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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
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मध्याह्न २ बजे पपौराजी से टीकमगढ़ में ज्ञानज्योति का आगमन हुआ। यहाँ पर बहु मात्रा में जैन समाज है। दिगंबर जैन मझार के मंदिर के प्रांगण में सभा का आयोजन हुआ, उत्साहपूर्वक बोलियों और जुलूस का कार्यक्रम हुआ। स्थानीय पं. श्री विमल कुमारजी सोरया का भी वक्तव्य हुआ तथा ज्ञानज्योति के साथ उनका अच्छा सहयोग प्राप्त हुआ। रात्रि में भी आम सभा हुई, जिसमें श्री भूरमलजी, पं. सुधर्मचंदजी और भी स्थानीय विद्वानों एवं श्रेष्ठियों के ज्ञानज्योति तथा पू. आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के विषय में वक्तव्य हुए। २५ ता. को टीकमगढ़ सभा आयोजन के पश्चात् रात्रि विश्राम पपौराजी में ही हुआ। इस प्रकार हमें भी पपौराजी के दुबारा दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
२६ मार्च, १९८४, प्रातः ६ बजे पपौराजी से रवाना होकर दिगौड़ा आए। टीकमगढ़ शहर की अपेक्षा कहीं अधिक उत्साह इन नगरवासियों में दृष्टिगत हुआ। एक मील दूर से ज्ञानज्योति का स्वागत यहाँ की जैन अजैन जनता ने किया। दिगौड़ा में एक प्राचीन किला है। इस किले के समीप ही मेन सड़क पर पंडाल बना था, जहाँ ज्ञानज्योति सभा का आयोजन हुआ। गाँव में जैन समाज के ८-१० घर हैं, किन्तु आस-पास के वर्माताल आदि गाँवों के लोगों ने भी आकर उत्साहपूर्वक आयोजन में भाग लिया। बोलियाँ भी बहुत अच्छी हुईं। हम सभी के, पं. सुधर्मचंदजी के ओजस्वी भाषण हुए। यहाँ पास में ही विद्यालय था, उसके भी अध्यापकगण तथा छात्रों ने रुचिपूर्वक वक्तव्य सुनकर अहिंसा धर्म के प्रति आकर्षित होकर ज्ञानमती माताजी का आधुनिक शैली वाला साहित्य प्राप्त किया। सभा की अध्यक्षता श्री विधायक महोदयजी ने की, जिनके द्वारा भी समाज को उचित दिशा निर्देश मिला। इंद्र-इंद्राणियों के सहित ज्ञानज्योति रथ का जुलूस इस नगर के लिए एक अद्भुत दृश्य था। लोगों ने नगर को शादी-विवाह की भाँति बहुत से तोरणद्वारों से सुसज्जित किया और चिरप्रतीक्षित ज्ञानज्योति का जी भरकर स्वागत किया, जिसके लिए संचालक महोदय ने ज्योतिप्रवर्तन की ओर से साभार स्नेह प्रकट किया। भविभागन वश जोगे वशायमध्याह्न २ बजे यहाँ से आगे लिधौरा के लिए ज्ञानज्योति का प्रस्थान हुआ। यह चारित्र का रथ जिनेन्द्र भगवान् के समवशरण के समान महावीर की वाणी का सिंहनाद करता हुआ अपनी गति से आगे बढ़ रहा है। "बहुजनहिताय सबजनसुखाय" के उदार भावों से ओत-प्रोत प्रत्येक जनमानस इसे हृदय से नमस्कार करता है। लिधौरा ग्राम में पहुँचने से पूर्व ही अजनौर एक छोटा-सा कस्बा है, उसकी सीमा पर ही कुछ नौजवान ध्वजा लिए हुए ज्योति के सन्मुख खड़े हो गए। पूर्व निर्धारित प्रोग्राम न होने के बावजूद भी हमें वहाँ ज्योति वाहन को उनके विशेष आग्रह पर रोकना पड़ा। अहिंसामयी इस केशरियाध्वज के समक्ष तो चक्रवर्ती भी झुक गए थे, एल खारवेल जैसे