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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
अचरज है खुद का पता नहीं, फिर भी यह नर का दावा है; वह आज नहीं तो काल, काल पर करने वाला धावा है । पर जब तक आत्म विकास न हो, यह पागलपन की भाषा है; यह है गूलर का फूल, हमें छलने वाली अभिलाषा है ॥ ५ ॥ एटम बम हाइड्रोजन पर, इन्सान आज का फूला है; इसलिए विषमता, फूट, लूट, अन्याय झूलता झूला है । पर शस्त्रों की ही शक्ति से, हो सके नहीं जयकारा है ; आतम बल के समक्ष पशु बल, आखिर में हरदम हारा है ॥६॥ है ऐसा नाजुक दौर, दौर से, गुजर रहा यह भारत है; भय है इसका इतिहास कहीं, हो जाय न धूमिल गारत है। इसलिए हमें, ऐसे युग में, संतों की सख्त जरूरत है; जो बनकर मुक्ति-मार्गदर्शक, फिर ला दें वही महूरत है ॥ ७ ॥ जिनका त्याग, जिनका चरित्र, जन-जन को फिर ऐसा बल दे; जाना न किसी को स्वर्ग पड़े, धरती को स्वयं स्वर्ग कर दे। गौरव है आज नारियों में, इस ओर जागरण आया है; संतों से प्रथम साध्वी ने, भूतल पर अलख जगाया है ॥ ८ ॥ यह चर्चा केवल कवी नहीं, हर कण-कण हमें बताता है; जिस नारी में नारायण से, बढ़कर तप त्याग दिखाता है । उस त्राता के, युग माता के, बारे में मौन न रहना है; जिसके गौरव में रवि-शशि, तारों तक का यह कहना है ॥ ९ ॥
यों तो कितनी हो चुकी , और होंगी आगे मातायें हैं; जिनकी तप-त्याग-तपस्या से, गौरवमय दसों दिशायें हैं। पर वर्तमान में ज्ञानमती, माता-सी कोई न माता है; जिनके चरणों में दो क्षण को, दुःख को भी सुख मिल जाता है ॥ १० ॥ अचरज में, रवि मेरा प्रकाश, बाहर तक ही संग देता है; पर ज्ञानमती का ज्ञान सूर्य, हर अन्तस चमका देता है । तुम किसी समय भी जा देखो, हर आँसू आकर हर्षा है; माँ ज्ञानमती करती रहतीं, हर समय ज्ञान की वर्षा है ॥ ११ ॥ जो बतलाते नारी जीवन, लगता मधुरस की लाली है; वह त्याग-तपस्या क्या जानें? कोमल फूलों की डाली है। जो कहते योगों में नारी, नर के समान कब होती है ? ऐसे लोगों को ज्ञानमती का, जीवन एक चुनौती है ॥ १२ ॥ सच तो यह नारी की शक्ति, नर ने पहिचान न पाई है; मंदिर में मीरा है, तो वह, रण में फिर लक्ष्मीबाई है। है ज्ञान क्षेत्र में ज्ञानमती, नारी की कला निराली है; सच पूछो नारी के कारण, यह धरती गौरवशाली है ॥ १३ ॥ अब सुनें आप यह वह गाथा, जो पग-पग हमें बताती है; तप-त्याग-तपस्या में नारी, कितनी आगे बढ़ जाती है? जिसके अभिनन्दन से होता, अभिनन्दन का अभिनन्दन है; उस महा आर्यिका माता का, किस तरह करें हम वंदन है ॥ १४ ॥
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