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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
प्रत्येक नगरों की भांति इस अंकलेश्वर तीर्थक्षेत्र पर भी उत्साहपूर्वक ज्योतिरथ का प्रवर्तन हुआ। सूरत में ज्ञान ज्योतिगुजरात प्रान्त का प्रसिद्ध व्यापारिक केन्द्र सूरत शहर में ३० सितम्बर, १९८४, रविवार को ज्ञानज्योति का चिरस्मरणीय स्वागत हुआ। ___इतिहासकारों ने इतिहास में बतलाया है कि कभी इस नगर का नाम सूर्यपुर था, किन्तु इसकी समृद्धि, उन्नति देखकर सन् १५२१ में बादशाह मुजफरशाह ने इसका नाम 'सूरत' रखा और इसका विकास उसके बाद निरन्तर बढ़ता ही गया।
ज्ञानज्योति के आगमन पर सूरत के साप्ताहिक पत्र 'जैन मित्र' ने भी अपन अखबारों में उसका खूब प्रचार-प्रसार किया। श्री काशीरामजी राणा मेयर, श्री अशोक कुमार कटारिया, म्यु. कमिश्नर एवं श्री मनमोहन मेहता, पुलिस कमिश्नर ने पधारकर अपने कर-कमलों से रथ का नगर प्रवर्तन कराया। अतिशय क्षेत्र महुवाडॉ. श्री चिमनलालजी शाह बारडोली की अध्यक्षता में आयोजित स्वागत सभा में संचालकजी ने ज्योति प्रवर्तन का महत्त्व बतलाया तथा सभी लोगों ने इस अतिशय क्षेत्र का परिचय प्राप्त किया। सूरत जिले का यह क्षेत्र "विघ्नहर श्री पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र-महुवा" के नाम से प्रसिद्धी को प्राप्त है। इस तीर्थ के इतिहास के साथ एक रोचक विषय ज्ञात हुआ, जिसका उल्लेख करना मैं आवश्यक समझती हूँ
भगवान् पार्श्वनाथ को यहाँ के अबोध भक्तजन संकल्प सिद्धि के देवता कहते हैं। अतः लोग यहाँ तरह-तरह की मनौतियाँ मानते और चढ़ावा चढ़ाते देखे जाते हैं। जिन लोगों को पुत्र प्राप्ति की कामना होती है, वे चांदी का पालना चढ़ाते हैं। नेत्र रोगी चाँदी के नेत्र, पंगु व्यक्ति चांदी की वैशाखी आदि चढ़ाते हैं। इसी प्रकार अन्य रोगी भी चांदी की कोई वस्तु स्वेच्छा से बनवाकर यहाँ चढ़ाते हैं। ___ज्ञानज्योति यात्रा में केवल एक ही मनौती मानी जा रही थी कि जन-जन को ज्ञानलाभ प्राप्त हो तथा अहिंसा धर्म एवं जम्बूद्वीप का व्यापक प्रचार-प्रसार हो। भगवान पार्श्वनाथ की कृपा से यह मनोरथ सिद्ध हो ही रहा था। 'महुवा' के दर्शन करके उसने और भी अतिशय प्राप्त कर लिया
और आगे अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार गंतव्य की ओर चल पड़ी। गुजरात यात्रा समापन मांडवी में२ अक्टूबर, १९८४ को गुजरात के गली-कूचों में भ्रमण करता हुआ ज्ञान ज्योतिरथ मांडवी (सूरत) पहुँचता है। श्री नवलचंद भाई शाह ने रथ का नगर प्रवर्तन कराया तथा प्रान्तीय प्रवर्तन समिति के पदाधिकारियों ने यहाँ पधारकर गुजरात यात्रा के समापन की घोषणा कर दी।
ज्ञानज्योति की जय-जयकारों से शहर गूंज उठा और पं. श्री सुधर्मचंद शास्त्री ने अपने भाषण में पूरे गुजरात प्रान्तीय प्रवर्तन का संक्षिप्त सार बताया। गुजरात प्रान्त के वे नगर जहाँ ज्ञानज्योति का भ्रमण हुआ१. दाहोद (पंचमहाल) गुजरात, २. संतरामपुर (पंचमहाल) गुजरात, ३. जहरे (खेड़ा) गुजरात, ४. अहमदाबाद गुजरात, ५. नरोडा (अहमदाबाद) गुजरात, ६. दहेगांव (अहमदाबाद) गुजरात, ७. रखियाल (अहमदाबाद) गुजरात, ८. तलोद (सावरकांठा) गुजरात, ९. सलाल (सावरकांठा) गुजरात, १०. सोनासन (सावरकांठा) गुजरात, ११. हिम्मतनगर (सावरकांठा) गुजरात, १२. पोशिना (गुजरात), १३. मऊ (सावरकांठा) गुजरात, १४. भिलोड़ा (सावरकांठा) गुजरात, १५. टाकाटूका (सावरकांठा) गुजरात, १६. विजयनगर (सावरकांठा) गुजरात. १७. चोरीवाड़ (सावरकांठा) गुजरात, १८. कडियादरा (सावरकांठा) गुजरात, १९. ईडर (सावरकांठा) गुजरात, २०. तारंगा (सिद्धक्षेत्र) (बनासकांठा) गुजरात, २१. नवावांस (बनासकांठा) गुजरात, २२. दाता (बनासकांठा) गुजरात, २३. सुदासणा (मेहसाणा) गुजरात, २४. मेहसाणा (गुजरात), २५. कलोल (मेहसाणा) गुजरात, २६. गांधीनगर (गुजरात), २७. जूनागढ़ (गिरनारजी), २८. पालीताणा (गुजरात), २९. भावनगर (गुजरात), ३०. घोंघा धधूका (गुजरात), ३१. सोनगढ़ (भावनगर) गुजरात, ३२. सोजिता (खेड़ा) गुजरात, ३३. करमसद (खेड) गुजरात, ३४. बड़ौदा (गुजरात), ३५, पेटलाद (खेड़ा) गुजरात, ३६. बोरसद (खेड़ा) गुजरात, ३७. पावागढ़ (पंचमहाल) गुजरात, ३८. पादरा (बड़ौदा) गुजरात, ३९. बडू (बड़ौदा) गुजरात, ४०. आमोद (भडुच) गुजरात, ४१. भडुच (गुजरात), ४२. अंकलेश्वर (भडुच) गुजरात, ४३. सूरत ( त), ४४. महुवा (सूरत) गुजरात, ४५. बुहारी (सूरत) गुजरात, ४६. ब्यारा (सूरत) गुजरात, ४७. मांडवी (सूरत) गुजरात। गुजरात प्रान्त के तीर्थस्थल१. तारंगाजी, २. पालीताना, ३. पावागढ़, ४. जूनागढ़ गिरनारजी, ५. अंकलेश्वर, ६. महुवा।
१. भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (चतुर्थ भाग) पं. बलभद्र जैन (लेखक)
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