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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
आज दो वर्षों में इन्होंने अपनी लगन एवं पुरुषार्थ के बल पर हस्तिनापुर में गुरुमुख से अनेक धर्मग्रंथों का अध्ययन किया, विधि विधान में कुशलता प्राप्त कर विधानाचार्य बने तथा अब पूज्य माताजी से प्राचीन शास्त्रीय विधि अनुसार प्रतिष्ठाचार्य के कोर्स का अध्ययन कर रहे हैं। मातृभाषा तमिल है, कनड़ भी बोलते हैं तथा उत्तर भारत आकर हिन्दी भाषा की भी अच्छी जानकारी हो गई है।
ब्र. कु. आस्था शास्त्रीय पूज्य माताजी की संघस्थ देशव्रती शिष्या हैं। सन् १९६९ में भादों शु. १० (धूपदशमी) के दिन जिला बहराइच के "फखरपुर" गाँव में इनका जन्म हुआ। पिता का नाम श्री "प्रेमचंद जैन" एवं माता का नाम "श्रीमती देवी" है। ७ फरवरी १९८८ को इन्होंने पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी से आजन्म ब्रह्मचर्यव्रत लिया तथा १४ फरवरी सन् ८८ को दो प्रतिमा रूप बारह व्रत ग्रहण किया है। लगभग ५ वर्षों में इन्होंने शास्त्री एवं आचार्य प्रथम खंड की परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की हैं। लौकिक शिक्षा बी.ए. प्रथम वर्ष तक है। संघ में धर्म ग्रंथों का अध्ययन करते हुए गुरु वैयावृत्ति को अपना सौभाग्य मानकर सदैव तत्पर रहती हैं। अभी मात्र २३ वर्ष की लघुवय है, अपने तीव्र क्षयोपशम से ये जीवन में खूब ज्ञान और चारित्र की उन्नति करें, यही मेरा इनके लिए मंगल आशीर्वाद है।
ब्र.कु. बीना शास्त्री१३ वर्ष की बाल्यावस्था में ही कु. बीना को पू. माताजी के संघ का सम्पर्क मिला और आज ब्रह्मचर्य की कठिन साधना करती हुई ये संघस्थ शिष्या हैं। इनका जन्म कानपुर (उ.प्र.) में १५ दिसम्बर सन् १९६९ को हुआ। माँ का नाम कुमुदनी देवी और पिता का नाम स्व. श्री प्रकाशचंद
जैन है। ५-६ वर्षों तक संघ में रहने के पश्चात् ३१ मार्च सन् १९८९ को पूज्य गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी से आजन्म ब्रह्मचर्यव्रत ग्रहण किया तथा १५ अकूटबर १९८९ को दो प्रतिमा के व्रत लेकर व्रती जीवन प्रारंभ किया। लौकिक अध्ययन हाईस्कूल तक है एवं धर्म में शास्त्री एवं आचार्य प्रथम खंड की परीक्षाएं उत्तीर्ण की हैं। धार्मिक अध्ययन के साथ-साथ गुरुवैयावृत्ति में इनकी अतिशय रुचि है। इस लघुवयस्का बालिका के उज्ज्वल भविष्य के लिए मेरा आशीर्वाद है तथा आस्था और बीना युगल ब्रह्मचारिणी की जोड़ी ब्राह्मी-सुंदरी के समान बने यही मंगलकामना है।
भारत माता की गोदी इस माता से कभी न सूनी हो शरद्पूर्णिमा की चंद्रिका, सरस्वती की प्रतिमूर्ति, ब्राह्मी माता की प्रतिकृति, कुमारिकाओं की पथ प्रदर्शिका, युग की प्रथम बालसती, शताब्दी की पहली ज्ञानमती, जिनशासन प्रभाविका, आर्यिकारत्न, न्यायप्रभाकर, विधानवाचस्पति, दृढ़ता की साकार प्रतिमा, जंबूद्वीप रचना की पावन प्रेरिका पूज्य १०५ गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी का यह अभिवंदन ग्रंथ भक्त समाज द्वारा अर्पित मात्र एक पुष्पांजलि है। ऐसे अनेक ग्रंथ भी उनके गहन व्यक्तित्व को प्रकाशित करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं। वे वर्तमान युग में समस्त साधु समाज की सर्वाधिक प्राचीन दीर्घकालीन दीक्षित वरिष्ठ आर्यिका हैं।
मेरी जिनेन्द्र भगवान से यही प्रार्थना है कि धरती माता का आंचल इन माता श्री से सदैव सुवासित रहे तथा हम सभी को उनके ज्ञान की अजस्त्र धार में अवगाहन करने का सौभाग्य प्राप्त होता रहे।
"इति शुभम्"
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