्ण पृथ्वी मंडल का एक प्रथम द्वीप है जो कि बहुत ही विस्तृत है, आज का उपलब्ध समस्त विश्व इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के आर्य खंड में स्थित है, अर्थात् आर्यखंड का भी बहुत-सा क्षेत्र अभी उपलब्ध नहीं है। फिर तो जम्बूद्वीप का तो 99 प्रतिशत क्षेत्र वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। प्रश्न-यह तो समझ में आया कि पृथ्वी मंडल के मध्य का नाम जम्बूद्वीप है और जम्बूद्वीप का विस्तार बहुत लम्बा-चौड़ा है। लेकिन आप हमें यह तो बतायें कि इसका विस्तृत वर्णन कहाँ उपलब्ध होता है? उत्तर-जैन परंपरा के तिलोयपण्णत्ति जम्बूद्वीप पण्णति, त्रिलोकसार, लोकविभाग, श्लोकवार्तिक एवं तत्वार्थसूत्र आदि ग्रंथों में जम्बूद्वीप का वर्णन विस्तार से देखा जा सकता है। यह ग्रंथ भगवान महावीर के पश्चात् प्राचीन आचार्यों के द्वारा प्राकृत एवं संस्कृत भाषा में लिखे हुये हैं जिनका हिंदी रूपांतर भी हो चुका है। इन्हीं ग्रथों के आधार से पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी ने संक्षेप में त्रिलोकभास्कार, जैन भूगोल एवं जम्बूद्वीप नामक पुस्तकों की रचना की है। जिससे संक्षेप में जम्बूद्वीप को समझा जा सकता है। प्रश्न-आपने बताया कि जैनाचार्यों ने जम्बूद्वीप का वर्णन अनेक ग्रंथों में किया है। कृपया हमें यह भी बतायें कि जैन धर्म के अलावा क्या अन्य धर्मों में भी जम्बूद्वीप का उल्लेख मिलता है? उत्तर-आपका यह प्रश्न भी प्रासंगिक है। वैदिक पंरपरा के अनेक ग्रंथों में जम्बूद्वीप का विस्तार से वर्णन पाया जाता है। यजुर्वेद, अथर्ववेद, सामवेद, अरण्यक, वायु पुराण, विष्णुपुराण, श्रीमद्भागवत्, ब्रह्मांड पुराण, गरुड़ पुराण तथा मत्स्यपुराण आदि में जम्बूद्वीप का वर्णन पाया जाता है।
बौद्ध परंपरा में अभी धर्म को दीर्घनिकाय, मज्झिमनिकाय, पपंचसुरणी, विसुहीमघ महावघ, अट्ठशालिनी आदि ग्रंथों में जम्बूद्वीप का उल्लेख प्राप्त होता है।
अन्य भारतीय एवं पाश्चात्य दर्शनों में भी जम्बूद्वीप का किसी न किसी रूप में वर्णन अवश्य पाया जाता है। इससे इसकी प्राचीनता एवं प्रामाणिकता को निश्चित रूप से स्वीकार किया जा सकता है। प्रश्न-जैन धर्म में हमने सुना है कि तीन लोक होते हैं, कृपया वे लोक कौन-कौन से हैं तथा जम्बूद्वीप किस लोक में पाया जाता है? उत्तर-जैनाचार्यों ने लोक के तीन भाग किये हैं, अधोलोक, मध्य लोक, ऊर्ध्वलोक, अधोलोक में नरक, ऊर्ध्वलोक में स्वर्ग व मोक्ष और मध्यलोक में असंख्यातद्वीप समुद्र हैं जो कि थाली के समान गोलाई लिये हुये एक-दूसरे को घेरे हुये हैं। अर्थात् द्वीप के बाद समुद्र, समुद्र के बाद पुनः द्वीप तथा द्वीप के बाद पुनः समुद्र इस प्रकार से एक-दूसरे को घेरकर असंख्यात द्वीप समुद्र माने गये हैं। जिसमें सबसे बीचोंबीच में पहला जम्बूद्वीप है, जम्बूद्वीप के चारों तरफ लवणसमुद्र है तथा आखिरी द्वीप का नाम स्वयंभूरमणद्वीप व स्वयंभूरमण समुद्र हैं? प्रश्न-हम सब लोग किस द्वीप में रहते हैं? उत्तर-हम सभी लोगों का निवास स्थान जम्बूद्वीप है तथा इसके चारों तरफ लवणसमुद्र नाम का समुद्र है। इसी जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र के आर्यखंड में ही चौबीस तीर्थकरों का जन्म होता है तथा भरत चक्रवर्ती, राम, हनुमान, कृष्ण आदि महापुरुषों ने भी इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के आर्य खंड में जन्म लेकर संसार प्रसिद्ध यश को प्राप्त किया है। भारत जैसे समस्त लगभग १५० देश इसी आर्यखंड में माने गये हैं। यह आर्यखंड भी पूरा उपलब्ध नहीं है। प्रश्नः-ग्रंथों में जम्बूद्वीप को कितना बड़ा माना है? उत्तर-जैनाचार्यों ने जम्बूद्वीप का विस्तार अर्थात् व्यास एक लाख योजन माना है। दो हजार कोस का एक महायोजना माना गया है। इस प्रकार से जम्बूद्वीप का व्यास ४० करोड़ मील का माना गया है।
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