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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
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कारण जंबूद्वीप रचना के निमित्त हस्तिनापुर में सर्दी, गर्मी, मच्छर आदि अनेकों कष्टों को सहन करके सदैव माताजी को सहयोग दिया, तभी निर्विघ्र रूप से जंबूद्वीप का सफलतापूर्वक निर्माण हो सका।
भारत के समस्त जैनसमाज एवं महोत्सव समिति के सफल संयोजन में यह प्रतिष्ठा महोत्सव सानंद संपन्न हुआ। प्रतिष्ठाचार्य ब्र० श्री सूरजमलजी ने तन्मयता के साथ महोत्सव सम्पन्न कराया। इस प्रतिष्ठा में भगवान शांतिनाथजी विधि नायक थे, जिनके माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ कटक निवासी सेठ श्री पूषराजजी एवं उनकी धर्मपत्नी को।
सर्वोत्तम दर्शनीय सीढ़ियां (पैड़)इस महोत्सव में सर्वाधिक आकर्षण का केन्द्र वह पैड़ बनी, जिसके द्वारा ८४ फुट ऊँचे सुमेरु पर्वत के ऊपर पांडुक वन में जाकर भगवान का जन्माभिषेक किया गया। यह पैड़ लोहे के पाइपों से दिल्ली निवासी श्री नरेश कुमारजी बंसल ने अथक परिश्रमपूर्वक बनवाई। इस पैड़ को देखने के लिए हजारों नर-नारी प्रतिदिन आकर ऊपर चढ़कर भगवान का अभिषेक करके आनंदित होते थे। ३० अप्रैल, १९७९ को भगवान शांतिनाथ का जन्म अभिषेक महोत्सव इसी मेरु की पांडुक शिला पर सौधर्मादि इन्द्रों द्वारा किया गया था। वह मनोरम दृश्य साक्षात् अकृत्रिम मेरु पर चढ़ते हुए इन्द्र परिकर का-सा आनंद उपस्थित कर रहा था।
इस प्रकार से विविध आयोजनों के साथ में प्रतिष्ठा महोत्सव का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। ३ मई, ७९ को १६ जिनबिम्ब सुदर्शन मेरु के भद्रशाल, नन्दन, सौमनस और पांडुक वनों में विराजमान हो गईं, जिसके फलस्वरूप जीवन्त मेरु अप्रतिम प्रतिभा का धनी हो गया और मानवमात्र के मनोरथ सिद्ध करने लगा।
इसके पश्चात् जंबूद्वीप स्थल पर मई सन् १९८५ में "जंबूद्वीप जिनबिम्ब प्रतिष्ठापना महोत्सव" विशाल स्तर पर हुआ, जिसमें देशभर से लाखों यात्रियों ने हस्तिनापुर पधारकर जम्बूद्वीप रचना के दर्शन किये। आचार्य श्री परम पूज्य धर्मसागरजी महाराज के संघस्थ साधुगेण इस महामहोत्सव में पधारे। पुनः मार्च सन् १९८७ में "श्री पार्श्वनाथ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं ब्र० श्री मोतीचंदजी की क्षुल्लक दीक्षा सम्पन्न हुई। इस महोत्सव में परमपूज्य आचार्यरत्न श्री विमलसागरजी महाराज का ससंघ पदार्पण हुआ। इसके बाद मई सन् १९९० में "श्री महावीर जिन पंचकल्याणक महोत्सव" हुआ। यह मेला "जम्बूद्वीप महामहोत्सव" के नाम से आयोजित किया गया था। पूज्य गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी के निर्देशानुसार प्रत्येक पांच वर्षों के बाद यह "जम्बूद्वीप महामहोत्सव" व्यापक स्तर पर मनाया जाता रहेगा। इसी श्रृंखला में सन् १९९० का प्रथम महामहोत्सव सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ।
__ पूज्य माताजी के सानिध्य में जंबूद्वीप स्थल पर मुख्य रूप से चार पंचकल्याणक महोत्सव हुए हैं, किन्तु सन् १९७५ में बड़े मंदिर और जल मंदिर की प्रतिष्ठा के साथ ही यहाँ के कल्पवृक्ष भगवान महावीर स्वामी भी प्रतिष्ठित हुए थे। इस अपेक्षा से यहाँ की पांच पंचकल्याणकों में पूज्य माताजी के आर्यिका संघ का सानिध्य प्राप्त हो चुका है।
पंचकल्याणक प्रतिष्ठा के प्रतिष्ठाचार्य
१. कल्पवृक्ष भगवान महावीर प्रतिष्ठा सन् १९७५-६० वर्धमानपार्श्वनाथ शास्त्री-सोलापुर (महाराष्ट्र) २. सुदर्शनमेरु पंचकल्याणक महोत्सव मई सन् १९७९-७० सूरजमल बाबाजी-निवाई (राजस्थान) ३. जंबूद्वीपजिनबिम्ब प्रतिष्ठापना महोत्सव मई सन् १९८५-ब्र० सूरजमल बाबाजी-निवाई (राजस्थान) ४. श्री पार्श्वनाथ पंचकल्याणक महोत्सव मार्च सन् १९८७-पं० शिखरचंद जैन-भिण्ड (मध्यप्रदेश) ५. जंबूद्वीप महामहोत्सव एवं कलशारोहण मई सन् १९९०-पं० फतेहसागरजी –उदयपुर (राजस्थान) एवं प्रतिष्ठाचार्य प्रदीप कुमार
जैन-कुसुम्बा (महाराष्ट्र)
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