Book Title: Aryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Author(s): Ravindra Jain
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 650
________________ ५८४ ] गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ यहाँ की पवित्र वंदना के पश्चात् छोटे-बड़े कस्बों का स्वागत स्वीकार करती हुई ज्ञानज्योति का पटना सिटी, आरा, गया, चौपारन, रांची, डाल्टेनगंज, गोमिया, साइम आदि स्थानों पर पदार्पण हुआ। पुनः "फुसरों" नामक ग्राम का स्वागत विशेष स्मरणीय है। उत्साह का अनुकरणीय आदर्श दिनांक २५ मार्च को फुसरो के एक मात्र निवासी श्री मोतीरामजी जैन के पुत्र द्वय (श्रीपालजी एवं श्यामसुंदरजी) के विशेष आग्रह पर ज्योतिरथ का वहाँ मंगल आगमन हुआ। वहाँ बड़े उत्साहपूर्वक उन लोगों ने आरती करके ज्ञानज्योतिरथ का स्वागत किया तथा हस्तिनापुर में बन रही जम्बूद्वीप रचना के लिए दो देवभवनों की निर्माण राशि प्रदान की । इस ज्योति यात्रा के मध्य ऐसे अनेक स्थान आए, जहाँ का प्रोग्राम न होते हुए भी नगर निवासियों के आग्रह विशेष से अत्यल्प समय में भी उनका आतिथ्य स्वीकार करना पड़ा है, फिर भी समयाभाव के कारण बिहार प्रान्त में भी अनेक गाँव छूट गये थे। अतः वहाँ के नर-नारियों ने आस-पास के शहरों में पहुँच कर अपनी श्रद्धा-भक्ति का परिचय दिया था । अनादि सिद्धक्षेत्र सम्मेदशिखर की पावन रज से पवित्र हुई ज्योति २५ मार्च की सायंकाल मधुवन में ज्ञानज्योति का आगमन हुआ। होली के समय इस सिद्धक्षेत्र पर विशेष भीड़-भाड़ हुआ करती है। ज्योतिरथ पदार्पण के समय भी होली का मौसम चल रहा था, अतः बिहार प्रान्त के कार्यकर्ताओं ने रथ को वहाँ पर ६ दिन रोकने का कार्यक्रम बनाया। उस समय सम्मेदशिखरजी में परमपूज्य आचार्य श्री सुबलसागर महाराज ससंघ, पूज्य आर्यिका श्री इन्दुमती माताजी ससंघ तथा आर्यिका श्री विशुद्धमती माताजी ससंघ विराजमान थीं । २९ मार्च को प्रमुख शोभायात्रा निकाली गई एवं आचार्य श्री सुबलसागर महाराज ने शोभायात्रा के बाद अपना मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हुए पूज्य गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी के चतुर्मुखी कार्यकलापों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। इस सम्मेदशिखर पर्वत पर जाकर अनादिकाल से अनन्त तीर्थंकरों एवं असंख्य मुनियों ने मोक्षधाम प्राप्त किया है तथा आगे भी अनन्तकाल तक जम्बूद्वीप भरतक्षेत्र में जन्म लेने वाले समस्त तीर्थकर वहाँ से ही मोक्ष प्राप्त करेंगे, इसीलिए इसे "शाश्वत सिद्धक्षेत्र" कहा जाता है। यहाँ का कण-कण पवित्र माना जाता है, इसी पवित्रता की गंगा में ज्ञानज्योति भी सचमुच पावन हो गई थी । देवघर के देवता भी जाग उठे देवघर (बैजनाथधाम ) हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ है। यहाँ एक विशाल दि. जैन मंदिर का उस समय निर्माण चल रहा था, अब तक वह सम्पन्न हो चुका होगा। स्वर्गीय आचार्य श्री ज्ञानसागर महाराज के गृहस्थावस्था के भतीजे श्री ताराचंद जैन यहाँ के उत्साही कार्यकर्ता थे। उन्होंने ज्ञानज्योति के स्वागत हेतु सुन्दर कार्यक्रम आयोजित किया, स्वागत हेतु वहाँ के चेयरमैन श्री प्रणवकुमारजी सिन्हा उपस्थित हुए । नगर भर में स्थान-स्थान पर तोरणद्वार बनाए गए तथा उत्साहपूर्वक ज्योतिरथ की यात्रा निकली। उस समय ऐसा प्रतीत होता था कि "देवघर " तीर्थक्षेत्र के देवगण भी जाग उठे हैं और ज्ञानज्योति का स्वागत कर रहे हैं। इसके पश्चात् अहिंसा एवं विश्वप्रेम का अलख जगाती हुई ज्ञानज्योति “झुमरीतलैया" पहुँची, यहाँ की ऐतिहासिक शोभा यात्रा ने समस्त जैन- अजैन जनता को आकर्षित कर लिया। चेयरमैन श्री एस.के. दास ने ज्योतिरथ का स्वागत किया तथा ब्र. रवीन्द्र कुमार जैन ने प्रवर्तन के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। बिहार प्रान्तीय प्रवर्तन समिति के अध्यक्ष श्री पूनमचंदजी गंगवाल तथा महामंत्री श्री उम्मेदमलजी शाह ने उपस्थित होकर इस प्रवर्तन को और भी शानदार बना दिया। "हजारी बाग" में कांग्रेस मैदान में सार्वजनिक सभा के द्वारा जनमानस को ज्ञानज्योति का महत्त्व बतलाया गया। यहाँ का समस्त कार्यक्रम बिहार प्रान्तीय प्रवर्तन समिति के कार्याध्यक्ष श्री स्वरूपचंदजी सोगानी के कुशल नेतृत्व में सम्पन्न हुआ । "गिरिडीह" शहर का प्रवर्तन आर्थिक दृष्टि से बिहार प्रदेश के ज्ञानज्योति के इतिहास में द्वितीय स्थान पर रहा। कु. मालती शास्त्री ने अपने ओजस्वी प्रवचन से जनसभा को संबोधित किया। "सरिया" नगर में प्रखण्ड विकास अधिकारी श्री रामबालक सिंह ने ज्योतिरथ का स्वागत किया और अपने सार्वजनिक भाषण में उन्होंने अहिंसा धर्म का व्यापक महत्त्व बतलाया। आचार्य श्री विद्यासागरजी का धर्मप्रेम बिहार प्रान्त में मानवता का अलख जगाती हुई जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति दिनांक ५ अप्रैल सन् ८३ को एक चेतन तीर्थ के अंचल में पहुंचती है, जहाँ युवा आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज अपने संघ सहित विराजे हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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