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मैं नहीं जानतातुम कौन हो ?
कोई देवी, कोई महामानवी
दिव्य तेज से परिपूर्ण
या परम सुख से सम्पूर्ण सरलता और सौहार्दमयी । तुम जो भी हो, देवी। महामानवी या मात्र मानवी । प्रेम से पूरितवात्सल्य उमड़ता है तुमसे, रोम-रोम से होती प्रवाहित पावन किरणें
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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
समय सार साकार हुआ है तव तप की महिमा से । माँ जिनवाणी की रचना का कोष जहाँ अभिलाषे ॥ जम्बूद्वीप की परम अलौकिक रचना जहाँ निवासे ।
और भक्तिमय रचनाओं से जन जन का हृदय प्रकाशे ॥ यशः गीत गाने का मतलब सूरज दीप दिखाना । हाँ तव भक्ति से समर्थ है मुझको मुक्ती पाना ॥ आज हृदय में तव भक्ति का प्रकटा श्रोत चमन है । गणिनी ज्ञानमती के चरणन मेरा कोटि नमन है |
तुम कौन हो ?
एक अद्भुत प्रकाश वर्तुलतुम्हारे चहुँ ओर रहता है ।
एक मधुर बयारसुवासित कर दे जो तन-मन, तुम्हारे हर श्वाँस के साथचली आती है मुझ तक । माटी का कण-कण थिरक उठतास्पर्श तेरे चरणों का पाकर । अमृतमयी धाराएँ प्रवाहित होतीतेरे चहुँ ओर ।
तेरा आन्तरिक वैभव,
माँ के चरणों में
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तेरा आन्तरिक सौन्दर्यकर लेता सम्मोहित, कर लेता अभिभूत | मन होता बार-बारतुझको वन्दन मैं करूँ । न सिर्फ वन्दन, अपितुस्वयं को अर्पण मैं करूँ । तेरे चरण स्पर्श करकण-कण पुलकित हो जाता है, नयनों से टपकता वात्सल्यरोम-रोम धिरकता है।
शरद पूर्णिमा की निशि में, शशि का ही अवतार हुआ। टिकैतनगर जग गया परा, हिंसा पर प्रहार हुआ ॥ धन्य हुए पितु मात सभी जन, पाकर के बेटी "मैना " । खुशियां आयीं दीपक जागे, हर्षित हुए चार नैना ॥ जिनकी सतत साधना से पावन होता मन मेरा । ऐसी माता ज्ञानमती को सत-सत बार नमन मेरा ॥ कोकिल कंठ मधुर वाणी से जन-जन का मन हर्षाये । पड़े जहाँ पग माताजी के मिट्टी सोना बन जाये ॥ आत्म चेतना, अमिट साधना, माया से मन को फेरा । ऐसी माता ज्ञानमती को सत-सत बार नमन मेरा ॥
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-दिनेश जैन, सरधना
बालकवि कमलेश जैन, डिकौली [ म०प्र० ]
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