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. वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला
निष्कर्ष यह निकलता है कि जम्बूद्वीप में जो भी सुमेरु हिमवान् आदि पर्वत हैमवत, हरि, विदेह आदि क्षेत्र, गंगा आदि नदियाँ, पद्म आदि सरोवर हैं ये सब आर्यखंड के बाहर हैं। आर्यखण्ड में क्या-क्या है-इस युग की आदि में प्रभु श्री ऋषभदेव की आज्ञा से इन्द्र ने देश, नगर, ग्राम आदि की रचना की थी तथा स्वयं प्रभु श्री ऋषभदेवजी ने क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र इन तीन वर्षों की व्यवस्था बनाई थी, जिसका विस्तार आदिपुराण में है। उस समय के बनाये गये बहुत कुछ ग्राम, नगर, देश आज भी उपलब्ध हैं। यथा
“अथानन्तर प्रभु के स्मरण करने मात्र से देवों के साथ इन्द्र आया और उसने नीचे लिखे अनुसार विभाग कर प्रजा की जीविका के उपाय किये। इन्द्र ने शुभ मुहूर्त में अयोध्या पुरी के बीच में जिनमंदिर की रचना की। पुनः पूर्व आदि चारों दिशाओं में भी जिनमंदिर बनाये। तदनन्तर कौशल आदि महादेश, अयोध्या आदि नगर, वन और सीमा सहित गाँध तथा खेड़ों आदि की रचना की।
सुकोशल, अवन्ती, पुण्ड्र, उण्डू, अश्मक, रम्यक, कुरु, काशी, कलिंग, अंग, बंग, सुम, समुद्रक, काश्मीर, उशीनर, आनर्त, वत्स, पंचा, मालव, दशार्ण, कच्छ, मगध, विदर्भ, कुरुजांगल, कराहट, महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, आभिर, कोंकण, वनवास, आन्ध्र, कर्नाटक, कौशल, चौण, केरल, दारु, अभीसार सौवीर, शूरसेन, अप्रांतक, विदेह, सिन्धु, गान्धार, यवन, चेदी, पल्लव, काम्बोज़, आरट्ट, बाल्हिक, तरुष्क, शक और केकय, इन देशों की रचना की तथा इनके सिवाय उस समय और भी अनेक देशों का विभाग किया।
२- हैमवत क्षेत्र रोहित-रोहितास्या नदी- पद्मसरोवर के उत्तरतोरणद्वार से रोहितास्या नदीं निकल कर तथा महापद्म सरोवर के दक्षिण तोरण द्वार से रोहित नदी निकलकर हैमवत् क्षेत्र में गिरती हुई पूर्व पश्चिम लवणसमुद्र में प्रवेश कर जाती है। नाभिगिरिपर्वत- हैमवत क्षेत्र के बीचोंबीच में एक नाभिगिरि पर्वत है यह गोल है। इसकी ऊंचाई १००० योजन तथा विस्तार नीचे व ऊपर सभी जगह १००० योजन है। यह पर्वत श्वेत वर्ण का है इसका नाम श्रद्वावान, है। इस पर स्वाति नामक व्यंतर देव का भवन है तथा उसमें जिनमंदिर भी है।
३- हरिक्षेत्रहरित-हरिकांता नदी- महापद्म सरोवर के उत्तर तोरणद्वार से हरिकांता नदी तथा निषध पर्वत के तिगिंछ सरोवर के दक्षिण तोरणद्वार से हरित नदी निकलकर हरिक्षेत्र में बहती हुई पूर्व-पश्चिम लवणसमुद्र में प्रवेश कर जाती है। नाभिगिरि- हरिक्षेत्र में विजयवान नाम का नाभिगिरि पर्वत १००० योजन ऊँचा तथा १००० योजन विस्तार वाला श्वेतवर्ण का है। इस पर धारण नामक व्यंतर देव का भवन जिनमंदिर सहित है।
४. विदेह क्षेत्र सीता-सीतोदा नदी- सीतोदा नदी निषध पर्वत पर तिगिंछ सरोवर के उत्तर तोरण द्वार से निकलती है तथा सीता नदी नीलपर्वत के केसरी सरोवर के दक्षिण तोरणद्वार से निकल कर विदेह क्षेत्र में मेरु पर्वत की प्रदक्षिणा के समान प्रवाह करती हुई पूर्व पश्चिम समुद्र में प्रवेश कर जाती हैं। सीता नदी पूर्व विदेहक्षेत्र में और सीतोदानदी पश्चिम विदेह क्षेत्र में प्रवेश करके बहती हुई पश्चिम लवण समुद्र में प्रवेश करती है। विदेह क्षेत्र का विस्तार:- इस विदेह क्षेत्र का विस्तार336844- योजन है। इस क्षेत्र के मध्य की लम्बाई १ लाख योजन है। सुमेरु पर्वतः विदेह क्षेत्र के बीचों-बीच में सुमेरु पर्वत है। इसका वर्णन पीछे कर आये हैं। गजदन्त पर्वतः- विदेह क्षेत्र में स्थिर सुमेरु पर्वत की चारों विदिशाओं में ४ गजदंत पर्वत हैं ये हाथी के दांत के समान आकार वाले हैं इसीलिए इन्हें गजदन्त यह सार्थक नाम प्राप्त है। भद्रसाल वन में मेरु की ईशान दिशा में माल्यवान गजदन्त, आग्नेय दिशा में महासौमनस गजदंत, नैऋत्य दिशा में विद्युत्प्रभ गजदंत और वायव्य दिशा में गंधमादन गजदंत पर्वत है। दो गजदंत एक ओर मेरु तथा दूसरी तरफ निषध पर्वत का स्पर्श करते हैं। इसी प्रकार दो गजदंत एक ओर मेरु दूसरी ओर नील पर्वत का स्पर्श करते हैं। ये गजदंत सर्वत्र ५०० योजन चौड़े हैं और निषध-नील पर्वत के पास ४०० योजन ऊँचे, तथा मेरु के पास ५०० योजन ऊँचे हैं इनकी लम्बाई 3020960 योजन है।
माल्यवंत और विद्युत्प्रभ इन दो गजदंतों में सीता-सीतोदा नदी निकलने की गुफा है। गजदंतों के वर्ण:- माल्यवान पर्वत का वर्ण वैडूर्य मणि जैसा है। महासौमनसं का रजतमय, विद्युत्प्रभ का तपाये सुवर्ण सदृश और गंधमादन का सुवर्ण सदृश है। माल्यवान गजदंत पर नव कूट- सिद्धकूट, माल्यवान, उसरकौरव, कच्छ, सागर, रजत, पूर्णभद्र, सीता, और हरिसह ये ९ कूट हैं। सुमेरु के पास वाला
१. आदिपुराण पृष्ठ ३६०
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