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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
में ९१ नम्बर मिल जाएं। अतः यह कोशिश करूँगा कि कर्नाटक सरकार से उत्तर प्रदेश सरकार एक कदम आगे हो तो अच्छा है .... इत्यादि ।”
उत्तर प्रदेश प्रवर्तन समिति के अध्यक्ष श्री सुमेरचंदजी पाटनी ने मंत्री महोदय के प्रति आभार प्रकट किया।
आज के इस समारोह में बाहर से पधारने वाले विशिष्ट महानुभावों में श्री निर्मलजी सेठी, श्री त्रिलोकचंदजी कोठारीकोटा, श्री उम्मेदमल पांड्या दिल्ली, श्री सुमेरचंद पाटनी-लखनऊ, श्री कैलाशचंद जैन, खदर वाले सरधना, श्री अजित प्रसाद जैन- लखनऊ, श्री निर्वाणचंद जैन- लखनऊ, डॉ. कैलाशचंद जैन-दिल्ली, कैलाशचंद जैन करोलबाग, दिल्ली, श्री अनंतप्रकाशजी जैन-लखनऊ आदि थे।
स्वागत सभा के पश्चात् मंत्री द्वय ने ज्ञानज्योति रथ पर स्वस्तिक बनाकर एवं श्रीफल चढ़ाकर उसका नगर भ्रमण के लिए उद्घाटन किया, उसके बाद उन्हें नगर के प्राचीन दिगम्बर जैन मंदिर का दर्शन कराया गया, पुनः सभी लोगों ने पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी की जन्मस्थली के दर्शन कर उसी पुराने घर में जलपान ग्रहण किया ।
बाहर से पधारे सभी अतिथियों के लिए श्री छोटीशाह जैन सर्राफ एवं श्री कैलाशचंद जैन सर्राफ के यहाँ नाश्ते एवं भोजन की सुन्दर व्यवस्था थी । श्री प्रकाशचंद जैन ने मुख्यमंत्रीजी एवं आबकारी मंत्रीजी को आर्यिका
श्री रत्नमती अभिनंदन ग्रंथ की प्रतियां भेंट की, श्री प्रेमचंद जैन महमूदाबाद वालों ने स्वलिखित "अवध में ज्ञानज्योति” नामक पुस्तक मंत्रीजी को भेंट की । ज्ञानज्योति उद्घाटन के एक शिलालेख का अनावरण भी मंत्रीजी के कर कमलों से मंदिरजी के बाहर करवाया गया तथा जिस गली से होकर ज्ञानमती माताजी की जन्मभूमि तक पहुँचा जाता है, उस गली में "ज्ञानमती मार्ग" का पत्थर भी लगाया गया।
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ANORAMA
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यांति
मुख्यमंत्रीजी के कर-कमलों में उत्तरप्रदेशीय ज्ञानज्योति समिति की ओर
से एक अभिनंदन पत्र भी भेंट किया गया, जिसमें निम्न शब्दों में मंगलभावना न शेोनिष्णा
व्यक्त की गई
टिकैतनगर में स्वागत सभा के मध्य "अवध में ज्ञानज्योति" नामक पुस्तक का विमोचन करते हुए प्रो. वासुदेव सिंह जी, पुस्तक भेंटकर्ता श्री प्रकाशचंद जैन।
मंगल कामना
महानुभाव! आज आपके कर कमलों से उद्घाटित होकर यह जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति उत्तर प्रदेश के लगभग ४०० नगरों में भ्रमण करेगी तथा इसी प्रदेश
की ऐतिहासिक नगरी हस्तिनापुर जहाँ पर इस जम्बूद्वीप का विशाल निर्माण हो रहा है, उस निर्माण की सम्पूर्ति पर अप्रैल, १९८५ में इस ज्ञानज्योति की अखण्ड स्थापना आपके संरक्षण में ही हो, इसी भावना एवं आशा के साथ हम सब नागरिक आपके स्वस्थ एवं दीर्घायु की कामना करते हुए आपका हार्दिक अभिनंदन करते हैं।
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मध्याह में ज्ञानज्योति की विशाल शोभायात्रा निकाली गई, जिसमें हाथी, घोड़े, इन्द्राणियों, झण्डे बैनर एवं हजारों की संख्या में नर-नारियों ने भाग लिया। रात्रि में उसी पण्डाल में पुनः सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ ही ज्योति रथ के संचालक पं. श्री सुधर्मचंद शास्त्री, प्रचारमंत्री श्री त्रिलोक वंद जैन, सनावद आदि का प्रशस्ति पत्र भेंट करके टिकैतनगर जैन समाज की ओर से स्वागत किया गया तथा ज्योतिरथ के अन्य व्यवस्थापकों का
भी
वस्त्रादि
भेंट
करके सम्मान किया गया । टिकैतनगर जैन समाज के वयोवृद्ध लाला श्री पन्नालालजी जैन, साहबलालजी जैन, शांतिप्रसादजी जैन, छोटीशाहजी, मुत्रालालजी, बच्चूलालजी एवं देवेन्द्र कुमार आदि ने ज्ञानज्योति का स्वागत किया।
आज के इस समारोह में लगभग बीस हजार जनसमुदाय एकत्रित हुआ, जिसमें २०० गाँवों से स्त्री-पुरुषों ने पधार कर आयोजन की शोभा बढ़ाई। टिकैतनगर की रानी साहिबा श्रीमती मुत्री देवी ने समारोह का पण्डाल बनाने हेतु भूमि प्रदान कर पुण्यार्जन किया तथा यहाँ की समस्त लघु-वृहद् संस्थाओं ने अपना सहयोग प्रदान करके ज्ञान लाभ प्राप्त किया।
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