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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
सन् ब्यासी चार जून से अठ्ठाइस अप्रैल पचासी तक। दिल्ली से चलकर भारत के सब तीर्थ और पुरवासी तक ॥ इस ज्ञानज्योति में पहुँच सभी को मानवता पथ बतलाया। माँ ज्ञानमती के संकल्पों ने तभी पूर्ण फल को पाया ॥ ९८ ॥
इस ज्ञानज्योति भारत यात्रा का लघु इतिहास लिखा मैंने। प्रत्यक्ष प्राप्त संस्मरणों का कतिपय उल्लेख किया मैंने ॥ इसको पढ़ पुनः ज्ञानज्योती की याद हृदय में आएगी।
"चन्दनामती" तब अन्तर में भी ज्ञानज्योति जल जाएगी ॥ ९९ ॥ पुरुदेव युगादि पुरुष आदीश्वर प्रथम पारणा स्थल पर। संप्रति शुभ तीर्थ हस्तिनापुर के जम्बूद्वीप सुस्थल पर ॥ अपने दीक्षागुरु गणिनी माता ज्ञानमती की छाया में। अक्षय तृतिया के पावन दिन इस कृति को पूर्ण बनाया मैं ॥ १०० ॥
यहाँ तीनमूर्ति मंदिर में जब इथूरस का अभिषेक हुआ। प्रभु आदिनाथ का इक सौ अठ कलशों से महाभिषेक हुआ। पच्चीस शतक अट्ठारहवां निर्वाण वर्ष चल रहा आज।
ज्योतीयात्रा लेखन मैंने सम्पन्न किया प्रभु चरण पास ।। १०१ ॥ दोहा-जब तक जम्बूद्वीप कृति, जग में करे निवास।
ज्ञानज्योति जलती रहे, जम्बूद्वीप के पास ॥ १०२ ॥ यात्रा का इतिहास भी, मुझको दे वरदान । करूँ "चन्दनामती" स्वयं, निज पर का कल्याण ॥ १०३ ॥
पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी के जन्मगृह में जलपान ग्रहण करते हुए मुख्यमंत्री जी
कानपुर में जिलाधीश श्री विजेन्द्र जी ज्योतिरथ का स्वागत करते हुए।
मैनपुरी में उ.प्र. के विद्युतमंत्री श्री घुवीरसिंह जी ज्ञानज्योति रथ पर स्वस्तिक बनाते हुए
लखनऊ शहर में ज्ञानज्योति रथ के ऊपर स्वागतार्थ पधारे मुख्यमंत्री श्री नारायणदत्त तिवारी जी का तिलक कर रहे हैं श्री सुमेरचंद जी पाटनी लखनऊ।
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