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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
महाराष्ट्र प्रान्त के सभी जिलों में ज्ञानज्योति का भ्रमण हुआ । दो जून तिरासी श्रीरामपुर में उसका आगमन हुआ ॥ विद्वानों के व्याख्यान हुए शोभायात्रा सानन्द हुई । फिर तीन जून को शिरडी के प्रांगण में ज्योति पहुँच गई ॥ ३० ॥
पर्यटक वित्तमंत्री प्रदेश के श्री सुशीलजी ने आकर। साईंबाबा की नगरी में कर लिया ज्योति पर माल्यार्पण ॥ अब ४ जून की वर्षगाँठ पर "कोपरगाँव ” में स्वागत था ।
इन्द्रा गाँधी ने एक वर्ष पहले जिसका किया स्वागत था ॥ ३१ ॥
फिर नासिक जिले के नांदगांव में एक प्रमुख आकर्षण था । जंबू नामक हाथी के संग यहाँ ज्ञानज्योति का भ्रमण हुआ इस जिले के प्रथम प्रवर्तन पर नगरी में खुशियाँ छाई थीं। जम्बू हाथी पर चढ़ने हेतु बोली यहाँ लगाई थी ॥ ३२ ॥
था सफल प्रवर्तन कितनों ने हस्तिनापुरी को दान दिया। वहाँ जम्बूद्वीप बनाने में कितने लोगों ने नाम दिया ॥ सबके मन में यह इच्छा थी कब जम्बूद्वीप मेला होगा।
उस समय मेरुपर्वत ऊपर अभिषेक हमें करना होगा ॥ ३३ ॥
मनमाड़ व लासलगाँव चांदवड नगर में ज्ञानज्योति आई । प्रान्तीय शासकों ने आ-आकर माला रथ को पहनाई ॥ नासिक के मीठे अंगूरों ने अपना स्वागत दरशाया । बेले गुच्छों के थाल सजाकर ज्ञानज्योति दर्शन पाया ॥ ३४ ॥
मांगार्तुगीजी सिद्धक्षेत्र पर ज्योतिरथ आगमन हुआ। आचार्यकल्प श्रेयांससिन्धु का चउविध संघ विराज रहा ॥ दस जून तिरासी का वह दिन इतिहास पृष्ठ का अंक रहा । श्री चन्द्रसिन्धु के वंशज गुरु से छाया था आनंद वहाँ ॥ ३५ ॥
इक अनहोना संयोग यहाँ बतलाने का अवसर आया। दस जून को ही सन् नब्बे में पंचम आचार्य पट्ट पाया ॥ नव वर्षों के पश्चात् मिलन की बेला कैसी आई थी। श्रेयांससिन्धु ने गुरुपरम्परा से यह पदवी पाई थी ॥ ३६ ॥
यह ज्योति निरन्तर ज्ञानज्योति की दिव्यप्रभा फैलाती है। अनेकांत, अहिंसा तथा विश्वबंधुत्व पाठ सिखलाती है ॥ पहुँची वह मालेगाँव वहाँ से माल बहुत भरकर लाई । धूलिया, कुसुम्बा, कापड़ना, वेटावद, सोनगिरी आई ॥ ३७ ॥
सब शहर गाँव औ गली-गली से ज्योति भुसावल में आई। एदलाबाद सावदा जिला जलगाँव में ज्ञान लहर लाई ॥ जामनेर तथा नेरीपहूर शेंदूर्णी या चालीसगाँव ।
सबने ही ज्ञानज्योति रथ का सम्मान किया था गांव-गांव ॥ ३८ ॥ औरंगाबाद जिले के कमड़ शहर में खुशियाँ छाई थीं। चिरकाल प्रतीक्षित ज्ञानज्योति चूँकि उस नगर में आई थी ॥ महाराष्ट्र राज्यमंत्री अब्दुल अजीज अहमद ने नमन किया। स्वागत कर ज्ञानज्योति रथ का कर धन्य सफल निज जनम किया ॥ ३९ ॥
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