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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
श्री ज्ञानमती श्रीअभयमती से, परिचित देश हमारा है; आजन्म ब्रह्मचारी रवीन्द्र ने, अब विराग स्वीकारा है । सच है इस घर के भाई-बहिन, इस ढंग से बढ़ते जायेंगे; माधुरी-मालती-त्रिशला को, जग वाले शीश झुकायेंगे ॥ ८३।। किसने दी इन्हें प्रेरणा यह ? किसने की ऐसी छाया है ? श्री ज्ञानमती माताजी ने, इन सबको पूज्य बनाया है । अब लगे हाथ इक और बात, श्रीमान् सामने लाता हूँ; अब शेष न रह जाये प्रसंग, पूरा कर अभी बताता हूँ ।। ८४ ॥ जिनके प्रिय भाई-बहिनों में, छायी जब ऐसी भक्ति थी; फिर माताजी, की भला भतीजी चुप कैसे रह सकती थी? कुल सोलह वर्ष उमर जिसकी, छाया अद्भुत आतम बल है; यह ज्ञानमती माता जी का, सच पूछो तो कृपाफल है ॥ ८५।। अपने ही भाई-बहिन नहीं, औरों को बहुत पढ़ाया है; प्रिय सुनो कुमारी कला, जिन्हें सच्चा शिवमार्ग दिखाया है। है जन्म बाँसवाड़ा इनका माता से शिक्षा पायी है। ऐसी कितनी बालाओं की अंतस की ज्योति जगाई है ।। ८६ ।। कैसे सम्भव था ? यह काया, माया ममता में सनी रहे; जिसकी बाला आर्यिका बने, माता गृहस्थ ही बनी रहे । माँ ज्ञानमती की माता ने, अपना भी कदम बढ़ाया है; हो पूज्य आर्यिका रत्नमती, जिनका यश जग में छाया है ।। ८७ ।। अब सुनें एक उपकार और, कौशल का सुनें नमूना है; श्री महावीर निर्वाण महोत्सव, जिससे होगा दूना है । इसके प्रति उनका जितना हम, यश गायें सचमुच थोड़ा है; जिन ने जिनमत के नक्शे को, जनता के सम्मुख जोड़ा है ।। ८८ ॥ अब तक जो जम्बूद्वीप सिर्फ, कागज पर गया उतारा है; बन रहा सुनों मैदान मध्य, जिसका होगा जयकारा है । वह "सरस" हस्तिनापुर में, अब पूरा होने वाला है; जिसके प्रिय दर्शन को उत्सुक अब से हर बच्चा-बाला है ।। ८९ ॥ जब दिखलायेगा सजा हुआ, वह "सरस" बाग फव्वारों से; बिजली की आभा बोलेगी, जब निश में चाँद-सितारों से; उस समय कौन इसकी छवि को आँखों में नहीं बसायेगा? मेरा विश्वास इसे लखने, सुरपुर से हर सुर आयेगा ॥ ९० ॥ जब मध्य पचहत्तर फिट ऊँचा भव्य मेरु पर्वत होगा ; जिसके अंचल पर बना हुआ, हर वीतराग मंदिर होगा । निश्चित विदेश के लोग "सरस" इसको सौ बार सराहेंगे; सूरज-चन्दा के अन्वेषी, इससे नवीनता पायेंगे ॥ ९१ ॥ इस युग का सबसे ज्यादा यह, वैज्ञानिक तीरथ होगा; यह वीतराग विज्ञान मार्ग का, पहला भागीरथ होगा । तब "सरस" हस्तिनापुर गौरव, युग-युग तक लोग सराहेंगे; तब इस तीरथ के कीरत में, खुद चार चाँद लग जायेंगे ॥ ९२।।
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