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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
very happy and giving many thanks by the central committee of Gyan Jyoti Pravartan, Hastinapur and by all the Jain society of Manipur State.
Now we will very happy by your immediate visit to this sacred place of Jamboodweep at Hastinapur.
Thanking you, सिल्वर में जली ज्योति२६ अकूटबर को इम्फाल प्रवर्तन के पश्चात् सिल्चर शहर का क्रम आया, जहाँ बहुत दिन पूर्व से ही ज्ञानज्योति आगमन की प्रतीक्षा चल रही थी। २९ अकूटबर, १९८४ को प्रातः रथ का मंगल पदार्पण होते ही शहर में खुशियों की लहर दौड़ पड़ी।
मैं एवं ब्र. रवीन्द्र कुमारजी और मालतीजी तीन लोग इम्फाल कार्यक्रम के पश्चात् वहीं से हस्तिनापुर के लिए रवाना हो गये। अब ब्र. मोतीचंदजी के प्रमुख निर्देशन में एवं पं. श्री सुधर्मचंदजी के संचालकत्व में ज्ञानज्योति की आगे यात्रा चल रही थी।
प्रातः ९ बजे सिल्चर की स्वागत सभा में श्री ए.के. नाथ एडीशनल डिप्टी कमिश्नर एवं श्री विश्वनाथजी उपाध्याय ने पधारकर प्रवर्तन उद्देश्यों को समझा तथा ज्ञानज्योति का उद्घाटन कर नगर भ्रमण कराया।
आसाम की कोमल धरती पर जहाँ प्राकृतिक हरियाली के सुन्दर कालीन बिछे हुए थे, वहीं सभी नगर एवं शहरों ने अपनी सजावट में कोई कमी नहीं छोड़ी थी, क्योंकि उन्हें अपने चिरप्रतीक्षित अतिथियों का स्वागत जो करना था।
यह प्रान्त आदिवासियों की हिंस्य प्रवृत्तियों से प्रायः सर्वाधिक प्रभावित प्रतीत हुआ, अतः यहाँ प्रमुख रूप से अहिंसा और सदाचार विषयों पर वक्ताओं के प्रवचन हुए। धर्मज्ञान से अनभिज्ञ जनता ने इन प्रवचनों से प्रभावित होकर पर्याप्त मात्रा में माँसाहार का त्याग किया तथा कितने लोगों ने सीमित समय तक के लिए शराब, मांसादि का त्याग किया।
सुख-दुःख उभय स्मृतियों का दिवस ३१ अकूटबर, १९८४ज्योतिरथ आगमन की सूचना से ही "शिलांग" नगर का कण-कण मुखरित हो उठा था। सांस्कृतिक कार्यक्रम, स्वागत सभा, रथयात्रा, बैंडों की धुन, नगर सजावट और अतिथि सत्कार आदि वहाँ की सारी विधाएं खुशियों का परिचय दे रही थीं।
प्रातःकाल की सूर्यलालिमा से जो स्वागत शृंखला प्रारंभ हुई, वह दिन के १२ बजे ही सम्पन्न हुई। सब लोग भोजन पान से निवृत्त होकर आगे के मंगल विहार का विचार बना ही रहे थे कि तभी रेडियो समाचारों से एक दुःखद समाचार ज्ञात हुआ___ "प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की उनके निवास स्थान पर हत्या कर दी गई है।"
कानों से सुने गए इन कटु शब्दों पर विश्वास न होने के बावजूद भी देशवासियों को यह वियोग स्वीकार करना ही पड़ा। ज्योतिरथ भी चूँकि इंदिराजी की उदार भावनाओं से जुड़ा हुआ था, अतः संचालकों को दुःख होना भी स्वाभाविक था।
जहाँ राजधानी दिल्ली तथा अनेक प्रदेश अपने प्रिय नेता के वियोग की प्रतिशोधाग्नि में भड़क उठे थे, वहीं शिलांग में ज्ञानज्योति के सानिध्य में शान्ति के विविध उपाय किए जा रहे थे। इधर हस्तिनापुर में भी देश के प्रधानमंत्री के असामयिक निधन पर धार्मिक, सैद्धान्तिक ग्रंथों का स्वाध्याय बन्द करके णमोकार मंत्र का पाठ प्रारंभ कर दिया गया था।
इंदिराजी के निधन पर उनके पुत्र राजीव गाँधी को देश ने अपना नया प्रधानमंत्री चुना और उस ३१ अक्टूबर को शहीदी दिवस के रूप में घोषित किया।
__ संघर्षों के इन आकस्मिक क्षणों में ज्योति प्रवर्तन का ४ दिनों का कार्यक्रम आगे बढ़ा दिया गया। गोहाटी में रथ खड़ा रहा, पश्चात् स्थिति में कुछ शांति होने पर कामरूप जिले के विजयनगर शहर में पहुँचा।
लघुसमवशरण रचना से सुशोभित इस विजयनगर में ३ नवम्बर, १९८४ को ज्ञानज्योति का मंगल पदार्पण हुआ और गमगीन वातावरण के कारण ज्योति संचालक के निर्देशानुसार जुलूस स्थगित कर दिया गया।
इसके पश्चात् रंगिया, नलवाड़ी, टिट्ट, बरपेटा रोड, बंगाई गांव, गौरीपुर, धुवड़ी होती हुई ज्ञानज्योति ९ नवंबर, १९८४ को दीनहट्टा से सिलीगुड़ी (दार्जिलिंग) पहुँची। यहीं पर आसाम प्रवर्तन का समापन घोषित कर दिया गया।
आसाम ज्ञानज्योति प्रवर्तन में केन्द्रीय प्रवर्तन समिति के महानुभावों के साथ-साथ प्रान्तीय समिति का पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ। श्री हुकमीचन्दजी पांड्या प्रान्तीय कार्याध्यक्ष, श्री राजकुमारजी सेठी-महामंत्री, श्री चैनरूपजी बाकलीवाल-उपाध्यक्ष, श्री पत्रालालजी सेठी-संयोजक आदि कार्यकर्ताओं के अथक परिश्रम से यह प्रवर्तन पूर्ण सफलता के साथ सम्पन्न हुआ।
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