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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
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(२)
उत्तर-प्रदेश की पावन-नगरी, टिकैतनगर अति प्यारी । शरद् पूर्णिमा की चन्द्र कलाएँ, शीतलता भर लाईं । छोटेलाल पिता गृह-मन्दिर में, महकी अति फुलवारी ।
मोहिनी माँ रत्नमती से "मैना" जन्म ले किलकारी । विक्रम सम्वत् उन्नीस सौ इक्यानबे में, लिया जन्म सुख-नन्दन है । धर्म मूर्ति माँ ज्ञानमती को, शत-शत वंदन अभिनंदन है ॥
(३) गृह-बंधन से मुक्ति पाके मैना उज्ज्वल कुल को पाया । मिथ्यात्व कुरीतियों को जब तजकर, सम्यक् पथ अपनाया ।
जैन संस्कृति में नित पगकर, उज्ज्वल जीवन महकाया । ब्राह्मी सुन्दरी चंदन का व्रत ठान कर, तत्वज्ञ प्राप्त कर चमकाया । सतरह वर्ष में बाराबंकी में, जीवन किया परिवर्तन है । परम पूज्य श्री देशभूषण से, ब्रह्मचर्य ले पावन किया मन है ॥
(४) श्री महावीर में पूज्य ऋषि, देशभूषण जब आये । मैना ने जब वीर प्रभु का शरणागत लेकर दीक्षा पाये । वीरमती बन वीर वीर से, धर्मामृत पिलवाये । विशालमती के साथ में रहकर, विशाल गुणों को प्रगटाये । चारित्र शिरोमणि शांतिसागर मनि का प्रण किया गजब । वीरसागर ऋषिवर चरणों में, आर्यिका व्रत ज्ञानमती वंदन है।
परमारथ के कारण हेतु अनेकानेक पद व्रत पूज्य मान । अपने सद् चिदानन्द ज्ञान, से ज्ञानमती बड़ी गुणखान । ज्ञानमती के चरणाराधन में, अभय आदि पद्मावती ने यह पाया । आत्म साधना में नित रह, कर अभय ज्ञान श्रुत पाया । आत्म साधना में नित रहकर ज्ञानज्योति को पाया । मोहिनी बनी माँ रत्नमती, निज जीवन को महकाया ।
शिष्या माधुरी चंदनामती, बन जीवन को चहकाया । ब्रह्मचर्य से पुलकित मन. किया आत्म चिंतन । वीर प्रभु गौतम गणधर, वाणी को पीती ज्ञानमती निशि-दिन ।
विद्वद् मोतीचंद्र बन चन्द्रसम, क्षुल्लक मोतीसागर कहलाये । श्री रवीन्द्र ब्रह्मचर्य से, रमते धर्म ध्वजा फहराये । हस्तिनापुर की पावन नगरी, में पावन कार्य किया है । विश्व चकित श्री जम्बूद्वीप से, जग उद्योत किया है । वात्सल्य भावना धर्म प्रेम की, बहती त्रिवेणी संगम । परम पूज्य श्री ज्ञानमती को. शत शत वंदन अभिनन्दन ॥
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