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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
जिस दिन मैना ने दिखा दिया, कितना विराग से नाता है ॥ ५३ ॥ बाराबंकी के आस-पास, सुन करके नर हर्षाये थे है- आचार्य का केशलौंच, नर दूर-दूर से आये थे ।
यदि लौट चले मैना घर को, मैंना परिवार पधारा था;
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जब केशलौंच का समय हुआ, देखा तो अजब नजारा था ॥ ५४ ॥ मैंना दीक्षा के लिये खड़ी, मन कर सुमेरु विश्वासों से प्रारंभ कर दिया केशलौंच खुद अपना अपने हाथों से । जिसने देखा हो गया चकित, लोगों ने बड़ा विरोध किया; इतनी-सी आयु में दीक्षा, मैना का यह क्रम रोक दिया ॥ ५५ ॥ वे क्या जानें इसका महत्त्व ? जो चाहा करते भोगों को : पर समझा सका नहीं कोई, उस दिन ऐसे उन लोगों को । कामना काम की करना ही, दुनिया में दुःख का कारण है; जो इससे खुद को बचा सका, वह पर को बना उदाहरण है ॥ ५६ ॥ चाहे नर हो या नारी हो, वैराग्य जिसे भा जाता है ; उसको इस जग का आकर्षण, फिर जरा न सहला पाता है। वह है स्वतन्त्र घर हो या वन, उसको कब क्रन्दन होता है ? जो मुक्ति पथ का पथिक, उसे कब वय का बंधन होता है ॥ ५७ ॥
फिर क्या था चारों तज अहार, मैंना ने आसन डाल दिया; श्री जिन मंदिर में तन्मय हो, जाकर जिनवर का ध्यान किया ।
यह विकट समस्या देख लोग, आचार्य तक दौड़े आये ; तब तभी दूसरे दिन, सप्तम प्रतिमा के व्रत थे दिलवाये ॥ ५८ ॥ संयोग देखिये कर्मों का कैसा आ मिला निराला था;
यह भी दिन था आसोज सुदी, पूनम का परम उजाला था।
ये ठीक अठारह वर्ष "सरस" इस दिन मैंना ने पूर्ण किये; जब चातुर्मास समाप्त हुआ, चल पड़ी गुरू का साथ लिये ॥ ५९ ॥ मैंना के जीवन का तो अब, वैराग्य बन चुका छाया था;
जब संवत दो हजार नौ थी, सचमुच कमाल दिखलाया था । महावीर क्षेत्र पर चैत बदी, जब एकम की बेला आई; पा गई क्षुल्लिका पद मैंना, थी सारी जनता हर्षाई ॥ ६० ॥ वैराग्य जगत में बेमिसाल, यह सबसे कठिन परीक्षा थी; सबसे कम आयु में प्रियवर, यह सबसे पहली दीक्षा थी; हो गया दंग था हर दर्शक, जिसने सरूप यह आन लखा;
तब देश-देशभूषण जी ने श्री "वीरमती" जी नाम रखा ॥ ६१ ॥
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फिर तीन बरस के बाद आप जब माधोराजपुरा आई लोगों ने एक बार फिर से वह भव तारक घड़ियाँ पाई। थी संवत दो हजार तेरा, वैसाख कृष्ण की तिथी दौज ; तब "वीरमती" के जीवन से, कह उठा स्वयं ही त्याग ओज ॥ ६२ ॥ आचार्य "वीरसागर" जी थे जिनकी प्रिय, प्रभा निराली थी; तब "वोरमती" जी यह अवसर सचमुच कब खोने वाली थीं। ली तभी आर्यिका की दीक्षा, लोगों ने जय-जयकार किया;
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