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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
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भजन
तर्ज
• जाओ तुम चाहे जहाँ
जाओ तुम चाहे जहाँ, ध्यान करोगे वहाँ । कि एक शक्ति दुनिया में है, जो कर सकती है बेड़ा पार ॥ जाओ तुम
हे माँ तव अर्चना में, भेंट अर्पण क्या करें । ये तन, मन और जीवन, सब समर्पण हम करें ॥ भावों की कलियों को
जाऊँ मैं छोड़ कहीं। जाओ तुम
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दिल एक केशर प्याली भाव की केशर भरी । ज्ञान की ज्योति जलाकर, आरती तेरी करी ॥ द्रव्य की थाली नहीं, दिल में है लाया अरमाँ । जाओ तुम मोह माया तजकर, आज हम पूजा करें । तार दे तू इस भव से, आज सब विनती करें ॥ "जय" है पुजारी तेरा, छोड़ के जाएं कहाँ । जाओ तुम चाहे जहाँ, ध्यान करोगे वहाँ ॥ कि एक शक्ति दुनिया में है, जो कर सकती है बेड़ा पार । जाओ तुम
ले
जय हो माता ज्ञानमती
तर्ज- देवा हो देवा
माता हो माता, तेरे नाम की धूम मची चहुँ ओर
हम भी पुकारें कब होगी माता, तेरी नजर हमारी ओर । जय हो माता ज्ञानमती, जय हो माता ज्ञानमती, जय हो माता ज्ञानमती ॥
- कु० इन्द्र जैन, पुत्री श्री प्रकाशचन्द्र जैन टिकैतनगर [ बाराबंकी ]
जग में तू पहली बालसती है, पहला है तेरा नाम । हर दुःख मिटाये, बिगड़ी बनाये, सबके सँवारे काम । आये हैं हम तेरे द्वारे माता, तुझसे बड़ी है आस लगाये । तेरी दया से, ऐ मेरी माता, अपना नर तन सफल हो जाये । हमको मुक्ति मिल जायेगी ऐसा भी दिन कभी आयेगा || माता हो माता
॥ १ ॥
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- श्री जयप्रकाश जैन, दरियाबाद [ बाराबंकी]
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