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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
जाना पड़ा। अतः इस मध्य संचालन हेतु अन्य विद्वानों का सहयोग प्राप्त हुआ, जिनमें से प्रोफेसर टीकमचंदजी (प्रो. श्यामलाल कालेज, दिल्ली) ने २१ अबूटबर से कुछ दिनों तक ज्ञानज्योति का सफल संचालन किया। बाह्यदृष्टि से ज्ञानज्योति रथ प्रवर्तन हेतु प्रोफेसर साहब का सहयोग प्राप्त हुआ एवं अंतरंग दृष्टि से उन्होंने स्वयं अपने हृदय में ज्ञानज्योति का अविस्मरणीय प्रकाश फैलाया।
लोहारिया (राज.) में तीर्थद्वय का अपूर्व संगमज्ञानज्योति रथ के ऊपर अग्रभाग पर निरन्तर जलती हुई विद्युत ज्योति के समीप ही सोलह चैत्यालय युक्त ३ फुट ऊँचे धातु निर्मित सुमेरु पर्वत ने रथ को मात्र दर्शनीय रूप में ही नहीं, प्रत्युत् तीर्थ सदृश वंदनीय बना दिया था। इसीलिए सभी जगह रथ के आगे आरती करके जनमानस वास्तविक सुमेरु पर्वत दर्शन सदृश पुण्य प्राप्त करते थे।
पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी ने कल्पद्रुम विधान की मानस्तंभ नामक
द्वितीय पूजा की जयमाला में ये पंक्तियां लिखी हैंलोहारिया (राज.) में ज्ञानज्योति का अवलोकन करते हुए पूज्य आचार्य श्री धर्मसागर जी
जिनवर सन्निध का ही प्रभाव, जो मानस्तंभ मान हरते।
यदि सुरपति भी अन्यत्र रचे, नहिं यह प्रभाव वे पा सकते ॥ इसी प्रकार से प्रतिष्ठित सुमेरु पर्वत से स्पर्शित ज्ञानज्योति का रथ भी महान् तीर्थस्वरूप अतिशयकारी बन गया था।
लोहारिया पदार्पण करके वह तीर्थ एक महान् चेतन तीर्थ में विलीन हो गया था। कैसा चेतनतीर्थ था वह ?चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागरजी महाराज की वंशावली में तृतीय पट्टाधीश आचार्य श्री धर्मसागरजी महाराज एवं आचार्यकल्प श्री श्रुतसागरजी महाराज अपने विशाल चतुर्विध संघ सहित उस लोहारिया नगर में चातुर्मास सम्पन्न कर रहे थे। दिगम्बर जैन साधु, साध्वियों को आगम में जंगम-चेतन तीर्थ की उपमा दी है। पुनः जहाँ साक्षात् आचार्य परमेष्ठी एवं साधु परमेष्ठी विराजमान हों, वह भूमि भी यदि तीर्थ कही जावे तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। इसीलिए तीर्थद्वय का यह मिलन अभूतपूर्व दृश्य को उपस्थित कर रहा था।
२७ अक्टूबर, १९८२ को ज्ञानज्योति रथ तथा उसके सहयोगी समस्त कार्यकर्ताओं को आचार्य श्री का मंगल आशीर्वाद प्राप्त हुआ। इस नगर के
लोहारिया में ज्ञानज्योति का अवलोकन करते हए आचार्यकल्प श्री श्रुतसागर जी परिचय में हमें यह भी नहीं भूलना है कि परमपूज्य आचार्य श्री विमलसागरजी महाराज के संघस्थ पूज्य उपाध्याय मुनि श्री भरतसागरजी महाराज की जन्मभूमि होने के नाते लोहारिया नगरी तो पहले से ही एक पावन भूमि थी; अतः यह त्रिवेणी का संगम आज के कार्यक्रम को और भी अधिक महत्त्वपूर्ण बना रहा था।
ब्र. मोतीचंदजी दो-चार दिन पूर्व से ही संचालन व्यवस्था के अवलोकनार्थ गए हुए थे। मैं (ब्रह्मचारिणी माधुरी के रूप में) ब्र. रवीन्द्रजी के साथ उस दिन लोहारिया पहुँची। दिल्ली से और भी कई महानुभाव एवं महासभा के वरिष्ठ पदाधिकारीगण भी इस स्वर्ण अवसर पर वहाँ पधारे। आचार्यश्री के आशीर्वचनआश्विन शु. १० (विजयादशमी) को राजस्थान प्रवर्तन की विजयपताका फहराती हुई ज्ञानज्योति के मंगल आगमन पर लोहारिया दिगम्बर जैन समाज ने विशाल सभा का आयोजन किया, जिसमें आचार्यश्री धर्मसागरजी महाराज सहित समस्त संघ विराजमान हुआ। वयोवृद्ध प्रतिष्ठाचार्य ब्र. सूरजमलजी सहित विभिन्न वक्ताओं के वक्तव्यों के पश्चात् आचार्य श्री ने अपने ओजस्वी प्रवचन से सभी को आप्लावित कर दिया। इसके पश्चात् ज्ञानज्योति की बोलियाँ हुई तथा मंगल जुलूस प्रारंभ हुआ।
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