Book Title: Aryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Author(s): Ravindra Jain
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 731
________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रंथ ६६३ सिद्धकूट है, यह १२५ योजन ऊँचा, मूल में १२५ योजन विस्तृत तथा ऊपर 621 योजन विस्तृत है। इस पर जिनमंदिर है। शेष कूटों पर देव-देवियों के आवास हैं। महा सौमनस पर्वत पर ७ कूट- सिद्धकूट, सौमनस कूट, देवकुरुकूट, मंगलकूट, विमलकूट, कांचनकूट, वशिष्ठ कूट ये ७ कूट हैं। विद्युत्प्रभ के ९ कूटों के नाम- सिद्धकूट, विद्युत्प्रभ, देवकुरु, पद्म, तपन, स्वस्तिक, शतज्वाल, सीतोदा और हरिकूट। गंधमादन के ७ कूटों के नाम- सिद्ध कूट, गंधमादन, उत्तरकुरु, गंध मालिनी, लोहित, स्फटिक, और आनंद ये ७ कूट हैं। इन सभी पर्वतों पर सिद्धकूट में जिनमंदिर हैं शेष कूटों पर देव-देवियों के भवन हैं। बत्तीस विदेहःमेरु की पूर्व दिशा में पूर्व विदेह और पश्चिम दिशा में पश्चिम विदेह है। पूर्व विदेह के बीच में सीता नदी है। पश्चिम विदेह के बीच में सीतोदा नदी है। इन दोनों के दक्षिण-उत्तर तट होने से चार विभाग हो जाते हैं। इन एक-एक विभाग में आठ-आठ विदेह देश हैं। पूर्व पश्चिम में भद्रसाल की वेदी है उसके आगे वक्षार पर्वत, उसके आगे विभंगा नदी, उसके आगे वक्षार पर्वत, उसके आगे विभंगा नदी, उसके आगे वक्षार पर्वत, उसके आगे विभंगा नदी, उसके आगे वक्षार पर्वत, उसके आगे देवारण्य व भूतारण्य की वेदी ये ९ हुए। इन ९ के बीच-बीच में एक-एक विदेह देश ऐसे ८ विदेह देश हैं। इस प्रकार सीता-सीतोदा नदी के उत्तर-दक्षिण तट संबंधी ३२ विदेह हो जाते हैं। सोलह वक्षार पर्वत और बारह विभंगा नदी वक्षार पर्वतों के नाम- चित्रकूट, पद्मकूट, नलिनकूट और एक शैल, त्रिकूट, वैश्रवण, अंजनात्मा, अंजन, श्रद्धावान, विजटावान, आशीविष, सुखावह, चन्द्रमाल, सूर्यमाल, नागमाल और देवमाल ये १६ वक्षार पर्वत हैं। वक्षार पर्वत का वर्णन:- ये सभी वक्षार पर्वत सुवर्णमय हैं। प्रत्येक वक्षार पर्वतों का विस्तार ५००० योजन और लम्बाई 16592-योजन है तथा ऊँचाई निषध नील पर्वत के पास ४०० योजन एवं सीता-सीतोदा नदी के पास ५०० योजन है। प्रत्येक वक्षार पर चार-चार कूट हैं। नदी के तरफ सिद्धकूट हैं उन पर जिन चैत्यालय है। शेष तीन-तीन कूटों पर देव-देवियों के भवन हैं। विभंगा नदियों के नामः- गंधवती, द्रहवती, पंकवती, तप्तजला, मत्तजला, उन्मत्तजला, क्षारोदा, सीतोदा, स्रोतोवाहिनी, गंभीरमालिनी, फेनमालिनी और ऊर्मिमालिनी ये १६ विभंगा नदियां हैं। देवारण्यभूतारण्यवन- पूर्व विदेह के अंत में सीता नदी के दक्षिण-उत्तर दोनों तट में दो देवारण्य नाम के वन