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'वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
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फरीदाबाद में ज्योति जलीदिल्ली के प्रमुख मार्गों से विहार करती हुई ज्ञानज्योति ९ जून को फरीदाबाद पहुँचती है, जहाँ पलकपांवड़े बिछाकर जनता प्रतीक्षा में खड़ी हुई थी। आज सौभाग्यवश सभी को ज्योतिरथ में अपनी पुष्पांजलि, भावांजलि, अर्थांजलि और प्रणामांजलि प्रकट करने का अवसर प्राप्त हुआ था; क्योंकि पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी ने इन्हीं व्यापक उद्देश्यों को लेकर ही इसका प्रवर्तन कराया है। वे जम्बूद्वीप रचना को किसी व्यक्ति विशेष की व्यक्तिगत संस्था नहीं बनाना चाहती थीं, प्रत्युत सारे भारत के दिगम्बर जैन समाज का पत्रम् पुष्पम् स्वीकार करने वाली जम्बूद्वीप रचना का उन्होंने व्यापक दृष्टिकोण रखा।
ज्योतिरथ के प्रथम संचालक पं. श्री बाबूलालजी जमादार ने यहाँ अपने वक्तव्य में बतलाया कि आज भी हमारे जैन समाज में उद्योगपति, करोड़पति और लखपतियों की कमी नहीं है। उनके अपरिमित धन से कुछ ही दिनों में जम्बूद्वीप रचना बन सकती है, किन्तु हमें मात्र पैसा नहीं चाहिए, बल्कि जन-जन की आत्मीय भावनाएं एवं सहयोग लेना है तथा प्रवर्तन के माध्यम से जैन भूगोल का ज्ञान कराना है। हम इसमें प्रत्येक जैन की भावनानुसार एक पैसे से एक लाख तक देने वालों को भी धन्यवाद तथा साधुवाद देंगे।
सबसे बड़ी बात यह है कि "जम्बूद्वीप" शब्द से हमारे भारतवासी अब तक अपरिचित हैं, वे उसका अर्थ और महत्त्व जान सकेंगे कि जम्बूद्वीप तो हमारी मातृभूमि है। इसी के एक छोटे से हिस्से में आज के उपलब्ध छहों महाद्वीप विद्यमान हैं।
पंडितजी ने अपने ओजस्वी भाषण में यह भी कहा कि हमें तो उन पूज्य ज्ञानमती माताजी का यह महान् उपकार मानना चाहिए कि जिन्होंने जैन भूगोल को शास्त्र, पुराणों से निकालकर हमें इतने सुन्दर रूप में प्रदान किया है।
हरियाणा प्रान्त के बल्लभगढ़ नगर में ९ जून को सायं ७ बजे से ज्ञानज्योति रथ के विद्युत् प्रकाश एवं फौव्वारे प्रारंभ होते ही एक विशाल जनसमूह रथ के चारों तरफ एकत्रित हो गया; क्योंकि रथ तो न जाने कितने देखे गए थे, किन्तु संसार का यह पहला अद्वितीय रथ था, जिसमें चलते हुए फौव्वारे, रंग-बिरंगे विद्युत् प्रकाश तथा रचना के अन्दर नृत्य करती हुई देवकन्याएं आदि अनेक अभूतपूर्व दृश्य दिखाए गए थे।
रात्रि में यह शोभा विशेष आनन्द प्रदान करने वाली हो गई। अतः अनेक स्थानों से तो यही मांग रही कि हमारे यहाँ रात में ही ज्योतिरथ का पदार्पण होना चाहिए, किन्तु भला यह संभव कैसे हो सकता था? हाँ, बल्लभगढ़ निवासियों को यह रंगीला अवसर प्राप्त हुआ, रथ यात्रा का आयोजन एवं स्वागत सभा वहाँ रात्रि में हुई। पुनः १० जून को पलवल का कार्यक्रम अपूर्व सफलताओं के साथ सम्पन्न हुआ। लोगों ने इन्द्रों की बोलियाँ लेकर रथ में बनी सीटों पर अपना स्थान ग्रहण किया और तोरण द्वारादिकों से सजे हुए पूरे शहर का भ्रमण कर अपना सौभाग्य सराहा। रात्रि में भी विद्युज्ज्योति का प्रदर्शन नगरवासियों ने देखा।
