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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
शान्त छवि तेरी, मन में बसी है, तेरी माँ शक्ति अपार । तेरी शरण में आये जो माता, हो जाये भव से पार । तेरी है महिमा निराली माता, हमसे जो वरणी न जाये ।
ऐसी की रचना निराली तूने, जो जग में एक कहाये । तेरी शरणा, आके माता, जन्म सफल हो जायेगा ॥ २ ॥ माता हो माता
• • • • • • • • • • • . . . . . मुझसे कभी माँ पाप न हो - जय हो माता ज्ञानमती । कोई दुःख संताप न हो - जय हो माता ज्ञानमती । जीवन भर सत्कर्म करें - जय हो माता ज्ञानमती । पालन अपना धर्म करें - जय हो माता ज्ञानमती ।
'इन्दु' तुम्हें माँ नमन करे - जय हो माता ज्ञानमती । कोटि - कोटिशः नमन करे - कोटि-कोटिशः नमन करे ॥ ३ ॥
"मंगल दीप जलाएँ"
- अरिञ्जय कुमार जैन, दरियाबाद [बाराबंकी]
तर्ज - पहली बार मिले हैं देखे तेज जगत के, तुझ-सा तेज नहीं देखा है कहीं । शांतिसिन्धु की शिष्या, ज्ञानमती-सा तेज न देखा कहीं ॥
धन्य थी नगरी टिकैतनगर की, जहाँ पे तुमने जन्म लिया । पितु श्री छोटेलाल, मोहिनी, माँ ने कुल को धन्य किया ।
मंगल दीप जलाएँ। तुझ सा . . . . . . ॥१॥ मान करें सम्मान करें माँ ! हर पल तेरा ध्यान करें । लाभ मिला तेरे दर्शन का. अपने सारे कर्म कटें ॥
भव दुःख मेटनहारा । तुझ सा . . . . . ॥ २ ॥ तेरह रत्नों की माता को, अपने पथ पर लगा लिया ॥ मोहिनी से कर रत्नमती तव, निज चरणों में नमा लिया ॥
जग से न्यारी मूरत । तुझ सा . . . . . ॥ ३ ॥ कितने जीवों को माँ तुमने, भव से पार लगाया है ॥ इनमें इक चन्दनामती ने, त्याग मार्ग अपनाया है ॥
मोतीसागर क्षुल्लक सा। तुझ सा तेज .. ॥ ४ ॥ जैन अजैन जो भी आएँ माँ. इच्छित फल को पाते हैं | लाभ तेरे दर्शन का पाएँ, खाली न लौट के जाते हैं |
"ए.के." शरण में आया। तुझ सा ... ॥ ५ ॥
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