Book Title: Aryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Author(s): Ravindra Jain
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 633
________________ वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला [५६७ पर्युषण पर्व के पश्चात् द्वितीय चरण का शुभारम्भदिनांक १२ सितम्बर, १९८२ को जिला बूंदी से ज्ञानज्योति प्रवर्तन के द्वितीय चरण का शुभारम्भ वाणीभूषण पंडित जमादारजी के नेतृत्व में हुआ। जिलाधीश श्री सज्जनसिंह राणावत, एस.एस.पी. श्री नारायण सिंहजी एवं मुख्य न्यायाधीश श्री दीनदयालजी खुरेटा ने पधारकर ज्योतिरथ का स्वागत किया तथा सभा में सभी ने अपने-अपने विचार भी प्रस्तुत किये कि सर्वधर्म समभाव का यह उदाहरण अद्वितीय आदर्श को उत्पन्न करने वाला है। वास्तव में आज हम लोगों ने समझा है कि जैनधर्म सार्वभौम सिद्धांतों के ऊपर टिका हुआ है। वह किसी व्यक्ति विशेष का नहीं, प्रत्युत् प्राणिमात्र के कल्याण की बात सिखाता है। जिलाधीश महोदय ने कहा कि इस ज्योतिरथ की योजना बनाने वाली साध्वी श्री ज्ञानमती माताजी कितनी महान् होंगी. यह अनुमान भी सहज नहीं लगाया जा सकता है। इसी प्रकार बूंदी जिले के अलोद, नैनवां, लाखेरी, इन्द्रगढ़, करवर, कापरेन, केशोरायपाटन, तालेड़ा आदि ग्रामों में असीम उत्साहपूर्वक शोभायात्राएं निकली एवं प्रवचन सभाओं के आयोजन हुए। जिसमें संचालकजी ने सामयिक विषयों पर उद्बोधन प्रदान किया। कोटा के भी भाग्य जग गए दिनांक १९ सितम्बर, १९८२ को कोटा (राज.) में ज्ञानज्योति का मंगल पदार्पण हुआ। वहाँ दो दिवसीय कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। राजस्थान के पिछले सभी समारोहों में कोटा का समारोह विशेष प्रशंसनीय रहा। दिल्ली से संसद सदस्य श्री जे.के. जैन भी कोटा ज्ञानज्योति के स्वागत हेतु पधारे, उनकी अध्यक्षता में १९ ता. को प्रातः ८ बजे गीता भवन के विशाल प्रांगण में एक सभा का आयोजन हुआ। परमपूज्य मुनिराज श्री मल्लिसागरजी के सानिध्य में सभा एवं जुलूस का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। इसी शुभ अवसर पर माननीय मुख्य अतिथि श्री जे.के. जैन के सम्मान में कोटा समाज की ओर से अभिनंदन पत्र भेंट कर स्वागत किया गया। ज्ञानज्योति स्वागत सभा कोटा (राज.) में दिल्ली से पधारे सांसद श्री जे.के. जैन एवं श्री ब्र. मोतीचंदजी, रवीन्द्रजी तथा पं. बाबूलालजी के ओजस्वी वक्तव्य बज-कोटा तथा संस्थान के पदाधिकारी श्री ब्र. रवीन्द्र कुमार जैन, त्रिलोकचंद कोठारी हुए। जे.के. जैन ने भी अपने वक्तव्य में समस्त जनसमूह को बतलाया कि जिस प्रकार धर्मचक्र, मंगलकलश के प्रवर्तन से धर्मप्रभावना का विशेष कार्यक्रम हुआ था, वैसे ही ज्ञान-ज्योति के भ्रमण से उससे भी अधिक धर्मप्रचार का कार्य हो रहा है। मुनि श्री मल्लिसागरजी ने ज्योतिरथ को अपना आशीर्वाद देते हुए कहा जिस प्रकार एक हजार वर्ष पूर्व भगवान् बाहुबली की प्रतिमा का निर्माण श्रवणबेलगोला में हुआ था, उसी प्रकार हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप रचना का जो निर्माण हो रहा है, वह बहुत समय तक जैनधर्म की ध्वजा को दिग्दिगन्त में फहराता रहेगा। २० ता. को प्रातः कलेक्टर साहब के करकमलों से उद्घाटन होकर गीता भवन से ज्ञानज्योति की शोभायात्रा प्रारंभ होकर कोटा के प्रसिद्ध क्षेत्रों से निकलती हुई हजारों दर्शकों को आकर्षित कर रही थी। स्थान-स्थान पर लगभग डेढ़ सौ तोरणद्वार बनाए गए थे तथा गीता भवन को बिजली की जगमगाहट से दुल्हन जैसा सजाया गया था। श्री जम्बू कुमार बज, श्री त्रिलोकचंद कोठारी, श्री गणेशीलाल रानीवाला कोटा तथा दिल्ली से पधारे हुए लाला सुमतप्रकाश जैन, श्री जिनेन्द्र प्रकाश जैन ठेकेदार, श्री कैलाशचंद जैन आदि महानुभाव जुलूस के साथ-साथ चल रहे थे। दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान के ये पदाधिकारी प्रमुख-प्रमुख स्थानों पर जाकर ज्ञानज्योति संचालन की गतिविधियों पर नजर डालते थे तथा आवश्यकतानुसार संशोधन आदि भी करते थे; क्योंकि पूज्य माताजी द्वारा संकल्पित प्रत्येक कार्य को आज भी ये सभी पदाधिकारी एवं सदस्यगण अपना कार्य समझकर विशेष भक्तिपूर्वक उसे सम्पन्न करने में संलग्न रहते हैं। प्रोफेसर टीकमचंद जी द्वारा संचालन बागीदौरा (राज.) में ज्ञानज्योति प्रवर्तन के अस्थाई संचालक प्रो. श्री टीकमचंद जैन दिल्ली का स्वागत स्वास्थ्य की गड़बड़ी के कारण ज्ञानज्योति के संचालक वाणीभूषण पं. श्री बाबूलाल जमादार को २० अकूटबर, १९८२ के पश्चात् लगभग एक माह के लिए बड़ौत Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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