हैं और पश्चिमविदेह के अंत में सीतोदा नदी के दक्षिण-उत्तर तट पर दो भूतारण्य नाम के वन हैं। विदेह के ३२ देशों के नाम:- कच्छा, सुकच्छा, महाकच्छा, कच्छकावती, आवर्ती, लांगलावर्ता, पुष्कला, पुष्कलावती, वत्सा, सुवत्सा, महावत्सा, वत्सकावती, रम्या, सुरम्या, रमणीया, मंगलावती, पद्मा, सुपद्मा, महापद्मा, पद्मकावती, शंखा, नलिनी, कुमुद, सरित,-वप्रा, सुवप्रा, महावप्रा, वप्रकावती, गंधा, सुगंधा, गंधिला और गंधमालिनी ये ३२ देश हैं। कच्छा विदेह का वर्णन:- यह कच्छा विदेह क्षेत्र पूर्व-पश्चिम में 22127योजन विस्तृत है और दक्षिण उत्तर में 165922 योजन लम्बा है। इस क्षेत्र के बीचोंबीच में ५० योजन चौड़ा २५ योजन ऊँचा 22127 योजन लम्बा विजयार्ध पर्वत है। इस विजयार्ध में भी भरतक्षेत्र के विजया के समान दोनों पार्श्व भागों में दो-दो विद्याधर श्रेणियाँ हैं। इन दोनों श्रेणियों पर विद्याधर मनुष्यों की ५५-५५ नगरियाँ हैं। इस विजयार्ध पर्वत पर ९ कूट हैं। इनमें से। कूट पर जिनमंदिर और शेष ८ कूटों पर देवों के भवन हैं। नील पर्वत की तलहटी में गंगा-सिन्धु नदियों के निकलने के लिए २ कुण्ड बने हैं। इन कुण्डों से ये दोनों नदियाँ निकलकर सीधी बहती हुई विजयार्ध पर्वत की तिमिस्त्र गुफा और खंडप्रपात गुफा में प्रवेश कर बाहर निकलकर क्षेत्र में बहती हुई आगे आकर सीता नदी में प्रवेश कर जाती हैं। इस कच्छा देश में विजयार्ध और गंगा-सिन्धु के निमित्त से छह खण्ड हो जाते हैं इनमें से नदी के पास के मध्य में आर्य खंड है अरौ शेष ५ म्लेच्छ खंड हैं। इस आर्यखण्ड के बीचों बीच में 'क्षेमा' नाम की नगरी है जो इसकी मुख्य राजधानी है। यह एक कच्छा विदेह देश का वर्णन है। इसी प्रकार से महाकच्छा आदि अन्य ३१ देशों की भी व्यवस्था है। एक-एक देश के छह-छह खण्ड:- भरत-ऐरावत क्षेत्र के समान यहां पर भी प्रत्येक देश के ६-६ खण्ड हैं। यहां भी प्रत्येक देश के मध्य विजयार्ध पर्वत हैं। ये विदेह देश पूर्वापर 22127 योजन विस्तृत हैं। प्रत्येक क्षेत्र के दक्षिण-उत्तर लम्बाई 165922 योजन प्रमाण है। इन विदेह देशों के मध्य विजयार्ध पर्वत ५० योजन चौड़ा और देश के समान 2212 योजन लम्बा है। इन विजयों में भी दोनों पार्श्व भागों में २-२ श्रेणियां हैं। अन्तर इतना ही है कि इनमें विद्याधर श्रेणियों में दोनों तरफ ५५-५५ नगरियाँ हैं। इन विजयाओं पर भी ९-९ कूट हैं और २-२ महागुफाएं हैं। विदेह की गंगा-सिन्धु नदियाँ-सीता-सीतोदा के दक्षिण तट के देशों में २-२ नदियाँ हैं उनके नाम गंगा-सिंधु हैं। वे नीलपर्वत के पास जो कुंड हैं उनसे Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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