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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
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क्या कुन्दकुन्द क्या शांतिसिन्धु ने जन्म लिया जब दक्षिण में। तब से ही मुनिचर्या धरती पर फैली है चारों दिश में॥ १ ॥
इस जम्बूद्वीप ज्ञानज्योती ने दिल्ली से प्रस्थान किया। राजस्थानादिक चार महा प्रान्तों में भ्रमण महान हुआ। महाराष्ट्र प्रदेश प्रवर्तन ने स्वर्णिम इतिहास बनाया है।
अब कर्नाटक का शुभ प्रवेश मंगलमय अवसर लाया है॥ २ ॥ रुक जाओ पथिक! तुम कहाँ चले दल बल कैसा यह दिखता है। जहाँ देखो वहीं सजावट है क्या कोई नूतन रिश्ता है। केशरिया ध्वज मंगल तोरण को देखा मैंने गली-गली। हे पथिक! मुझे भी बतलाना यह टोली किसकी ओर चली ॥ ३ ॥
अनजाने राही क्या तुमने अब तक न सुनी पावन गाथा । इक ज्ञानज्योति नामक रथ को भेजा है ज्ञानमती माता ॥ जा रहे बधाई देने हम सब ज्योती रथ के स्वागत में।
इस कारण नगरों में ध्वज तोरण आदि सजाए हैं हमने ॥ ४ ॥ यह ज्योति भले ही उत्तर भारत की प्रतिनिधि बन आई है। लेकिन दक्षिण भारत की ही रचना इसमें दर्शाई है। यह केवल भ्रम है पथिक तेरा यह तो उत्तर की रचना है। हस्तिनापुरी की धरती पर बन रही चैकि यह रचना है॥ ५ ॥
सुन मेरे अनजाने भ्राता इसकी भी एक कहानी है। श्री ज्ञानमती माता की मैंने सच्ची सुनी कहानी है। सन् उन्निस सौ पैसठ में उनका संघ आर्यिका आया था।
कर्नाटक श्रवणबेलगुल में उनने चौमास रचाया था ॥ ६ ॥ वहाँ एक वर्ष तक बाहुबली के चरणों में विश्राम किया। पंद्रह दिन मौनसाधना से एकाग्रचित्त हो ध्यान किया। उनके उस ध्यान की धारा में शुभ जम्बुद्वीप रचना आई। मानो प्रभु बाहुबली ने ही उनको अमूल्य कृति दिखलाई ॥ ७ ॥
जब ज्ञानमती माताजी ने उस ध्यान को वचनों में बाँधा। हम सबने तब दक्षिण में उसे करने का किया इरादा था। लेकिन संयोग जहाँ जिसका हस्तिनापुरी का भाग्य खिला।
दक्षिण की रचना से उत्तरवासी को कितना लाभ मिला ॥ ८ ॥ मत बुरा मानना राहगीर मेरा अपनापन इसीलिए। सारे दक्षिणवासी इसका स्वागत भी करेंगे खोल हिए ॥ हम तो उन ज्ञानमती अम्मा को अपनी अम्मा कहते हैं। उनकी कन्नड़ बारहभावना रचना हम प्रतिदिन पढ़ते हैं ॥ ९ ॥
मैं रोमांचित हो गया पथिक तेरी इन सत्य कथाओं से। सचमुच यह निधी तुम्हारी है प्रभु बाहुबली गाथाओं से ॥ जिन बाहुबली ने एक वर्ष तप कर केवल पद प्राप्त किया। माँ ज्ञानमती ने उनका सानिध एक वर्ष तक प्राप्त किया ॥ १० ॥
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