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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
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मानो आया समवशरण हीजुलूस में आचार्य श्री सहित समस्त संघ जिस समय ज्ञानज्योति के आगे-आगे चल रहा था, उस समय ऐसा मनोहारी दृश्य देखने को मिल रहा था, जैसे साक्षात् समवशरण ही पृथ्वी पर अवतीर्ण हुआ हो। क्योंकि एक बड़ी संख्या में दिगम्बर मुनिराज, श्वेतवस्त्रधारिणी आर्यिकाओं की लम्बी
कतार, क्षुल्लक-क्षुल्लिकाओं का लघु समूह तथा ब्रह्मचारी और ब्रह्मचारिणियों का विशाल समूह ही आधे जुलूस का अंग बना हुआ था। बीचोंबीच में ज्ञानज्योति रथ के ऊपर विराजमान श्रीजी की प्रतिमा किसी रूप में भगवान् महावीर के समवशरण का ही दिग्दर्शन करा रही थी। गाँव की छोटी-बड़ी गलियों में लगभग एक कि.मी. तक केशरिया वस्त्रों में सजी इन्द्राणियाँ, कुमारी कन्याएं एवं अपने-अपने व्यवसाय बन्द करके लोहारिया का बच्चा-बच्चा आनंदमग्न होकर जुलूस में चल रहा था। जुलूस वापस जैन मंदिर के पास आने पर आचार्यश्री, आचार्यकल्प श्री एवं अनेक साधुओं ने ज्ञानज्योति वाहन
के अत्यंत नजदीक पधारकर जम्बूद्वीप मॉडल का सूक्ष्मावलोकन किया। बिजली लोहारिया में ज्योतिरथ के जुलूस में आचार्य श्री धर्मसागर महाराज अपने विशाल
एवं फौव्वारों के चलित दृश्य को देखकर सभी लोग अत्यंत प्रसन्न हुए तथा संघ सहित।
पूज्य ज्ञानमती माताजी के जादुई मस्तिष्क की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
इस प्रकार लोहारिया कार्यक्रम का संक्षिप्त दिग्दर्शन मैंने कराया। हम लोग उसी दिन शाम को दिल्ली के लिए रवाना हो गए; क्योंकि पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी के संघ का चातुर्मास दिल्ली में ही चल रहा था। संचालक जी भी बदल गएलोहारिया के पश्चात् दिनांक २८ अकूटबर, १९८२ से ८ नवंबर, १९८२ तक ज्ञानज्योति का संचालन किया पं. श्री गणेशीलालजी साहित्याचार्य आगरा वालों ने। जो उन दिनों हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप स्थल पर चल रहे आचार्य श्री वीरसागर संस्कृत विद्यापीठ के प्राचार्य थे। बांसवाड़ा एवं डूंगरपुर जिले में विभिन्न ग्रामों में ज्ञान का दीप प्रज्वलित करती हुई ज्ञानज्योति ८ नवम्बर को हथाई पहुँची, जहाँ समाज की ओर से ज्योति रथ का भावभीना अभिनंदन हुआ।
८ नवम्बर की संध्या में ही ज्ञानज्योति डूंगरपुर पहुँच गई। यहाँ सामाजिक स्तर पर ज्योतिरथ एवं संचालकजी का स्वागत हुआ। विशाल सभा के आयोजनपूर्वक शोभायात्रा निकाली गई। दीपावली तक रथ विश्राम९ नवम्बर से १८ नवम्बर तक दीपावली पर्व के उपलक्ष्य में ज्ञानज्योति के साथ चल रहे समस्त सहयोगियों को अपने-अपने घर जाने हेतु अवकाश प्रदान किया गया। अतः ज्योतिवाहन डूंगरपुर में ही अवस्थित रहा। राजस्थान प्रवर्तन का तृतीय चरण१९ नवम्बर, १९८२ से पुनः ज्ञानज्योति के तृतीय चरण का प्रवर्तन डूंगरपुर जिले के सागवाड़ा नगर से शुभारंभ हुआ, अब तो पं. श्री जमादारजी पुनः स्वास्थ्य लाभ करके आ गए थे, अतः उनके कुशल नेतृत्व में ज्योतिरथ ज्ञान का अलख जगाता हुआ आगे बढ़ने लगा।
सागवाड़ा में श्रीमान् डिटी साहब के करकमलों द्वारा ज्ञानज्योति का स्वागत हजारों नर-नारियों के मध्य हुआ। उदयपुर शहर भी जगमगा उठा ज्ञानज्योति के प्रकाश सेउदयपुर जिले के लगभग ४० गाँवों का भ्रमण करती हुई ज्ञानज्योति का प्रवेश १८ दिसम्बर, १९८२ की संध्या में उदयपुर शहर में कुछ इस प्रकार हुआ,
उदयपुर (राज.) में ज्ञानज्योति स्वागत सभा में आर्यिका श्री विशुद्धमती माताजी। मानो रात्रि का समस्त अंधकार इसी विद्युत् ज्योति के द्वारा प्रकाश में परिवर्तित होने वाला है तथा जनमानस का मिथ्यात्व अंधकार ज्ञानज्योति के अमर संदेशों
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