सम्राट् ने भी मस्तक झुका दिया था। हमें भी उन भाक्तिक सहृदय बंधुओं के लिए रुकना पड़ा। उनकी इच्छा थी कि आप गाँव के अन्दर ले चलें, हम लोग अच्छा स्वागत करेंगे, किन्तु आगे ३ बजे के प्रोग्राम के कारण उन्हें अधिक समय नहीं दिया जा सका। संक्षेप में १०-१५ मिनट के अंदर आगन्तुक नर-नारियों ने ज्ञानज्योति के दर्शन करके माल्यार्पण किया और अपनी-अपनी सामर्थ्यानुसार दान दिया। नगर के मान्य व्यक्तियों ने जम्बूद्वीप रचना की योजनाओं के बारे में जानकारी प्राप्त करके उचित धनराशि देकर रचना के समीप लगने वाले शिलापट्ट पर अपना नाम अंकित कराने का भाव प्रकट किया। यहाँ के इस स्वागत कार्यक्रम को हमने यहीं तक सम्पन्न करके लोगों से आगे की अनुमति चाही और अपने निर्धारित समय से १५ मिनट विलम्ब से ज्ञानज्योति का रथ लिधौरा पहुँचा, जहाँ एक घंटे पूर्व से ही लोगों ने स्वागत की तैयारियाँ कर रखी थीं। सभा मंच सार्वजनिक रूप से बाजार में ही बनाया गया था। पूर्व के एम.एल.ए. महोदय को यहाँ पर भी लोगों ने ज्योति के स्वागतार्थ आमंत्रित किया था, फलस्वरूप उनके सभापतित्व में कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। ज्ञानज्योति कार्यकर्ताओं का, विद्वानों का यहाँ की समाज ने पुष्पहार से स्वागत किया। पंडाल का स्थान छोटा होने के कारण जनता दोपहर की कड़ी धूप में भी निश्चिन्त होकर आयोजन देख रही थी। जैन और अजैन सभी लोगों ने बड़े उत्साहपूर्वक विद्वानों के भाषण और योजनाएं सुनीं । बोलियाँ हुई और रथ का जुलूस नगर के विभिन्न मार्गों से निकलता हुआ समस्त नगरवासियों के लिए दर्शनों का अवसर प्रदान किया। सभी ने जाति का भेदभाव छोड़कर अपने-अपने घरों के सामने ज्ञानज्योति की आरती और स्वागत करके यथाशक्ति सहयोग प्रदान किया।
सायंकाल ८ बजे लिधौरा से पृथ्वीपुर में ज्ञानज्योति का आगमन हुआ। डाक विभाग की गड़बड़ी के कारण यहाँ पूर्व से कोई समाचार नहीं ज्ञात हो सका था। किन्तु कार्यकर्ताओं ने सौहार्द और उदारता का परिचय दिया। बड़े ही उल्लास से सारे जैन अजैन समाज को सूचित करके रामलीला मैदान में जन समूह एकत्रित किया। उत्साहपूर्वक रात्रि १.३० बजे तक सभा का आयोजन हुआ, लोगों ने इन्द्रों की बोलियाँ ली और शोभा यात्रा प्रातः ७ बजे से ८ बजे तक निकली। यहाँ २ मंदिर हैं और लगभग ६० जैन घर हैं।
९ बजे ज्ञानज्योति पृथ्वीपुर से निवाड़ी के लिए रवाना हुई। निवाड़ी की जनता ने ज्योति का भावभीना स्वागत किया। ३०-४० जैन घर हैं। एक जैन मंदिर है। लगभग २ बजे तक यहाँ का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
मध्याह्न ३ बजे यहाँ से मऊरानीपुर पहुंचे। यहाँ के लोग ३-४ कि.मी. दूर ज्ञानज्योति की अगवानी करने आए। गाँव में २ विशाल मंदिर हैं, जहाँ धातु के बने हुए पांच मेरु पर्वत गजदंतों सहित प्रतिमाओं युक्त विराजमान हैं। मंदिर में ही सभा का आयोजन हुआ, जहाँ छोटे-छोटे बालकों को लौकांतिक देवों की बोलियाँ प्राप्त हुई और रथ पर बैठे।
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