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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
सोचो प्रभु बाहुबली ने उन्हें फल एक वर्ष के साधन का। देकर शुभ जम्बूद्वीप कृती संदेश दिया पावनता का ॥ यह कैस एक वर्ष साधन का दोनों को संयोग मिला। केवलपद उनको मिला ज्ञानमति माँ को जम्बूद्वीप मिला ॥
११ ॥
सौभाग्य पथिक मानो इसको दक्षिण उत्तर का सेतु मिला। प्रभु बाहुबली के सदृश ही उत्तर में तीरथ एक बना ॥ तुम सबका हर्ष विशाल देख मेरा मन पंछी जाग उठा । बतलाऊंगा सारे जग को है जम्बूद्वीप सुदक्षिण का ॥ १२ ॥
यह चर्चा दो पथिकों की थी संभ्रान्त व्यक्ति इक आ पहुँचा। तुम चलो अभागों ज्ञानज्योति में कैसा हर्षोल्लास मया ॥ बोला है आठ नवम्बर तेरासी का आज सुखद अवसर । जब मेरे मागुर और निपाणी में छाई है हर्ष लहर ॥ १३ ॥
बेलगांव जिले के नगर-नगर में पुष्पों की हरियाली थी। रंग रांगोली ने घर-घर के आगे कर दी दीवाली थी ॥ कुप्पनवाड़ी कोथली शहर ने ज्ञानज्योति अर्चा कर ली । आचार्य देशभूषणजी ने वहाँ धर्मामृत वर्षा कर दी ॥ १४ ॥
आचार्यरन की जन्मभूमि तथा कर्मभूमि कुप्पनवाड़ी। यहीं अन्तसमाधी भी उनकी इसलिए तीर्थभूमी मानी ॥ सिद्धनाल अकोल व शमनेवाड़ी में जनता का भाग्य जगा । इक ग्राम गलतगा था जहाँ पर मुनि सिद्धसेन का जन्म हुआ ॥ १५ ॥
शमनेवाड़ी में बैड ध्वनी ने सबके दिल को जीत लिया। आई बहार थी नगरी में जब बाहुबली का गीत दिया ॥ इस भव्य जुलूस में हज्जारों नर नारी स्वागत में आए। ब्रह्मचारी मोतीचंदजी ने उद्देश्य ज्योति के बतलाए॥ १६ ॥
अब गुरुओं के गुरु शान्तिसिन्धु की जन्मभूमि पर ज्योति गई। बेलगांव जिले के भोजगांव में स्वागत की थी लहर नई ॥ सबने अपने को धन्य किया गुरु जन्मभूमि दर्शन करके ।
वह भोजग्राम भी तीर्थ बना माँ सत्यवती के इस सुत से ॥ १७ ॥
ऐसे ही ग्राम सदलगा में विद्यासागर का जन्म हुआ। तारीख नवम्बर तेरह के दिन वहाँ पर ज्येति प्रवर्तन था। उस शहर की चेयरमैन श्रीमती बाई हनवर ने आकर । इक पुष्पहार को चढ़ा दिया शुभ ज्ञानज्योति पावन रथ पर ॥ १८ ॥
स्वागत भाषण में ज्ञानज्योति की निर्मात्री को धन्य कहा ।
खुद नारी होकर नारी के आदर्शों का माहात्म्य कहा ॥ जब इस धरती पर कलियुग में भी शनमती-सी माता है।
तब बोलो कैसे अबला हो सकती यह भारतमाता है ॥ १९ ॥
अंकली और नश्लापुर शिरगुप्पी से कागवाड़ आई। शेडवाल नगर में ज्ञानज्योति आगमन की हर्ष लहर छाई ॥
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