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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
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निहारकर स्तंभित हो जाती है। ऐसे महान् दिव्य व्यक्तित्व के पावन चरणों में अपने आपको श्रद्धानत करने में मुझे परम संतोष होता है।
मेरी हार्दिक कामना है कि माताजी का दीर्घकाल तक हमको सानिध्य मिलता रहे और वे अपने त्याग, तपस्या, साधना और सद् उपदेशों से आज के दिशाहीन लोगों को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देकर उनकामार्ग प्रशस्त करती रहें।
इस अवसर पर उनके पावन चरणों में मेरा शतशः नमन् ।
विनयांजलि
- मदनलाल चांदवाड़, रामगंज मंडी मंत्री शांती वीर नगर श्रीमहावीरजी
पूज्य श्री १०५ ज्ञानमती माताजी महान् विद्वान्, तपस्वी और कर्मठ साध्वी हैं। अपनी लगन और बात की पक्की धनी हैं। स्वास्थ्य खराब होते हुए भी जिनवाणी की बहुत बड़ी सेवा की। सैकड़ों पुस्तकें लिखी हैं। आज भी सतत् लेखनी चालू है। जम्बूद्वीप (हस्तिनापुर) की रचना और इतना बड़ा काम माताजी की हिम्मत से हुआ है।
मेरा माताजी से बहुत पुराना परिचय है। माताजी का स्नेह आशीष मेरे ऊपर हमेशा रहा है। मेरी प्रार्थना पर पू० माताजी ने "इन्द्रध्वज मंडल विधान" हिन्दी में व चौबीस तीर्थंकरों का परिचय संक्षेप में, बड़ी सुन्दर पुस्तक लिखीं। जिससे साधारण पढ़ा-लिखा आदमी कम समय में चौबीस तीर्थंकरों का परिचय पा सकता है।
पूज्य माताजी की गद्य और पद्य दोनों में लिखने की शैली बहुत ही उत्तम है। माताजी की व्याख्यान शैली से भी हजारों प्राणियों का कल्याण हुआ है। माताजी पक्की आगमनिष्ठ हैं। माताजी में इतना चमत्कार है कि अपनी गृहस्थ की माताजी को भी बीमारी व वृद्धावस्था में आर्यिका दीक्षा दिलाकर बड़े उत्तम ढंग से समाधिमरण करवाया। यह चमत्कार ही है कि माताजी का इतनी वृद्धावस्था और बीमारी में भी समाधिमरणपूर्वक मरण हुआ। इनके उपदेशों से कई नवयुवकों व नवयुवतियों ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत लेकर आचार्य व आर्यिका पद तक पहुँचे। माताजी में इतने गुण हैं कि मैं उनका वर्णन नहीं कर सकता। वर्तमान की आर्यिकाओं में माताजी मुख्य हैं।
"अग्रगण्य संयमाराधिका"
-निर्मलचन्द सोनी, अजमेर
परम पूज्य १०५ गणिनी ज्ञानमती माताजी वर्तमान युग की एक अग्रगण्य संयमाराधिका, जिनवाणी सेविका, आगम सम्मत साहित्य निर्मात्री और धर्म प्रभाविका आर्यिकारत्न हैं। वर्तमान युग का आपने भलीप्रकार अनुभवन किया है और उसी के अनुसार अपनी प्रवृत्ति बनाई है। आपकी विलक्षण प्रतिभा के द्योतक शोध संस्थान, ग्रन्थानुवाद, शिविर आयोजन, मासिक पत्रिका का सम्पादन, परामर्श आदि सभी तो हैं। स्वास्थ्य की प्रतिकूलता में भी आपका कार्य साधन निरबाध चलता रहता है।
ऐसी परम विदुषी संयमाराधिका के चरणों में मेरी सपरिवार विनयाञ्जलि। मैं माताजी के स्वस्थ दीर्घ जीवन के लिये मंगलकामना करता हूँ।
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