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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
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१०. ऐतिहासिक तीर्थ हस्तिनापुर- हस्तिनापुर की ऐतिहासिक घटनाओं का इस पुस्तक में शास्त्रों के आधार से संक्षेप में उल्लेख किया है। इस
तीर्थक्षेत्र पर वर्तमान में उपलब्ध मंदिरों का भी दिग्दर्शन कराया है। द्वितीय संस्करण सन् १९७९ में, पृष्ठ संख्या ६०, मूल्य १.५० रु० । द्रव्य संग्रह- इसके मूलकर्ता आचार्य श्री नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती हैं। इसमें प्राकृत भाषा में रचित ५८ श्लोक हैं। मूज्य माताजी ने प्राकृत श्लोकों का सरल हिन्दी में पद्यानुवाद तथा संक्षेप में प्रत्येक श्लोक का अर्थ व भावार्थ भी दिया है। परीक्षालयों के पाठ्यक्रम में इसे रखा गया है। विद्यार्थियों के लिए सहज पठनीय व स्मरणीय है। प्रथम संस्करण सन् १९७६ में, पृष्ठ ४४, मूल्य १.०० रु० । चतुर्थ संस्करण सितंबर १९९० में, पृष्ठ संख्या ४८, मूल्य ३/- रु० । आत्मा की खोज:- चौबीस तीर्थंकरों की चौबीस स्तुतियों में तीर्थंकरों का पूरा परिचय आलंकारिक शैली में दिया गया है। पुस्तक के अंत में आत्म पीयूष नाम से ४५ पद्यों की एक भावपूर्ण स्तुति है, जिसमें शुद्धात्मा की भावना भाई गई है। नित्य पाठ करने योग्य है। प्रथम संस्करण १९७५ में । द्वितीय संस्करण सन् १९८२ में, पृष्ठ संख्या ३६, मूल्य १.०० रु०। जम्बूद्वीपः- तीनलोक विषयक अनेक ग्रंथों में जम्बूद्वीप का विस्तृत विवेचन पढ़ने को मिलता है, उन ग्रंथों को पढ़कर, अच्छी तरह से मननचिंतन, अध्ययन करके माताजी ने यह जम्बूद्वीप नाम की छोटी-सी पुस्तक तैयार की है। “गागर में सागर" के समान जम्बूद्वीप विषयक पर्याप्त जानकारी इस पुस्तक से प्राप्त हो जावेगी। यथास्थान तत् संबंधि कुछ चित्र भी दिये गये हैं। प्रथम संस्करण १९७४ में, तृतीय संस्करण मार्च १९८४ में, पृष्ठ संख्या ८०, मूल्य ३/- रु० । बाल विकास भाग-१:- जैन धर्म का प्रारंभिक ज्ञान अर्जन करने के लिए इस सचित्र पुस्तक के प्रथम संस्करण का प्रकाशन सन् १९७४ में हुआ था, जिसका मूल्य ५० पैसे था, वर्तमान में इसका १४ वाँ संस्करण अगस्त १९९१ में प्रकाशित हुआ है। पृष्ठ संख्या-२०, मूल्य २/- रु०। बाल विकास भाग-२:- इसके प्रथम भाग की श्रृंखला में और आगे का ज्ञान अर्जन कराने के लिए दूसरे भाग का प्रकाशन हुआ था । वर्तमान में इसका १३वाँ संस्करण मई १९९२ में प्रकाशित किया गया, पृष्ठ संख्या ३६, मूल्य ३/- रु० । बाल विकास भाग-३:- इसके दो भागों की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए इसका तीसरा भाग पकाशित किया गया। दशम संस्करण का प्रकाशन अगस्त १९९१ में। पृष्ठ सं. ६४ । मूल्य ५-०० रु०। बाल विकास भाग-४:- ज्ञानार्जन की श्रेणी को आगे बढ़ाते हुए इस चौथे भाग का प्रकाशन किया गया। वर्तमान में इसके ग्यारवें संस्करण का प्रकाशन मई १९९२ में हुआ है। पृष्ठ संख्या ८०, मूल्य ६/- रु० । नोटः- इन चार भागों को पढ़कर कोई भी विद्यार्थी/पाठक जैनधर्म के अच्छा ज्ञाता बन सकते हैं। समाधितंत्र-इष्टोपदेश:- आचार्य पूज्यपादकृत इन दोनों ग्रंथों का इसमें मूल श्लोकों सहित पद्यानुवाद दिया गया है। समाधितंत्र में १०५ श्लोक तथा इष्टोपदेश में ५१ श्लोक हैं। प्रारंभ में अध्यात्म प्रवेश के लिए ये ग्रंथ अति सुगम हैं। प्रथम संस्करण १९७६ में, पृष्ठ संख्या ४०, मूल्य १.०० रु०। आर्यिकाः- प्रस्तुत पुस्तक के सृजन की एक विशेष स्मरणीय घटना रही। एन. शान्ता नामक एक फ्रांसिसी महिला जैन साध्वी एवं क्रिश्चियन साध्वी पर शोध प्रबंध लिख रही थी। बहुत प्रयास के बाद भी उन्हें दिगम्बर साध्वियों के बारे में प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं हो पा रही थी। दैवयोग से उनकी भेंट बनारस में डॉ० गोकुलचंद जैन से हुई। उन्होंने इसके लिये पूज्य ज्ञानमती माताजी का नाम सुझाया। वे ढूँढकर माताजी के पास आई और आर्यिका चर्या की जानकारी के लिये अनेक प्रश्न किये। कुछ प्रश्नों के उत्तर माताजी ने तत्काल दिये एवं शेष प्रश्नों के समाधान रूप में "आर्यिका" नाम से यह पूरी पुस्तक ही तैयार कर दी। जब वे दूसरी बार आईं तो पुस्तक देखकर बहुत प्रसन्न हुई । “एक पंथ दो काज" हो गये। एक बहुत बड़ी कमी की पूर्ति हुई। आर्यिकाओं की चर्या का ज्ञान कराने वाली एक प्रामाणिक पुस्तक तैयार हो गई।
प्रथम संस्करण सन् १९७६ में, पृष्ठ ८०, मूल्य २/- रु०। २०. आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती जीवन दर्शन:- जैन समाज के सुप्रसिद्ध कवि सकरार (झांसी) म०प्र० निवासी स्व० श्री शरमनलाल "सरस"
ने पूज्य माताजी की भक्ति से ओत-प्रोत होकर १२८ पद्यों में उनकी भावपूर्ण जीवनगाथा लिखी, जो सन् १९७६ में माताजी के जन्मदिन शरदपूर्णिमा पर प्रकाशित की गई। प्रथम संस्करण सन् १९७६ में, पृष्ठ संख्या ४४, मूल्य १.२५ रु०।। व्रत विधि एवं पूजा:- दिगंबर जैन समाज में विधिपूर्वक व्रतों को करने की अतिप्राचीन परम्परा है। इस पुस्तक में णमोकार व्रत, जिनगुणसंपत्ति, रोहिणी, पंचपरमेष्ठी एवं सप्त परमस्थान व्रतों में की जाने वाली पूजाएं दी हैं जो कि पू० माताजी द्वारा बनाई गई हैं। इन व्रतों की विधि, व्रतों से संबंधित जाप्य मंत्र तथा कुछ की संक्षिप्त कथा भी दी है। इनके अतिरिक्त वृहतपल्य व्रत की विधि भी दी गई है। प्रथम संस्करण सन्
१९७७ में, नवम संस्करण जुलाई सन् १९९२ में, पृष्ठ संख्या ५२, मूल्य ३/- रु० । २२. इन्द्रध्वज विधान:- सन् १९७६ में पहली बार स्वतंत्र रूप से इसे हि दी भाषा में पूज्य माताजी द्वारा लिखा गया। तब से सारे देश में इस
विधान की धूम मची हुई है। इसमें मध्यलोक के ४५८ अकृत्रिम जिनचैत्यालयों की पूजा है। प्रथम संस्करण अक्टूबर १९७८ में, पृ. संख्या ४९६+४८, मूल्य ५/- रु., पंचम संस्करण अप्रैल १९९१ में, पृ. संख्या ३६८+४८, मूल्य ३२/- रु.।
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