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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
ब्रह्मचारिणी बन जाने का,
ऐसा अवसर मिले कैसे ॥ ५ ॥ मैना वीरमती बन करके,
महावीरजी में महकी । युग को मिला अलौकिक सम्बल,
साध हुई पूरी सबकी ॥ ६ ॥ अति उत्कृष्ट आर्यिका दीक्षा,
ग्रहण किये फिर ज्ञानमती । वीर व्रतों की अथक साधना,
धारण करके बनी व्रती ॥ ७॥ भारतीय संस्कृति की रक्षा,
प्रतिपल मानवता कल्याण । ज्ञानमती की ज्ञानराशि से,
नये विश्व का नव-निर्माण |॥ ८ ॥ स्नेह-शांति-सद्भाव-समन्वय,
युग के लिए यही वरदान । ज्ञानमती के ज्ञानस्रोत से,
बन सकते हम श्रेष्ठ महान ॥ ९ ॥ महिमामय माता शतायु हों,
अर्पित शतशः उन्हें प्रणाम । यथानाम गुण वैसा उनमें,
अजर-अमर हो उनका नाम ॥१०॥ अभिवन्दन यह ग्रन्थ समर्पित,
माता के ममता से आशा । पाँच व्रतों से विश्व सँवारें,
यही आज की है भाषा ॥ ११ ॥
शत-शत वन्दन अभिनन्दन है
- पं० बाबूलाल जैन फणीश-ऊन, खरगोन [म०प्र०] शांति, कुन्थु, अर नाथ चरण में, लिया शरण जिन वंदन है । परम विदुषी आर्यिकारत्न "ज्ञानमती" शत-शत अभिनन्दन है ।
(१)
आदिकाल की पावन नगरी, हस्तिनापुर अति प्यारी । आदि प्रभू श्री वृषभ देव से. पावन धरा अति महकाई । शांति, कुंथु अरनाथ प्रभु के, चार कल्याणक से हर्षायी । कौरव-पांडव ने वसुधा पर, आकर युद्ध किया था ।
भाई से भाई के लड़ने का, प्रलयंकर युद्ध मचा था । जोरू जमीन जर क्रिया आदि से करती मन को क्रन्दन है । परम विदुषी श्री ज्ञानमती को, शत-शत वंदन अभिनन्दन है ।।
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