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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
यश वैभव फैलाकर जग में, वसुधा को बरदान दिया। हिंसा पाप मिटाकर माँ ने, सबको जीवन-दान दिया । सौम्य छवि है अतुल कीर्ति से, तुमको हर मन ने घेरा । ऐसी माता ज्ञानमती को. सत-सत बार नमन मेरा ॥ तेरी वाणी सुनकर के माँ, मुरझे तरु भी लहराये । मृत जीवों में सचमुच माता, नई आत्मा आ जाये ॥ तेरे ही पद संजीवन में, लगता है मेरा डेरा । ऐसी माता ज्ञानमती को. सत-सत बार नमन मेरा ॥ ममता मोह पतन कर डाली, मन में त्याग समाया है। प्रतिपल चिंतन, अविरल मंथन, सत्यका दीप जलाया है। कोमल देह रहे कांटों पर, उर है खिला सुमन तेरा । ऐसी माता ज्ञानमती को. सत-सत बार नमन मेरा ॥
अभिनन्दन है, शत शत अभिनन्दन !
-प्रेमचन्द जैन, महमूदाबाद
माँ ! अब मेरा भी कल्याण करो । निज कर का देकर संबल मेरा भी भवत्राण हरो ॥ माँ ॥
कितने तारे ? नहीं व्योम में उतने तारे, ज्ञान दान देकर भव्यों को कितनों को भव पार उतारे ।
सत्पथ पर बढ़ चले कदम ऐसी शक्ति दान करो ॥ माँ ॥ तोड़ सकूँ मैं सारे बन्धन, भोग-विलास के सारे आकर्षण । अनुभूति स्वयं की पा जाऊँ ऐसा उर में ज्ञान भरो ॥ माँ ॥
संयममय जीवन बन जावे, सौम्य सरस सुरभित हो जावे ।
जीत सकूँ दुष्कर कर्मों को ऐसा ही अभिज्ञान भरो ॥ माँ ॥ अब तक भटका मेरा जीवन, करता रहा रौद्र आक्रन्दन । निष्क्रिय जीवन में मेरे शक्ति का नव प्राण भरो ॥ माँ ॥
कर्मजयी बन जाऊँ अविरल, निजात्म में हो जाऊँ निश्चल
पराभूत कर सके न कोई ऐसा स्वाभिमान भरो ॥ माँ ॥ अभिनन्दन है, शत शत अभिनन्दन, पदारविन्द में मेरा वन्दन । स्नेहिल आशीर्वच दे दो ऐसी करुणा दान करो ॥ माँ ॥
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