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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
बीसवीं शताब्दी की प्रथम बालब्रह्मचारिणी गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी का जीवन परिचय
-आर्यिका चन्दनामती पूज्य गणिनी आर्यिका श्री का परिचय निम्न चार पंक्तियों से प्रारंभ होता है
नैराश्यमद में डूबते, नर के लिए नव आस हो। कोई अलौकिक शक्ति हो, अभिव्यक्ति हो विश्वास हो॥ कलिकाल की नव ज्योति हो, उत्कर्ष का आभास हो।
मानो न मानो सत्य है, तुम स्वयं में इतिहास हो॥ सच, जिनके आदर्श हिमालय पर्वत से भी ऊँचे हैं, जिनकी वाणी से निःसृत ज्ञानगंगा नीलनदी जिसकी लम्बाई ६ हजार कि.मी. है, से भी बड़ी है, जिनकी कीर्ति प्रसार के समक्ष एशिया महाद्वीप का क्षेत्रफल भी छोटा प्रतीत होने लगता है और जिनके हृदय की गंभीरता प्रशान्त महासागर को भी उथला सिद्ध करने लगी है, उस महान् व्यक्तित्व 'श्री ज्ञानमती माताजी' का परिचय भला शब्दों में कैसे बांधा जा सकता है।
वि.सं. १९९१ (२२ अकूटबर ईसवी सन् १९३४) की शरद् पूर्णिमा (आश्विन शु. १५) को रात्रि में ९ बजकर १५ मिनट पर जिला बाराबंकी के टिकैतनगर ग्राम में श्रेष्ठी श्री छोटेलालजी की धर्मपत्नी मोहिनी देवी ने इस कन्या को जन्म देकर अपना प्रथम मातृत्व धन्य कर लिया था। उनके दाम्पत्य जीवन की बगिया का यह प्रथम पुष्प सारे संसार को अपनी मोहक सुगंधि से सुवासित करेगा, यह बात तो वे कभी सोच भी न सके थे, किन्तु सरस्वती के इस अवतार को जन्म देने में उनके जन्मजन्मांतर में संचित पुण्य कर्म ही मानो सहायक बने थे।
अवध प्रांत में जन्म लेने वाली इस नारीरत्न का परिचय बस यही तो है कि सरयू नदी की एक बिन्दु आज ज्ञान की सिन्धु बन गई है, शरद पूर्णिमा का यह चाँद आज अहर्निश सारे संसार को सम्यग्ज्ञान के दिव्य प्रकाश से आलोकित कर रहा है।
बालिका का जन्म नाम रखा गया-मैना । मैना पक्षी की भाँति मधुर वाणी जो घर से निकलकर गली-मोहल्ले और सारे नगर में गुंजायमान होने लगी थी। पूर्व जन्मों की तपस्या एवं माँ की चूंटी से जो नैसर्गिक धर्म-संस्कार प्राप्त हुए थे, उन्होंने किशोरावस्था आते ही इन्हें ब्राह्मी और चन्दना का अलंकरण पहना दिया।
भरे-पूरे परिवार में जन्म लेने वाली मैना अपने १३ भाई-बहनों में सबसे बड़ी हैं। इनको छोड़कर शेष ८ बहनों एवं ४ भाइयों का संक्षिप्त परिचय पाठकों को प्राप्त कराना आवश्यक है
१. सौ. शान्ती देवी जैन-जन्म-ईसवी सन् १९३७ । सन् १९५४ में लखनऊ शहर से १० कि.मी. दूर "मोहोना" ग्राम के श्रेष्ठी श्री गुलाबचन्दजी की धर्मपत्नी श्रीमती सुभद्रा देवी के सुपुत्र "श्री राजकुमारजी जैन" के साथ आपका विवाह हुआ। आप ४ पुत्र एवं ३ पुत्रियों की माँ हैं और वर्तमान में डालीगंज लखनऊ में निवास करती हैं। आपके पति एवं पुत्र कपड़े का व्यापार करते हैं तथा सभी धार्मिक रुचि से सम्पन्न गृहस्थ की दैनिक क्रियाओं में संलग्न रहते हैं।
२. श्री कैलाशचन्द जैन-ईसवी सन् १९३९ में आपका जन्म हुआ। १६ वर्ष की अवस्था में आपका विवाह टिकैतनगर के ही श्रेष्ठी "श्री शांति प्रसादजी जैन सर्राफ" की सुपुत्री चन्दारानी जैन के साथ हुआ। आपके दो पुत्र एवं दो पुत्रियाँ हैं तथा सर्राफा एवं कपड़े का व्यापार करते हुए आप धार्मिक, सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय रहते हैं। लखनऊ तथा टिकैतनगर दोनों जगह आपका निवास रहता है।
३. सौ. श्रीमती देवी जैन-सन् १९४१ में जन्मी इस बालिका का नाम माता मोहिनी ने "श्रीमती" रखा। आपका विवाह सन् १९५८ में जिला बहराइच के पास "फखरपुर" निवासी लाला श्री सुखानन्दजी के सुपुत्र श्री प्रेमचंदजी के साथ हुआ। आप २ पुत्र एवं ४ पुत्रियों की माँ हैं और आपकी सबसे छोटी पुत्री कु. आस्था जैन आजन्म ब्रह्मचर्यव्रत एवं दो प्रतिमा के व्रत धारण कर पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी के संघ में अध्ययन कर रही हैं। फखरपुर तथा बहराइच में कपड़े का व्यापार है तथा निवास भी दोनों स्थानों पर रहता है। ४. ब्र. कु. मनोवतीजी-इनका परिचय आर्यिका श्री अभयमती के नाम से संघ परिचय में है। ५. श्री प्रकाशचन्द जैन-लाला छोटेलालजी एवं माता मोहिनी ने छठी सन्तान पुत्र को जन्म दिया। सन् १९४५ चैत राम नवमी के दिन जन्म इस बालक का नाम बड़ी बहन मैना ने "प्रकाशचंद" रखा। सन् १९६६ में प्रकाशचन्द का विवाह बहराइच के पास "नैपालगंज' के निवासी लाला श्री जयकुमारजी की सुपुत्री "ज्ञानादेवी' के साथ हुआ। आपके ४ पत्र एवं ३ पुत्रियाँ हैं। कपड़ा, सर्राफा आदि प्रतिष्ठानों का संचालन करते हुए
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