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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
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ओहो : यह कैसा चमत्कार हैः १. बुढ़िया के एक कलशी दूध ने तो जादू ही कर दिया है। ३. बाहुबली का नाम गोम्मेटेश्वर क्यों पड़ा?
४. मातृ भक्ति कैसी होनी चाहिए। चामुण्डराय की मातृ भक्ति का अमर संदेश बाहुबली की ५७ फुट ऊँची विशालकाय प्रतिमा आज भी जन-जन को दे रही है।
५. कूष्माण्डिनी शासन देवी ही चामुण्डराय के अहं को चूर करने के लिए वृद्धा गुल्लिकायिज्जी का रूप धारण कर आई थी।
इस तरह आर्यिका श्री ज्ञानमतीजी ने लघुकाय पुस्तिका में वृहत्काय भरत एवं बाहुबली के विशाल जीवन को अपनी सुविज्ञ ज्ञानांजलि में समेट कर जन-जन को धन्य किया है। जिन्होंने ज्ञान एवं त्या आत्मगत किया है, उन आर्यिका श्री के श्रीचरणों में श्रद्धा भाव समर्पित कर चरणों में वंदन करती हुई उनके स्वस्थ एवं दीर्घायु होने की मंगलकामना करता हूँ। साथ ही यह भावना रखती हूँ कि माताजी द्वारा रचित रचनाएँ इसी प्रकार तमसाथ लोक को ज्ञानालोक से प्रकाश प्रदान करती रहें।
योग चक्रेश्वर बाहुबली
समीक्षक-रामजीत जैन एडवोकेट
दानाओली-लश्कर-ग्वालियर
ज्ञान में चेतना, साधना व आराधना का भाव है। इन्हीं भाव-विभाग की परिणित "योग चक्रेश्वर
बाहुबली" है। वर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थकर, उनके पुत्र प्रथम चक्रवर्ती तथा दूसरे पुत्र प्रथम शेजाचा बा
कामदेव का जीवन इस काल का दर्पण है। आइये देखें
भगवान वृषभदेव भरत को अर्थशास्त्र और नृत्यशास्त्र पढ़ाते हैं। बाहुबली को कामनीति, स्त्री-पुरुषों के
लक्षण, आयुर्वेद,-धनुर्वेद, तंत्रशास्त्र और रत्न परीक्षा आदि शास्त्र पढ़ाते हैं। सभी पुत्रों को सभी विद्यालयों ली
का ज्ञान देते हैं। (पृ. २५)
परन्तु इस ज्ञान पर विजय पाई साम्राज्य पिपासा ने- पुरोहित ने कहा- "राज्य और कुलवती स्त्रियां ये दोनों ही पदार्थ साधारण नहीं हैं। इनका उपभोग एक ही पुरुष कर सकता है।" (पृ. २७) ।
बस यही भावना को वर्तमानकाल की आदर्श बनी।
बाहुबली का आदर्श- "दूसरे के अहंकार के अनुसार प्रवृत्ति करना हमारे लिये असंभव है।" (पृ.३४)। परन्तु युद्ध, भाई का भाई से युद्ध संसार चक्र की अनिवार्यता।
ज्ञान से चेतना जाग्रत होती है- "अहो। देखो, हमारे बड़े भाई ने इस नश्वर राज्य के लिये यह कैसा
लज्जाजनक कार्य किया है। यह साम्राज्य फलकाल में बहुत ही दुःख देने वाला है, इसलिये इसे धिक्कार हो। सचमुच में यह राज्य कुल्टा स्त्री के सृदश है।" (पृ. ४१)
भरत को सम्बधोन- “इसका तूने आदर किया है और इसे अविनश्वर समझ रहा है, यह राज्य लक्ष्मी अब तुझे प्रिय रहे, अब यह मेरे योग्य नहीं है क्योंकि बन्धन सज्जन पुरुषों का आनन्द करने वाला नहीं होता है। (पृ.-४३)
बस । साधना का क्षेत्र आ गया और बारह भावना की आराधना प्रारम्भ हुई। "उधर बाहुबली अपने गुरु भगवान वृषभदेव के चरणों की आराधना करके सम्पूर्ण परिग्रह का त्याग कर दैगंबरी दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं और एक वर्ष का प्रतिमायोग धारण कर एक ही स्थान पर निश्चल खड़े हो जाते हैं। "इसके बाद पृष्ठ ४५ से पृष्ठ ६० तक योग साधना का विवरण । तथा पृ. ६० से पृ. ६७ तक योग साधना का अतिशय वर्णन है तथा केवलज्ञान, गंधकुटी, विहार एवं उपदेश।
कालान्तर में योग निरोधकर अघातिया कर्मों का नाश कर शाश्वत मुक्ति साम्राज्य को प्राप्त कर लेते हैं। वहाँ पर सदा-सदा के लिये अपने ही आत्मा से उत्पन्न हुए सहज परमानन्दामृत का पान कर रहे हैं। अब उन्हें न जन्म लेना है, न मरना है, न संसार के सुख-दुःखों को ही भोगना है। वहाँ न उन्हें भूख है, न प्यास है, न चिंता है न पराजय है, न व्याधि है और न क्लेश ही है। अक्षय, अव्याबाध,अनन्त सुख का अनुभव करते हुए वे भगवान अनन्तकाल तक वहीं पर होंगे। (पृ. ६७)
अनंत साम्राज्य की लिप्सा से मोह-त्याग की प्रवृत्ति पर अनंत सुख साम्राज्य की प्राप्ति ही तो इसका उद्देश्य है जिससे चक्रवर्ती के चक्र को भी परास्त कर योग चक्रेश्वर कर रूप धारण किया।
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