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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
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"जब से मैं इस ज्योतिरथ के गुजरात आगमन के समाचार सुन रहा था, तभी से मन में जिज्ञासा थी कि प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने जिसका उद्घाटन किया है, वह अवश्य ही कोई महान् चीज होगी, क्योंकि इंदिराजी किसी साधारण वस्तु में तो इतनी दिलचस्पी नहीं ले सकती हैं।"
बड़ोदा में गुजरात प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री माधवसिंह सोलंकी ज्ञानज्योति स्वागत
गुजरात के सुप्रसिद्ध कार्यकर्ता ब. श्री कपिलभाई कोट में स्वागत । सभा में "आर्यिका रत्नमती" पुस्तक का विमोचन करते हुए।
आज प्रत्यक्ष में इस यात्रा को देखकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ। लेकिन मुझे हैरानी हो रही है कि ज्ञानमती माताजी ने कैसे इस मॉडल को बनवाया होगा। उनका कितना महान् ज्ञान होगा, जिसके द्वारा हम सभी से विस्मृत इस विषय को पुराणों से निकालकर देश को प्रदान किया है ....।"
नोट : सन् १९८८ के पयूषण पर्व में ब्र. कु. माधुरी के रूप में मुझे बड़ौदा कॉरेलीबाग में प्रवचन हेतु जाने का अवसर प्राप्त हुआ था।
खेड़ा जिले के पेटलाद शहर में डी.एस.पी. श्री नटवर सिंहजी आणंद ने ज्योतिरथ का उद्घाटन किया तथा कॉलेज ऑफ एजूकेशन के प्रिंसिपल श्री उपेन्द्रभाई बी. पाठक स्वागत सभा में मुख्य अतिथि थे।
पावागढ़मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचन्द्र के पुत्रद्वय अनंगलवण (लव) और मदनांकुश (कुश) की निर्वाण भूमि पावागढ़ में २६ सितम्बर को ज्ञानज्योति का पदार्पण हुआ। यहाँ बड़ौदा आदि आस-पास के शहरों से भी महानुभावों ने पधारकर स्वागत सभा तथा जुलूस निकालकर ज्योतिरथ का सम्मान किया। यह हिन्दुओं का भी एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल माना जाता है। पर्वत के ऊपर जाने के लिए अब वहाँ उड़नखटोला (लिफ्ट) की सुन्दर व्यवस्था है। सन् १९८८ में मुझे यहाँ के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। भरूच में डिटी कलेक्टरश्री एम.ओ. झाला, डिप्टी कलेक्टर ने भरूच के ज्योति आगमन पर वहाँ पधार कर स्वस्तिक बनाकर रथ का नगर प्रवर्तन कराया तथा अपने स्वागत भाषण में वहाँ की जैन समाज को बधाई दी। बड़ौदा पर्युषण पर्व के मध्य ही में एक दिन श्री विनोद भाई शाह के आग्रह पर भरूच गई, वहाँ दिन में मेरा मंगल प्रवचन हुआ। सिद्धान्त ग्रन्थ स्थल अंकलेश्वरसूरत और बड़ौदा के मध्य स्थित अंकलेश्वर नामक अतिशय क्षेत्र पर ज्ञानज्योति की यात्रा २९ सितम्बर को सायंकाल में पहुँची। यहाँ एक भौरे में चिन्तामणि पार्श्वनाथ की प्राचीन अतिशय सम्पन्न मूर्ति विराजमान है। लोगों की धारणा है कि इस प्रतिमा के दर्शन से समस्त चिन्ताएं दूर होती हैं तथा मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसीलिए इसे अतिशय क्षेत्र माना जाता है।
एक इतिहास यहाँ से सिद्धान्त ग्रंथ संबंधी भी जुड़ा है। आचार्य श्री धरसेन स्वामी द्वारा प्राप्त अंग और पूर्व ज्ञान के धारी पुष्पदंत और भूतबलि मुनिराज ने यहाँ अपने वर्षायोग के मध्य सिद्धान्त ग्रंथों का लेखन किया था। जिस समय सन् १९८८ में मैं बड़ौदा से पर्युषण पर्व के मध्य अंकलेश्वर के दर्शन करने गई, तब लोगों ने एक छोटी-सी गुफा दिखाकर प्राचीन इतिहास बतलाया कि इसी स्थान पर बैठकर आचार्य द्वय सिद्धांत ग्रंथों का लेखन किया करते थे।
स्थान देखकर मन में अद्भुत आह्लाद हुआ, ऐसा प्रतीत होने लगा, मानो मैंने उन मुनि श्री को लेखन करते हुए साक्षात् ही देख लिया है। उस पावन धरती के रजकण मस्तक पर स्पर्श करके मैंने अपना सौभाग्य सराहा और यह भावना भाई कि हे प्रभो! आचार्यों की उस पवित्र वाणी को हृदयंगम करने का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हो।
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