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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
(६)
ध्यान, ज्ञान, तप, स्वाध्यायरत
दिनचर्या आगम अनुसार ।
गहन अध्ययन औ अध्यापन,
बना लिया जीवन का सार ॥
(6)
माधोराजपुरा में दीक्षा,
लेकर पाया अति सम्मान । तुम सी सफल साध्वी पाकर, गौरवान्वित राजस्थान ॥
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(१०)
परम तपस्विनि ! त्याग मूर्ति हे ! गुण गौरव गरिमा को धाम ।
ज्ञानमती माताजी तुमको
मेरा बारंबार प्रणाम ||
धन्य रहे ज्ञानमति माता,
(७)
जम्बूद्वीप ज्ञान से ज्योतित,
ज्ञान ज्योति रथ ले आधार । भावनात्मक बढ़ा एकता, किया ज्ञान का सतत प्रचार || (९)
दीक्षागुरु श्री वीर सिंधु के,
नाम चलाया है संस्थान ।
हो ज्ञानमती का जयकारा
संस्कृत विद्यापीठ जहाँ से, निकल रहे पढ़कर विद्वान ॥
सरल, सुबोध भाषा में,
जम्बूद्वीप रचा भारी ।
ज्ञान ज्योति से ज्योति जगाई,
ग्रन्थ रचे तुमने भारी ॥
पं० लाडली प्रसाद जैन, पापड़ीवाल, सवाई माधोपुर
पूजाएँ रच दीं भारी ।
चिरकाल रहो इस भूतल पर,
तुम आर्य-मार्ग की संरक्षक,
महिमा फैले जग में भारी ॥
गुरु-भक्ति की बहती धारा । शत शत वन्दन करते तुमको
हो ज्ञानमती का जयकारा ॥
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