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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
कल्याण मार्ग बतलाकर शुद्ध कीना ।
चारित्र संयम बिना कह व्यर्थ जीना ॥ ६ ॥ चारों नुयोग पर शास्त्र सभा किया है। जो स्याद्वाद मय सूक्ति रचा दिया है । ऐसी अलौकिक छवी विधि ने किया है। जो तीर्थ रूप जग को चमका दिया है ॥ ७ ॥
है लोक शासन अजेय गुरु तुम्हारा । नेता बनीं पतित को भव से उबारा ॥ श्री वीर सिंधु गुरु की शिष्या हुई तुम । कीजे विशद्ध “अभयादिमती' मुझे तुम ॥ ८॥
वन्दन - गीत
-क्षु० शीलसागर महाराज
तर्ज :- जय बोलो महावीर स्वामी की जय बोलो आर्यिका माताकी, जय बोलो ज्ञानमती माता की। जो टिकैतनगर में जन्मी है,जिनकी माता मोहिनी देवी है। जो छोटेलाल की पुत्री हैं, जय बोलो . . . . . . . ॥ १ ॥ जो देशभूषण की शिष्या हैं, जो वीरसागर की दीक्षित हैं। उन मुक्ति-पथिक अभिरामी की, जय बोलो . . . . ॥ २ ॥ जिन आतम ज्ञान उपाया है, जो केवलज्ञान का कारण है। उन सम्यग्ज्ञानी माता की, जय बोलो . . . . . . . ॥ ३ ॥ जो ग्रन्थ अनेक रचाए हैं. भव्यों को बोध कराए हैं । उन महाव्रती गुणधारी की, जय बोलो ...... ॥ ४ ॥ जो जम्बूद्वीप की प्रेरिका हैं, हस्तिनापुर तीर्थ प्रकाशा है। उन भव्यजनों के तारक की, जय बोलो . . . . . . ॥ ५ ॥ जो सिन्धु में मोती ढूँढा है, रवीन्द्र-सा रतन पाया है। चन्दनामाता महकाई है, जय बोलो ........ ॥६॥ ये रत्नमती का खजाना है, जो धर्म रतन मन लाना है। वो "शील क्षुल्लक" कल्याण करे, जय बोलो ... ॥७॥ मैं शत-शत वन्दन करता हूँ, दिन-रात भावना भाता हूँ । मैं बनूँ महाव्रती कर्म हरूँ, जय बोलो . . . . . . ॥ ८ ॥
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