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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
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में ही पीलिया रोग हो जाने पर शरीर दिन-प्रतिदिन गिरता गया, यहाँ तक की समाधि की स्थिति हो जाने पर भी पू० माताजी ने अपनी चर्या में किंचित् मात्र भी शिथिलता नहीं आने दी और दृढ़ता व धैर्यपूर्वक अपनी क्रियाओं का पालन करती रहीं। पू० माताजी द्वारा जो भी कार्य किये जा रहे हैं वे सभी अनूठे ही देखने को मिलते हैं। जम्बूद्वीप, कमल मंदिर का निर्माण तो विश्व में प्रथम रचना है। पू० माताजी सदैव यही कहा करती हैं कि विरोधी का विरोध न करने की बजाय अपनी शक्ति का उपयोग धर्म प्रभावना में करना चाहिये।
मैं तो अपना अहोभाग्य ही मानता हूँ कि ऐसी माँ के चरणों में रहकर ज्ञानामृत पान करने का सौभाग्य मुझ अल्पज्ञ को प्राप्त हुआ। अतः मैं पू० माताजी के चरणों में विनयांजलि अर्पित करते हुए वीर प्रभु से कामना करता हूँ कि पू० माताजी शतायु हों और मुझे उनके चरणों की सेवा बराबर मिलती रहे।
विनम्र विनयांजलि
- श्रेयांस कुमार जैन, प्रधानाचार्य श्री दि० जैन गुरुकुल, हस्तिनापुर
"नारी गुणवती धत्ते स्त्रीसृष्टेरग्रिमं पदं" उक्ति को अक्षरशः चरितार्थ करने वाली महिमामयी साध्वीरत्न, अभीक्ष्णज्ञानोपयोगी, प्रकाण्ड विदुषी, न्यायप्रभाकर, सिद्धान्तवाचस्पति परमपूज्य श्री १०५ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी का रत्नत्रय विभूषित भव्य जीवन हर नारी के लिए एक उज्ज्वल उदाहरण है "दंसणणाण चरित्ताणि" की आप साकार मूर्ति हैं।
वाग्देवी सरस्वती की परम उपासिका परमपूज्य माताजी अनेकानेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की रचयित्री, भाषा टीकाकर्ती, सरस्वती की पुत्री, जैन धर्म, न्याय, दर्शन व सिद्धान्त की प्रकाण्ड विदुषी एवं कुशल ओजस्वी उपदेष्टा हैं। आपकी वाणी की मधुरता श्रोतागण के हृदयों में गहराई तक उतरती चली जाती है। आपके अन्दर समाज को दिशा देने की अति अद्भुत क्षमता है। आपके द्वारा निर्मित विशाल साहित्य स्तुत्य एवं प्रशंसनीय है।
आपके सानिध्य में अत्यन्त भव्य जम्बूद्वीप संस्थान की रचना हुई है। उसकी आप कुशल कर्णधार हैं। जिसने हस्तिनापुर की ख्याति-वृद्धि में चार चाँद लगा दिये हैं। जिधर भी दृष्टि जाती है, भगवान् ही भगवान दिखाई देते हैं। बड़ी ही भव्य रचना है, प्रतिवर्ष तीर्थ-यात्रियों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी होती जा रही है। जब तक नभ में सूरज-चाँद चमकते रहेंगे, तब तक आपकी कीर्ति चमकती रहेगी।
जम्बूद्वीप संस्थान से "सम्यग्ज्ञान" हिन्दी मासिक पत्र १८ वर्षों से निकल रहा है। पूज्य माताजी की स्याद्वादमयी सशक्त लेखनी द्वारा चारों अनुयोगों पर उसमें लेख बराबर निकलते हैं, जो वस्तुतः पठनीय हैं और स्वाध्याय का आनन्द प्रदान करते हैं। वास्तव में पूज्य माताजी की सेवाएँ बहुमूल्य हैं और समाज की आप मानी हुई महान् विभूति हैं।
शत-शत वन्दन, शत-शत अभिनन्दनपूर्वक विनम्र विनयांजलि अर्पित है।
संस्मरण एवं विनयांजलि
-पं० गणेशीलाल जैन, साहित्याचार्य, आगरा
पूज्य गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमतीजी का कृतित्व एवं व्यक्तित्व उस समय विशेष रूप से प्रकट हुआ, जब प्राचीन तीर्थस्थल हस्तिनापुर क्षेत्र की नवीन भूमि पर दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान द्वारा जम्बूद्वीप निर्माण का कार्य प्रारंभ हुआ। माताजी के आशीर्वाद एवं पूर्ण सहयोग से १९७८ में दशहरा के पुण्य अवसर पर एक विशाल शिक्षण शिविर का आयोजन हुआ। दूर-दूर के शतशः विद्वानों एवं शोधार्थी शिक्षकों ने सम्मिलित होकर इसे सफल बनाया था। कर्मठ समाज सेवी सेठ गणेशीलाल रानीवाला एवं सेठ त्रिलोकचंद जी कोठारी आदि सहयोगियों ने तन-मन-धन से परिश्रम द्वारा इसे पूर्णता को प्राप्त कराया। मैं भी इस सम्मेलन में उपस्थित हुआ था।
सर्वप्रथम इसी सम्मेलन में ससंघ मुझे भी पू० ज्ञानमती माताजी की मोहिनी छवि के दर्शन प्राप्त हुए थे। यहीं शिक्षण, भाषण, लेखन एवं साहित्य तथा अलौकिक प्रतिभा का परिचय भी प्राप्त हुआ। इस समय तक मैंने आगरा के महाविद्यालय से पूर्णावकाश भी प्राप्त कर लिया था।
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