रथ की समुचित व्यवस्था, कार्य के सफल संचालन, बिजली-फौव्वारों से युक्त रचना मॉडल की सुन्दरता आदि की चर्चाएं बिजली की भांति सभी जगह फैल रही थीं; अतः आगे-आगे शहरों के आयोजकगण अपने शहर में पूरे दिन भर के कार्यक्रम चाहने लगे।
प्रारंभिक उत्साह, जनता का स्नेह और धार्मिक भावनाओं को ठुकराया भी नहीं जा सका; अतः पलवल प्रवर्तन के बाद ११ जून को ही रथ का भ्रमण होडल में हो सका। फरीदाबाद जिले के इस नगर में उत्साहपूर्वक ज्योतिरथ की स्वागत-सभा एवं शोभायात्रा सम्पन्न हुई।
१२ जून गुड़गांवा जिले का “नह" नगर, १३ जून को सोहना एवं बादशाहपुर में ज्ञानज्योति रथ प्रवर्तन से अहिंसा धर्म की व्यापक प्रभावना हुई। पुनः १४ जून को गुड़गांवा शहर में जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति का पदार्पण हुआ। स्वागत-सभा एवं शोभायात्रा में हजारों नर-नारियों ने भाग लिया।
इसके पश्चात् ज्योतिरथ का प्रान्तीय भ्रमण राजस्थान के अतिशय क्षेत्र “तिजारा" से १६ जून से प्रारम्भ होता है। ज्योतिवाहन का संक्षिप्त परिचयज्ञानज्योतिरथ के पीछे बोली लेने वाले इन्द्रों के बैठने का स्थान बनाया गया था तथा कांच से ढका हुआ जम्बूद्वीप का सुन्दर प्लास्टिक मॉडल जनमानस का चित्त आकर्षित करता था। इस रथ की लम्बाई २५ फुट, चौड़ाई ८ फुट एवं ऊँचाई १० फुट थी। रथ के ऊपर तीन फुट ऊँचा धातु का सुमेरु पर्वत विराजमान किया गया गया था, अतः उसकी कुल ऊँचाई १३ फुट हो गई थी। शिखर पर जलती हुई रोशनी ज्ञानज्योति के नाम को सार्थक कर रही थी।
ज्योतिवाहन के चारों तरफ सुन्दर-सुन्दर १० बड़े चित्र बनाए गए तथा अनेक शिक्षाप्रद सूक्तियाँ भी लिखी गई थीं। ज्ञानज्योति के १०४५ दिनों के भारत भ्रमण के पश्चात् हस्तिनापुर के त्रिमूर्ति मंदिर में वे सभी चित्र सुरक्षित रूप से लगे हुए हैं तथा ज्ञानज्योति का वह ऐतिहासिक मॉडल भी यहीं पर तीर्थयात्रियों के लिए दर्शनीय केन्द्र बिन्दु बना हुआ है। रथ के उन चित्रों का पाठकों को परिचय कराना मैं समयोचित समझती हूँ, जिनका परिचय प्राप्त कर शायद आपकी भी पुरानी स्मृतियाँ ताजी होंगी और एक बार पुनः उस ज्ञानज्योति प्रवर्तन में पहुँच सकेंगे। प्रथम चित्र था(एक तरफ राजा "श्रेयांस" राजमहल में सोए हुए पिछली रात्रि में सात स्वप्न देख रहे हैं)-हस्तिनापुर का करोड़ों वर्ष का प्राचीन इतिहास इस चित्र में दर्शाया गया है जो कि आधुनिक जम्बूद्वीप के साथ अनायास जुड़ गया है।
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