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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
ज्ञानज्योति की महाराष्ट्र प्रान्तीय यात्रा
सूरज निज किरणों के द्वारा जग का अंधेर भगाता है। सब सोये हुए प्राणियों को निद्रा से शीघ्र जगाता है। ऐसे ही ज्ञानसूर्य जग का मिथ्यात्व अंधेर भगाता है। वह मोह नींद में सोये जगवासी को शीघ्र जगाता है ॥१॥
जिनकी आत्मा इस ज्ञान सूर्य से आलोकित हो जाती है। उनमें ही निज पर के हित की स्वयमेव भावना आती है। वे ज्ञानज्योति का अलख जगा हम सबको मार्ग दिखाते हैं।
अपनी आत्मा में भी रमकर परमात्म वही बन जाते हैं ॥ २ ॥ श्रीज्ञानमती माताजी इस बीसवीं सदी की नारी हैं। जो ब्राह्मी की प्रतिमूर्ति आर्यिका युग की पहली क्वाँरी हैं। निज ज्ञान की पावन गरिमा से अपनी पहचान बनाई है। उनकी पदरज से जनमन में बजने लगती शहनाई है ॥ ३ ॥
इनसे ही प्रगटी ज्ञानज्योति का भव्यरूप साकार हुआ। दिल्ली में ४ जून ब्यासी को इसका खूब प्रचार हुआ। इन्द्राजी ने आशीर्वाद ले किया प्रवर्तन इस रथ का।
जन मन को आकर्षित करता चल दिया ज्ञानज्योति रथ था ॥ ४ ॥ कोने-कोने में इन्द्रप्रस्थ के ज्ञानमती की ज्योति चली। श्री महावीर प्रभु के पावन संदेश सुनाती गली-गली ॥ पहला था राजस्थान प्रान्त गुरुओं का जहाँ सानिध्य रहा। फिर बंगला देश विहार प्रान्त में सम्यग्ज्ञान प्रवाह बहा ॥ ५ ॥
चेतन व अचेतन तीर्थों के आशीषों से रथ धन्य हुआ। चल दिया उड़ीसा से सीधा महाराष्ट्र प्रान्त भी धन्य किया। सतरह अप्रैल तिरासी सन् बम्बई महानगरी आया।
मुनिसंघों का सानिध्य जहाँ उद्घाटन का अवसर लाया ॥ ६ ॥ बोरीवल्ली पोदनपुर से महाराष्ट्र भ्रमण प्रारंभ हुआ। ब्रह्मचारी मोतीचंद भरतजी काला ने नेतृत्व किया ॥ गुजराती मराठी भाषा में माहात्म्य बताया जाता था। इस ज्योति प्रवर्तन का पावन उद्देश्य बताया जाता था ॥ ७ ॥
इस महानगर में बारह दिन तक ज्योति प्रवर्तन करवाया। दिल्ली से जे.के. जैन तथा कुछ मान्य अतिथि को बुलवाया ॥ बाम्बे मलाड़ की जनता ने उत्साह बहुत दिखलाया था।
वहाँ मुख्य अतिथि सांसदजी ने प्रेरक प्रसंग बतलाया था॥ ८ ॥ साहू श्रेयांस प्रसाद जैन भी गोरे गाँव पधारे थे। कितने हि विशिष्ट अतिथियों ने ज्योति के मंत्र उचारे थे॥ शुभ गीत सुमन लेकर रवीन्द्रजी ज्योतिप्रवर्तन में आए। अपने संगीतों से जन मन को आह्लादित करने आए ॥ ९ ॥
भायन्दर, खार तथा वरली में भी स्वागत स्वीकार किया। फिर हीराबाग तथा मांटूगा, ठाणे का भी प्यार लिया ।
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